दोस्ती वाला प्यार
दोस्ती वाला प्यार
प्यार भी बहुत ही प्यारा एहसास है। एक ऐसा जज़्बात है जो दुनिया की सब बंदिशों से परे होता है। उम्र, जात-पात सब से परे। प्यार की एक ख़ास बात है, वो ये की प्यार हमेशा ख़ुशियाँ बाटता है। सिर्फ और सिर्फ ख़ुशियाँ। प्यार की गलियों में ख़ुशियों के अलावा और कोई मुसाफिर नहीं होता , खुद प्यार करने वाले भी नहीं। ये कहानी भी ऐसे ही दो प्यार करने वालो की है। सूरज और अनुप्रिया की। दो प्यार करने वाले जिन्हे किसी बंदिश का एहसास नहीं था। होता भी कैसे बचपन है ही ऐसी चीज। किसी बुराई किसी दोष को आपके पास फटकने भी नहीं देता। पर बचपन के प्यार की बात ही और होती है।
सूरज और अनुप्रिया एक ही क्लास में पढ़ते थे। स्कूल जाना दोनों ने एक साथ ही शुरू किया था। छनछन पब्लिक स्कूल के ये दो विद्यार्थी पक्के दोस्त थे। सब कुछ साथ साथ किया करते थे। पढ़ाई साथ , खेलना साथ, लंच में खाना खाना साथ। यहाँ तक की टेस्ट में दोनों के अच्छे नंबर आते तो भी साथ और अगर फ़ैल होकर मार पड़ती तो भी साथ। अरे नहीं नहीं एक साथ मार इसलिए नहीं पड़ती थी क्योंकि प्यार था बल्कि इसलिए पड़ती थी क्योंकि टेस्ट भी मिलकर किया करते थे। अगर सूरज को कोई जवाब नहीं आता तो अनुप्रिया बता देती और अगर कोई अनुप्रिया को नहीं आता तो सूरज बता देता।
पर ज़रुरी नहीं की हर कहानी की हैप्पी एंडिंग हो। कुछ कहानियाँ ऐसी भी होती है जिनका कोई अंत नहीं होता। ये कहानियाँ हमेशा के लिए अधूरी होती है, और ख़ुशियों से भरी हुई भी। जैसे की इनकी कहानी थी। बात उनके सातवीं की परीक्षा के बाद की है। दोनों के माता पिता ने उनका स्कूल बदली करवा दिया और उसके बाद दोनों कभी नहीं मिले। पर आज इतने साल बाद भी दोनों एक दूसरे को भूले नहीं ही। भूलते भी कैसे आखिर वो दोनों एक दूसरे का पहला प्यार जो थे।
आज भी एक दूसरे का नाम सुनकर उनके होठों पर मुस्कान आ जाती है, न चाहते हुए भी। वो एहसास जो उन्हें तब नहीं था आज है। पहले प्यार का एहसास। इसलिए अक्सर एक दूसरे को याद कर लिया करते है। मुस्काते है और फिर अपनी अपनी ज़िन्दगी में आगे बढ़ जाते है, एक दूसरे की खुशी की दुआ लिए।

