एक किस्सा अधूरा सा-11

एक किस्सा अधूरा सा-11

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वही बेंच पर बैठे बैठे ही इमरान की आँख लग गयी। आँख खुली तो सुबह हो चुकी थी। घड़ी में समय देखा तो सुबह के साढ़े छह बजे थे। वो उठा और सीधा घर चला गया। पर दरवाजे के अंदर कदम रखने की उसकी हिम्मत ही नहीं हो रही थी। वो जानता था जो कल रात और पिछले दो सालो में उसने किया था उसके लिए जब वो खुद ही खुद को माफ़ नहीं कर पा रहा था तो फिर भला वो कैसे उम्मीद कर सकता था की अल्फिया कुछ महसूस न करे। जब उसके कदम आगे नहीं बढे तो वो वही घर की दहलीज की सीढ़ियों पर बैठ गया। कुछ देर बाद अल्फिया अयान को गोद में लिए बहार निकली। उसे वहाँ बैठा देख कर वो भी उसके पास आकर बैठ गयी। कुछ पल दोनों ख़ामोशी में बैठे रहे। फिर इमरान ने अयान को अपनी गोद में ले लिया। उसे पता था की अल्फिया ने कल रात कुछ नहीं खाया होगा। इमरान ने अल्फिया से कुछ खाना बनाने को कहा और अयान को लेकर अंदर कमरे में चला गया। अल्फिया भी रसोई में चली गयी।

इमरान अंदर कमरे में गया तो देखा की बिस्तर पर वो चिठ्ठी अभी भी पड़ी हुई थी। उस चिठ्ठी को देखते ही उसे बीती रात की सब बाते याद आने लगी। एक कोने पर अल्फिया ने अपने कपङे तह कर रखे हुए थे। उसने एक एक कर देखा उनमे से एक भी लाल रंग का नहीं था। उसे इन सब चीजों को देखकर इतना बुरा लग रहा था तो भला अल्फिया कैसा महसूस करती होगी। उसके लिए तो उसकी ज़िन्दगी ही इमरान हुआ करता था। इमरान से शादी करने के अलावा उसने कभी कोई सपना देखा ही नहीं,और पिछले दो सालो में इमरान ने भला उसे क्या दिया था। बाकी सब की तो छोड़ो इमरान तो उसे अपना समय तक नहीं दे पाया था। उसने अयान को पालने में खेलने के लिए छोड़ दिया और खुद नहाने के लिए जाने लगा। कपडे लेने के लिए अलमारी खोली तो उसके मन में एक ख्याल आया। उसने अल्फिया के सारे वो कपडे निकाले जो लाल रंग के नहीं थे और बिस्तर पर ढेर लगा दिया। फिर वो नहाने के लिए बाथरूम चला गया।

जब वो नहाकर बहार निकला तो अल्फिया वह खड़ी बिस्तर पर अपने अपने कपड़ो को देख रही थी। उसके चेहरे पर साफ़ साफ़ लिखा था की उसे समझ नहीं आ रहा था। अक्सर ऐसा तब होता था जब इमरान अल्फिया के लिए कुछ ख़ास करता था और उसे समझ नहीं आता था की क्या होने वाला है। जब उसे समझ आता था तो अल्फिया की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं रहता था। आज अभी कुछ तो खास होने वाला था। यही सोच कर इमरान मुस्कुराने लगा। उसने अलमारी से एक लाल सूट निकला और अल्फिया को पकड़ाते हुए कहा की जल्दी से नहा लो आज हम घूमने जाएंगे। अल्फिया जब बाथरूम चली गयी तो उसने सब चीजे निकालनी शुरु की।

बुकशेल्फ पर रखी किताबें, जो सिर्फ सजावट के लिए रखी थी। अल्फिया का सफाई का काम ही बढ़ाती होंगी ये किताबें। उसे तो स्कूल की किताबें पढ़ना ही कितना मुश्किल काम लगता था, और खुद उसके पास समय ही कहा होता था किताब पढ़ने का। अब तो बिलकुल भी नहीं होने वाल था क्योंकि वो अपना हर एक पल अल्फिया को जो देने वाला था। इसलिए अब इस घर में इन किताबो की कोई जरुरत नहीं थी। वही किताबो के बीच कुछ अख़बार और कुछ चिठ्ठियां भी रखी थी। उसने नाम पढ़ा तो देखा की वो चिठियाँ नंदिनी की थी। उस नाम से तो कल रात के बाद नफरत ही हो गयी थी। उसने उन्हें भी कपड़ों और किताबों के साथ रख दिया। उन अखबारों को भी रद्दी समझ कर उसी ढेर में रख दिया।

जितने में इमरान ने ये सब किया अल्फिया नहा कर बहार निकल आई। उसे अभी भी कुछ समझ नहीं आ रहा था। इमरान उसकी शकल देख कर मुस्कुराने लगा। उसने सारे सामान को घर के पीछे वाले आँगन में ले जाकर पटक दिया। अल्फिया भी उसके पीछे पीछे वही आ गयी। उसने मिट्टी का तेल छिड़क कर उस ढेर में आग लगा दी। उसे लगा था की अब तक अल्फिया समझ गयी होगी की वो क्या कर रहा है। वो अल्फिया की और देखकर मुस्कुरा रहा था। पर अल्फिया ,वो तो बस एकटक उस आग को ही देखे जा रही थी। अब इमरान उसे ऐसे देख कर परेशान हो रहा था। बुरी यादों को तो उसने जला दिया था तो फिर अल्फिया खुश क्यों नहीं थी। 


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