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Bhavna Thaker

Romance

5.0  

Bhavna Thaker

Romance

कहाँ हो तुम

कहाँ हो तुम

4 mins
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मेरा पहला अधूरा प्यार, कहाँ हो तुम ?

शादी के बाद घर आयी हूँ आते ही याद आ गये तुम,

ले चला है दिल अतीत की डगर पर, कुछ सुहावने दिनों की यादों का दामन थामें !

अंकुर तुम दो साल बड़े थे मुझसे, वो बचपन के एक एक किस्से प्रतिबिंबित हो रहे हैं,

कितना सहज बीत रहा था वक्त, पर काॅलेज के तुम्हारे आखरी दिन ने मेरी दुनिया बदल दी !

क्यूँ तुम कुछ भी बताये बिना चल निकले, क्यूँ मुझे अपने दिल की बात बताने का मौका ना दिया !

वैसे अब इन बातों का कोई मतलब नहीं पर हो तो तुम मेरा पहला प्यार कैसे भूल जाऊँ जब तक ये साँसें चलेगी तुम मुझमें बहोगे, मेरे घर के सामने ही तुम्हारे घर की खिड़की खुलती थी, हम दोनों साथ साथ ही पले-बढ़े। जवानी की दहलीज पर आते-आते कब तुम से एक तरफ़ा प्यार में ढलती रही पता ही नहीं चला !

छोटे-छोटे बहाने बनाकर तुम्हारे घर आती थी, तुमसे मेथ्स की प्रोब्लम सोल्व करवाने, नहीं आने का बहाना बनाकर तुमसे ड़ाँट सुनना और झूठमूठ का रोना, बस तुम्हारा एक स्पर्श कितने नाटक करवाता था,

तुम अरे मेरी प्यारी शालू पगली रो मत करके आँसू पोंछते थे तब मन करता था तुम्हारे गले लग जाऊँ !

मेरी स्कूटी यूँ ही खराब नहीं होती थी। बाबू तुम्हारे पीछे बाइक पर बैठने के मजे लेने के लिये खुद कारीगरी करती थी, पापा तुमसे रिक्वेस्ट करते थे प्लीज़ अंकुर शालू को स्कूल तक लिफ्ट दे दो। मेरी ऑफिस का वक्त हो गया है वरना मैं छोड़ आता, तुम जो इतने अच्छे थे मना कैसे करते।

मुझे स्कूल छोड़कर तुम काॅलेज चले जाते थे, तुम दो साल मुझसे आगे थे पर १२ के बाद मेरी मेथ्स एकाउन्ट विक होते हुए भी मैंने काॅमर्स ज्वाइन किया, तुम्हारा आख़री साल था पर एक साल तुम्हारे करीब रहने की लालच रोक ना पायी ओर तुम्हारी काॅलेज में ही दाखिला लिया !

तुम पढ़ने में तो अव्वल थे ही उपर से स्पोर्ट्स चैंपियन, तुम्हारे फ़ैन्स बहुत थे खासकर लड़कियाँ पर मैं इतराती रहती उन सबसे ज्यादा तुम्हारे करीब जो थी, पर एक शिकायत ज़िन्दगी भर रहेगी तुमने क्यूँ कभी उस नज़र से नहीं देखा। देखते तो शायद आज का माहौल कुछ ओर होता ! काॅलेज के वार्षिक महोत्सव में रोमियो जुलियेट के नाटक में हम दोनों ने पहला इनाम जीता था, बस उस प्रेक्टिस के दौरान तुम्हें अपना सब कुछ मान लिया था, वो कुछ लम्हे मेरे जीने की वजह है आज !

आज फिर सब कुछ वैसा है, खिड़की के पीछे गुलमोहर पे छोटी-छोटी कलियाँ खीली है, जिसे तुम लकड़ी मार गिराया करते थे। तुम्हारे जाते ही वो सारी कलियाँ दुपट्टे में बाँध घर लाती थी, चुमती थी, खाती थी, वो पीली सरसों के हरे भरे खेत !

वो सर्दी में डालियों से टूटकर पत्तियों का गिरना, उस सूखे पत्‍तों को पैर से मसलना तुम्हारा, और तुम्हारे जाते ही पैरों के निशान पे चलती थी वो गुज़रे पल याद आ रहे हैं !

रोज़ शाम को तुम्हारा अपनी छत पर टहलने आना आज फिर से याद आ रहा है। पहली बारिश में छत पर तुम्हें भिगते देखना, तुम्हारा बालों से पानी झटकना, इस कदर पागल बना देता था कभी, मन बेकाबू सा दौड़कर तुमसे लिपटने को मचल उठता था ! और एक बात बताते भी शर्म आती है कि इमली खाने के बाद तुम खट्टा बोलकर जो बुट्टा फेंक दिया करते थे, मैं चुपके से उठाकर खा लिया करती थी और खुद को मन ही मन तुम्हारी बीवी मानना.... कितना बचकाना था पर हाँ मै ये सब करती थी !

आज फिर आवारा मन पहूँच गया है वहाँ, जहाँ से तुम्हें छुप छुपकर देखा करती थी मेरी शर्मिली आँखें !

उस छत पर टिक गई है आज फिर से शायद तुम दिख जाओ, तुम्हें तो ये भी नहीं पता की एक लड़की थी तुम्हारी दिवानी रोज तका करती थी आँखों की कनखियों से तुम्हें !

तुम्हें छत पर देख जुग्नू सी चमक जाती थी मेरी आँखें। एक रोशनी भर देती थी तुम्हारी मौजूदगी मेरी रग रग में !

तुम्हारे चहेरे के नूर का दीदार दूर से ही सही इस बावली को पागल बना देता था, तुम्हें तो ये भी नहीं पता, कागज पे तुम्हारी कार्टून सी तस्वीर बनाकर अकेले ही ढेरों बातें किया करती थी, मैं पगली अपने दिल को बहलाया करती थी !

पता नहीं अब किधर हो तुम। एक ख्वाहिश दिल में दबाये ढूंढ रही हूँ, कभी जो बता पाऊँ तुम्हें की हाँ हम भी उनमें से एक है जो अपने पहले प्यार का इज़हार ना कर पाये ! क्यूँ तुम्हारी नज़रों से छुपती रही, क्यों एक झिझक से घिरी रही हमेशा, क्यों खुद को निहारने का तुम्हें मौका तक ना दिया।

जानती हूँ अब ये सोचना बेकार है, जब करनी थी हिम्मत न कर पाये, अब तो बस दिल में एक दबी-दबी सी पीर लिये जीना है !

पहले प्यार के एहसास की जो कोंपलें फूटी थी दिल में, जिसे इज़हार का खाद मिल पाता तो शायद फूलती फलती ! अब तुम अगर मिल भी जाओ तो क्या है। भूल तक गये होंगे इस पगली को, पर हम कैसे भूले। हमारी बात ओर है हमने तो मोहब्बत की है।।


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