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उज्ज्वल भविष्य

उज्ज्वल भविष्य

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आखिरकार आज पांच साल हो गए उसे कॉलेज में नौकरी करते। कई बार वो सोचता है कि और कितने साल ऐसे ही काम चलेगा। न नौकरी पक्की करते है न पूरा वेतन देते हैं। जितना देते है उतने में बस आदमी कह सकता है कि बेरोजगार नही है, बस दाल रोटी से गुजारा हो जाता है। खुदा न खास्ता कहीं कोई दुर्घटना हो जाये, बीमारी हो जाय तो कोई मेडिकल क्लेम नही, न ही प्रोविडेंट फण्ड। प्राइवेट बीमा एक करा रखा है पर उसकी भी किश्त भरना कई बार मुश्किल हो जाता है।


यही सब सोचते वो अपनी क्लास लेने बी ए अंतिम वर्ष की कक्षा में पहुंचा।


"हाँ तो विद्यार्थियों, परीक्षाएं निकट हैं और आप सब का यह बी ए का अंतिम वर्ष है। अच्छे अंक प्राप्त करना ही आपका लक्ष्य होना चाहिए ताकि आपका भविष्य भी उज्ज्वल बन सके"


वो बोलता चला जा रहा था पर भीतर से जैसे एक और आवाज उस पर तंज कस रही थी।

"तुमने भी तो बी ए, एम ए अच्छे अंकों से ही पास की थी, तुमने कौन सा तीर मार लिया, पचासों धक्के खाने के बाद जब कही बात नही बनी तो ये कॉलेज जॉइन कर लिया। पांच साल से एड़िया ही तो रगड़ रहे हों। पैंतीस की उम्र भी निकल गई, अभी कोई ठिकाना नही"

उसके अंदर जैसे उसको ही कोई काट रहा था। पर उसने फिर भी चेहरे पर मुस्कुराहट लाते हुए छात्रों को अच्छे भविष्य के सपने दिखाना जारी रखा।


क्लास खत्म हुई तो उसका एक और साथी उसे क्लास के बाहर निकलते ही मिल गया ।

"अच्छा यार आज आधे दिन के बाद हम सब कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारी कॉलेज के गेट पर धरना देने बैठेगें। सही समय पर पहुंच जाना। साला कल वो एयरवेज वालों को देखा था कैसे रो रहे थे। मालिक घोटाला करके विदेश भाग गया और कर्मचारी जो पिछले तीन महीनों से वेतन की प्रतीक्षा कर रहे थे, कम्पनी से बाहर निकाल दिए गए"


"हाँ यार, सब तरफ हाहाकार मचा है, जाने अपना क्या होगा"

उसने मित्र की बात का जवाब देते हुए जैसे कितने आवेगों को गर्म सांस में छोड़ा।


कॉलेज के गेट पर बिछी लाल डरी पर बैठे कुछ लोग, ऊँघते, बहस करते और अखबार के पन्नो में गुम, इनमे कुछ कॉलेज मैनेजमेंट के खिलाफ पूरे विरोध, कुछ आधे विरोध और कुछ डर को छुपाये हुए कॉन्ट्रैक्ट मुलाजिम।


"साथियों आप सब को पता है कि पिछले कई सालों से हम इस संस्था में काम कर रहे हैं। अपना खून पसीना और समय हमने इस संस्था को दिया है, पर फिर भी हमें अपनी जायज मांगों को लेकर बार बार ये धरना देने पड़ता है। हर माह मिलने वाली मामूली तनखाह पर हर साल मैनेजमेंट हमे अपनी मर्जी से मामूली इंक्रीमेंट देती है। हमने बार बार कहा कि हमे स्वास्थ्य और अन्य पेंशन सुविधाएं भी दी जाय ताकि हम कहीं न कहीं इस मामूली तनखाह में थोड़ा सुरक्षित महसूस करे। पहले ये लोग ज्यादा वेतन रजिस्टर में दर्ज कर हमारे हस्ताक्षर लेते थे और हमे सिर्फ आधा देते थे, पर आप सबके संघर्ष के आगे इन्हें झुकना पड़ा। इन्होंने वेतन तो नही बढ़ाया पर हस्ताक्षर उतनी रकम पर ही करवाते जितना देते। मैं कहता हूँ कि यदि हम अपनी आवाज और जोर से बुलंद करते रहे तो इन्हें बाकी मांगे भी जल्द माननी पड़ेगीं। अब राज्य स्तर पर कॉन्ट्रैक्ट मुलाजिम मुख्यमंत्री आवास पर परसो धरना देंगे। हम सभी साथियों का उस धरने में पहुंचना जरूरी है। आप उम्मीद रखिये कि आज तक आवाज उठाने वालों और अपना हक मांगने वालों की हमेशा जीत हुई है। जय मुलाजिम, जय संघर्ष, प्रबंधक कमेटी मुर्दाबाद, राज्य सरकार मुर्दाबाद"


"मुर्दाबाद, मुर्दाबाद" सबने अपने लीडर के पीछे दबी घुटी आवाज में नारा लगाया।


वो उनके बीच तन कर बैठा था पर जैसे ही उसने देखा कि बी ए अंतिम वर्ष के कुछ छात्र जिन्हें वो सुनहरी और उज्ज्वल भविष्य के सपने दिखाकर आया था, वे भी उसे दूर एक कोने में खड़े ताड़ रहे थे और मुस्कुरा रहे थे। उसे लगा जैसे वो खुद उनके सामने एक मजाक बन कर रह गया हो।


"खुद का भविष्य अभी तक धरने पर टिका है और हमे फालतू के सपने दिखाते रहते हैं"

जैसे छात्रों की ये आवाज उसके कानों में गूंजने लगी और वो सिर झुकाए अपने आपको छुपाने लगा।


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