एक गलत फैसला

एक गलत फैसला

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माँ के लिए साल का एक दिन काफ़़ी है क्या ?

अरे ३६५ दिन भी मनाओ तो कम पड़ जाएँगे जनम दाता को शब्दों में ढालना आसान कहाँ, पर आज माँ की याद ने झकझोर कर रख दिया है।

मेरा एक गलत फैसला और अफसोस ज़िन्दगी भर का, उस वक्त मेरी माँ का रोना क्यों नहीं समझ पायी मैं, वो आज याद आ रहा है सबकुछ..!

कितना कुछ बदल गया था मायके में शादी के कुछ साल बाद ..!

कहाँ गयी वो चहल पहल जब माँ थी, मेरे आने की खबर सुनते ही वो झुर्रियों वाला चेहरा खिल उठता था, माँ खुद अपने हाथों से मेरी पसंद की सारी चीज़ें बनाती थी, जितने दिन रहूँ मानों माँ का दिल भरता ही नहीं था।

मै भी पूरे हक से घर पर कब्जा कर माँ को नये नये कामों में हाथ बंटाती थी...और लौटते समय अचार पापड़ वड़ियां और मसाले अपने हाथों से बनाकर पेक करके जबरदस्ती साथ में बाँध देती ओर जमाईराजा का फेवरेट मिर्ची का अचार..!

और हाँ सबसे छुपकर वो सौ का नोट मेरे हाथ में थमाकर पापा को अलग से बोलती की बिटिया जा रही है सगुन के पैसे दीजिये ..!

पापा भी जानते होते थे की खुद ने तो दिये ही होंगे फिर भी दिलवा रही है, दोनों की आँखों से हो रही गुफ्तेगु देख में खुश होती थी..!

अब जब जाती हूँ मायके पर भरापूरा घर भी माँ की मौजूदगी के बिना काटने को दौड़ता है। पापा, भैया, भाभी सब बड़े जतन से रखते हैं पर माँ की कमी कोना कोना महसूस करवाता है।

मेरी ज़िन्दगी का सबसे बडा गलत फैसला आज भी कई बार नींद उड़ा देता है।

माँ को केंसर था, उनके देहांत के कुछ दिन पहले पूरा एक हफ्ता रही उनके साथ, फिर माँ की तबीयत कुछ ठीक थी तो मैं वापस घर जाने लगी, क्यूँकि मेेरा बेटा एक हफ्ते के लिए लंदन से घर आ रहा था, तो बेटे को मिलने की लालच रोक नहीं पाई, पर पहली बार माँ रो रोकर कह रही थी..!

कुछ दिन रुक जा मेरा कोई भरोसा नहीं, कब ऊपर चली जाऊँ। मैंने माँ को जैसे तैसे समझाया की बहुत जल्दी वापस आ जाऊँगी ये कहकर चली आयी घर।

पर आज भी माँ का रोना अफ़सोस की आग लगा जाता है क्यों नहीं समझी मैं, क्यूं चली गयी माँ को रोता छोड़, बस दो दिन की तो बात थी..!

 हाँ मेरे घर वापस आने के दो दिन बाद ही भैया का फोन आया, जल्दी आ जाओ, माँ आखरी सांसें गिन रही है, फोन आते ही तुरंत निकली पर हाय री किस्मत आधे रास्ते में थी की भैया का मोबाइल पे कोल आया माँ नहीं रही..!

अब आज तक कोस रही हूँ मेरे उस फैसले को ... अगर दो दिन रुक जाती तो माँ को मिल पाती, माँ पे क्या बीती होगी जब उसे रोता छोड़ मैं निकल गई थी पर अब तो बस माँ की यादें और एक टीस ही बची है जो कभी कभी बहुत ही झकझोर जाती है...जब माँ का जिक्र होता है इतना ही बोल पाती हूँ, मिस यू माँ ...!

माँ सबकुछ होती है

दोस्तो, कभी माँ का दिल मत दुखाना क्यूंकि जब वो नहीं रहती तब उसकी अहमियत पता चलती है।


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