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PRIYANKA YADAV

Abstract

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PRIYANKA YADAV

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एक किस्सा अधूरा सा -12

एक किस्सा अधूरा सा -12

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राख, सिर्फ राख ही बची थी। मेरे सपने जलकर एक पल में राख हो गए थे।

मैं बस वहाँ खड़ी थी। उस जलती हुई आग को बस देखे जा रही थी। मैंं खुश होना चाहती थी। इमरान भी तो बस यही चाहता था। मेरी ख़ुशी, उसकी ख़ुशी, हमारी ख़ुशी। पता नहीं मैं कितनी देर वह ऐसे ही खड़ी रही। उस आग के अलावा मुझे कुछ दिख ही नहीं रहा था। कुछ देर बाद इमरान ने आकर मेरा हाथ जब अपने हाथ में लिया तब मैंने नज़रे उठाकर उसकी तरफ देखा। उसकी आंखों में सवाल थे। सैकड़ो सवाल।

उसे नहीं पता था की ये चीजे जिन्हे उसने एक पल में जलाकर राख कर दिया था उनकी मेरे लिए क्या अहमियत थी। मुझे खुद भी नहीं पता था की ये सब चीजें मेरे लिए क्या अहमियत रखती थी। अब इन्हें इस तरफ जलते देख कर एहसास हो रहा था। ऐसा लग रहा था की सिर्फ कुछ किताबें और कपड़े नहीं जल रहे थे बल्कि वो आग मेरे अंदर ही थी और मुझे जला रही थी। बुरी तरह झूलसा रही थी।

दूसरी तरफ इमरान की आँखों में भरे वो सवाल। मेरे एक बार फिर उसकी तरफ देखा और मुस्कुरा दी ये सोच कर की इमरान की परेशानी, उसकी कश्मकश, उसका डर दूर हो जायेगा। हुआ भी यही मेरी मुस्कान देखते ही इमरान के चेहरे पर दुगनी चोड़ी मुस्कान आ गयी। उसने मुझे कस के गले लगा लिया। जब मैंंने अपना सर उसके सीने पर रखा और उसकी धड़कन सुनी तो उस आवाज़ ने मेरे अपने सारे सवालों के जवाब दे दिए। अब मेरे सारे सवालो के जवाब मिल गए थे मुझे। कुछ देर बाद मैंंने खुद को इमरान की बाहों से दूर करते हुए उसकी तरफ गुस्से में देखा। "तुमने तो मेरे सारे कपड़े तो जला दिए, अब मैं पहनूंगी क्या ?" 

इमरान एक बार के लिए मेरे चेहरे पर गुस्सा देख कर घबरा गया पर फिर मेरे होठों की मुस्कान जिसे मैं छिपाने की कोशिश कर रही थी उसे देख कर वो समझ गया की मैं सिर्फ नाटक कर रही हूँ । मेरा हाथ पकड़ा, मुझे अपनी बाहों में घेरकर, मेरी आंखों में देखा और मुस्कुराते हुए कहा "लाल सूट, सिर्फ और सिर्फ लाल सूट, बहुत सारे लाल सूट जो आज मैं तुम्हें दिलाने वाला हूँ।"

जैसे ही मैं मुड कर जाने लगी उसने मुझे पीछे से अपनी तरफ खींच लिया। थोड़ा गुस्सा होकर मेरे तरफ देखने लगा। मुझे कुछ समझ नहीं आया तो मैंंने पूछा। "इमरान अब क्या हुआ ?" 

उसने वैसे ही गुस्सा होते हुए कहा "कितनी बार कहा है तुम्हे काला टीका लगा लिया करो, मेरी दुल्हन को नज़र लग जाएगी तो ?" 

इतना कहकर उसने मेरीआंखों से काजल लिया और मेरे कान के पीछे टीका लगा दिया। जैसे ही उसने टिका लगाया मैं खुद को रोक ही नहीं पाई मैंने उसे कस के गले लगा और न चाहते हुए भी मेरे आंखों से आंसू बहने लगे, ख़ुशी के आँसू।  


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