उम्र
उम्र
स्वभावतः मैं खुशमिजाज हूं।मुझे हंसना -हंसाना पसंद है। मगर गुस्सा आ जाए तो तीन दिन मुंह फुलाए रहती हूं।
एक बार मैं गुनगुना रही थी,' आईना मुझसे मेरी पहली सी सूरत मांगे ' तभी बेटी बोल उठी,मम्मी रहने दो,अब की आपकी सूरत ही अच्छी है,पहले की फोटो में तो यक्कू जैसी भोहैं और हर जगह रोनी सूरत बनाए बैठी हो। पहले की सूरत न मांगों।
उसकी उन बातों से मैं कई बरस पीछे पहुंच गई।मुंह क्यों बना रहता था क्योंकि जोर से हंसने,
खिलखिलाने पर इतनी डांट पड़ती थी कि पूछो मत।
शादी के लिए उन दिनों जो फोटो खींची जाती थी, जिसमें एक ऊंची टेबल पर गुलदस्ता रखा हुआ करता था और उस पर कोहनी रख कर पोज बनाया जाता था।,फोटोग्राफर लाख कहता, स्माइल प्लीज मगर मजाल कि मुस्कान लाने की हिम्मत आती !दिल में लड्डू फूट रहे होते ,क्यों ? क्योंकि आखिर वह दिन आनेवाला है,मगर.........मुस्कान ? न,न ,न ।
एक बार बच्चों ने पिता से पूछा,"डैडी आपने मम्मी की वह फोटो ओके कर दी थी ? "
ये भी बड़े मासूम बोले,"वह तो जैसे ही देखने के लिए उठाई, दोस्त आ गए ,उनसे छिपाने के लिए जल्दी से कहीं रख दी और फिर वह कभी मिली नहीं,शायद बड़े ट्रंक के पीछे गिर गई थी। "
कहां तो मेंने सोचा था कि उस फोटो में जो आंखो की पलकों के उपर आईब्रो पेंसिल चलाई थी, उसके बाहर की ओर निकलेे तीरों से ये घायल हुए थे !कहां यह जवाब....!
खैर फैशन का और मेरा 36 का आंकड़ा रहा है, करना तो चाहती थी ,हो नहीं सकता था।
जब तक स्कूल के लिए मां अपने हाथों से तैयार करती थी,वे कान के ऊपर कस कर दो चोटियां बना देती थीं ,जिन में रिबन लगाकर फिर घुमा कर उपर बांध देती थीं।फिर जब बाल संवारना अपने हाथ आया ,तब भी दो चोटियां ही बनती थीं,मगर कान के पीछे।फिर दसवीं तक पहुंचते - पहुंचते एक चोटी हुई,जिसमें कानों को बालों से ढक लिया जाता था, हां,रिबन की जगह आधी चोटी बना कर बाकी खुली छोड़ देते थे।बस यही और इतना ही हमारा फ़ैशन हुआ करता था।उसमें भी सर को परेशानी रहती थी।कोई काम न किया हो , कहते , कान पर से बाल हटें तब न लड़कियों को सुनाई दे !
विवाह के बाद भी कुछ नहीं बदला, पतिदेव का उसूल था ,सादगी ।हां,जब मैं जॉब करने लगी,तब एक दिन सहकर्मी अध्यापिका ने टोका,"आप चेहरा ब्लीच नहीं करतीं ?"
सुनकर मैने कहा, "नहीं।वह क्या है ?"
उन्होंने कहा,"बाज़ार में इस नाम से मिलता है, अब किया कीजिए।"
फिर उन्हीं से मेकअप के टिप्स ,कुछ ज्यादा नहीं,फाउंडेशन ,मॉइश्चराइजर वगैरह के टिप्स मिले।यह उम्र का अड़तीसवां साल था,जब यह दिव्य ज्ञान प्राप्त हुआ।आईने की इतनी उपेक्षा हुई कि अब वह सवाल करता है , पहले कहां थीं ?
जब आईना देखने की उम्र थी तब इतनी वर्जनाएं थीं, छुप कर एक निगाह डाल लिया करते थे,बस।अब ..., बढ़ती झुर्रियों और बढ़ते वजन में मानो होड़ लगी है।बालों को काला करने के बाद भी सफेदी कुछ - कुछ दिन बाद चुगली खाने लगती है।जोड़ों के दर्द से चेहरे की भाव - भंगिमा बदलती रहती है।मुंह से वाह कम ,,आह ज्यादा निकलती है। न पहले सी चाल रही,न तेजी।
समय के साथ शारीरिक स्फूर्ति में कमी होना स्वाभाविक है।अब कभी तो मन उत्साह से लबरेज़ रहता है ,कभी, " क्या करना है अब ? " सरीखा वैराग्य भाव हावी हो जाता है।मजे की बात यह है कि , " मैं जो चाहूं,जब तक चाहूं वो करूं,मेरी मर्जी "।चैनल सर्फिंग,नेट सर्फिंग,लिखना,पढ़ना,
झपकी ले लेना, पौधों को निहारते रहना -कोई नहीं कहेगा ,देर हो जायेगी।किसी काम की जल्दी नहीं है।
हर उम्र का अपना मजा है।सबसे अधिक सुख की अनुभूति होती है जब नाती कहते हैं,"नानी,नानी हैं। "
जीवन में उम्र के साथ खुशियों की परिभाषा बदलती रहती है।