एक किस्सा अधूरा सा - 14
एक किस्सा अधूरा सा - 14
अल्फिया एक कोने में खड़ी इमरान को देख रही थी। इमरान अयान को गोद में लिए नाच रहा था। अल्फिया अपनी बुआ की बेटी सनम की शादी के लिए दिल्ली आई हुई थी। एक हफ्ता हो गया था नंदिनी से उसकी मुलाक़ात हुए। नंदिनी ने उसे जो कुछ एक हफ्ते पहले बताया था अल्फिया अब तक उस बात को समझ नहीं पाई थी। उसने नंदिनी से अपनी उस मुलाक़ात के बारे में कुछ भी नहीं बताया था। असल में उसे इमरान ने जो कुछ भी किया उस बात पर हैरानी भी नहीं थी। उसे इमरान के स्वभाव के बारे में पता था। वो पहले से ही जानती थी की वो कुछ ऐसा ही करेगा।
इमरान कोई पुरानी सोच वाला आदमी नहीं था। उसकी सोच, उसकी परवरिश, उसकी फैसले सब अपने समय से कही आगे थे। वो औरतों को अपने पैर की जुत्ती नहीं समझता था। उसके हिसाब से किसी भी औरत को अपनी जिंदगी में किसी भी मर्द के सहारे की जरुरत भी नहीं थी। वो जवानी के जोश से भरा लड़का भी नहीं था। उसे बहुत अच्छी तरह पता था की कैसे बड़ो को अपनी बात समझानी है और कैसे उन्हें मानना है। नए और पुराने में संतुलन कैसे बनाया जाता है ये वो बहुत अच्छी तरह जानता था। जो कुछ भी उसने अल्फिया के साथ किया वो उसका बचपना नहीं था। बल्कि वो जानता था की अल्फिया के लिए ये ही सही था।
वो अल्फिया को हमेशा से उससे बेहतर जानता था। वो क्या सोचती है क्या करना चाहती है। अल्फिया ने कभी भी पढाई, नौकरी या ऐसे किसी भी चीज पर कभी ध्यान दिया ही नहीं दिया। ऐसा भी नहीं था की उनके आसपास कोई औरत काम नहीं करती थी। अल्फिया की अम्मी टीचर थी, इमरान की अम्मी उसके अब्बू के दफ्तर में ही काम करती थी, उसकी बुआ एक पत्रकार थी।
उसकी सारी चचेरी और फुफेरी बहने भी काम करती थी। सिर्फ अल्फिया ही कुछ करना नहीं चाहती थी। घर के बड़ो ने तो इस बात पर भी ऐतराज किया था। वो लोग कहते थे की अल्फिया भी अपने पैरों पर खड़ी हो। इमरान जानता था की अल्फिया ऐसा नही चाहती इसलिए उसने घरवालों को बड़ी मुश्किल से मनाया था। घरवाले मान गए थे क्योंकि वो जानते थे की जितना अल्फिया में बचपना है उतनी ही इमरान में समझदारी भी है।
इमरान खुद भी अल्फिया से नंदिनी की चिट्ठियां छुपाना नहीं चाहता था। असल में वो गया भी था अल्फिया की चिठ्ठी पोस्ट करने, लेकिन जब डाक खाने पहुंचा तो पता चला की चिठ्ठी तो वो घर ही भूल आया। जब वो वापिस आने लगा तो डाकिये रोककर नंदिनी कि चिठ्ठी उसे दे दी थी। इमरान ने चिठ्ठी पढ़ी तो उसमें किताब बारे में लिखा हुआ था। वो जानता था कि अल्फिया इस चिठ्ठी को पढ़कर बहुत खुश हो जायेगी। हाँ करने में भी देर नहीं लगाएगी।
लेकिन वो ये नहीं जानती थी की एक किताब लिखना उतना भी आसान काम नहीं था। उसे अल्फिया की कहानियों पर पूरा भरोसा नहीं था, लेकिन उसके चंचल मन पर नहीं। वो जितनी उत्सुक होगी इन सब बातों को लेकर कर उतनी ही जल्दी वो बोर भी हो जायेगी और ये सब बीच में ही छोड़ना चाहेगी। अगर ये सब हुआ तो एक तरफ पब्लिशर उनके खिलाफ कानूनी कारवाही कर सकता है और दूसरी तरफ घरवाले और रिश्तेदार जो ताने देंगे वो अलग। इमरान को इन सब से कही ज्यादा चिंता इस बात की थी की जब अल्फिया को ये सब सुनना पड़ेगा तो उसे कितना दुख होगा। और अपनी अल्फिया को दुखी तो वो देख ही नहीं सकता।
उसने उसके बाद नंदिनी की कोई भी चिठ्ठी अल्फिया को नहीं दिखाई। न ही उसने अल्फिया की चिठ्ठी को पोस्ट किया।
अल्फिया सब को वही छोड़ कर अंदर कमरे में गयी। उसने अपना पर्स निकाला। फिर उसने नंदिनी का नंबर निकाला और फ़ोन पर नंबर डायल किया। दो घंटी के बाद नंदिनी ने फ़ोन उठाया। अल्फिया बोली, "हेलो? जी मै अल्फिया बात कर रही हूँ। क्या नंदिनी से बात हो सकती है?"
"क्या सच में तुम ही हो अल्फिया? आखिर तुमने फ़ोन कर ही लिया। एक बार को तो मुझे लगा था की तुम फ़ोन ही नहीं करोगी। कैसी हो तुम?" नंदिनी बोली।
"मैं अच्छी हूँ तुम कैसी हो?" अल्फिया ने पूछा।
"मैं भी अच्छी हूँ।” नंदिनी इतना कहकर रुक गयी। एक मिनट बाद वो फिर बोली, "अल्फिया... तुमने इमरान से बात की क्या?"
"मैं दिल्ली में हूँ । कल दोपहर 2 बजे तुम मुझे कनॉट प्लेस में मिल सकती हो?" अल्फिया ने नंदिनी के सवाल को नज़रअंदाज कर अपना सवाल पूछा।
"मैं आ जाउंगी। अल्फिया मैं तुमसे कुछ पूछना चाहती हूँ। वो पब्लिशर आज ऑफिस आये थे किसी काम से। उन्होंने फिर तुम्हारे बारे में पूछा। कल शाम वो एक महीने के लिए बैंगलोर जा रहे है। अगर तुम कहो तो मैं कल उन्हें भी अपने साथ ले आऊँ? मेरा ख्याल नहीं तुम उनके वापिस आने तक यहाँ रुकने वाली हो।" नंदिनी ने पूछा।
"ठीक है।" अल्फिया ने जवाब दिया।
अगले दिन अल्फिया खरीदारी करने के लिए सबके साथ शॉपिंग के लिए गयी। सबकी खरीदारी लगभग ख़तम ही हो गयी थी। इमरान उनके साथ नहीं आया था। वो अयान के साथ घर पर ही था। इमरान आना तो चाहता था लेकिन अल्फिया ने ही मना कर दिया। कहा, "वहाँ इतनी भीड़ में अयान परेशान हो जाएगा। अगर वो रोने लगा तो सिर्फ हमें ही नहीं बल्कि सब को परेशानी होगी।" ये बात सुनकर इमरान मान गया। जब सब वापिस आने के लिए गाडी में बैठने लगे तो अल्फिया ने सनम को एक तरफ लेकर कहा की तुम लोग जाओ मैं थोड़ी देर में आ जाउंगी। मुझे कुछ सामान खरीदना है। एक बार तो उसने अल्फिया को ऐसे देखा जैसे की वो जानती थी की अल्फिया कुछ छिपा रही थी। लेकिन फिर मुस्कुराने लगी और बोली, "ठीक है। तुम्हे रास्ता तो पता है न?"
"हाँ मुझे पता है।” अल्फिया ने जवाब दिया।
सनम गाड़ी में बैठने लगी लेकिन फिर मुड़कर बोली, "ज्यादा देर मत लगाना।”
अल्फिया ने गर्दन हिला कर हामी भर दी। सनम को लग रहा था इमरान के लिए तोहफा लेने के लिए रुकी है। उनके खानदान में सब जानते थे की अल्फिया और इमरान एक दूसरे के लिए लिए कितने पागल है और मौका मिलने पर कोई भी उनका इस बात के लिए मजाक उड़ाने से पीछे भी नहीं रहता था। सनम को लग रहा था की सब मजाक न उड़ाए इसलिए अल्फिया पीछे रुक रही थी। इसी लिए उसने ज्यादा कुछ पूछा भी नहीं अल्फिया से।
सब के जाने के बाद अल्फिया उस रेस्टोरंट में गयी जिसका नाम नंदिनी ने फ़ोन पर बताया था। उसने दीवार पर लगी घडी में समय देखा। पौने दो हुए थे। उसने अपने लिए जूस आर्डर किया और वही मेज पर पड़ी मैगज़ीन पढ़ने लगी। कवर पर किसी सूट बूट में एक आदमी की फोटो छपी हुई थी। उसे वो चेहरा कुछ जाना पहचाना लगा। तभी दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई। सामने नंदिनी और उसके साथ एक आदमी अंदर आ रहे थे। नंदिनी ने चारो तरफ नज़र घुमाई अल्फिया को ढूंढने के लिए। जब उसकी नज़र अल्फिया की नज़रों से मिली तो उसके होंठों पर मुस्कराहट आ गयी। अल्फिया ने अब तक उस आदमी के चेहरे की तरफ देखा तक नहीं था।
जब उसने उस आदमी का चेहरा देखा तो उसे अपनी नज़रों पर विश्वास ही नहीं हुआ। ये वही चेहरा था जो वो एक पल पहले मैगज़ीन पर देख रही थी।
