मर्द के भी अहसास होते है
मर्द के भी अहसास होते है
लिखने वालों ने कितना कुछ है लिखा
औरत,बेटी अहसास,प्यार
कायनात के हर जर्रे पर बेसूमार लिखा है,
क्यूँ सबने एक शख्सियत को अनदेखा किया..!
'पुरुष को'
जी हाँ अगर स्त्री धरती का आधार है तो मर्द उस आधार की नींव है..!
जो टीवी या फिल्मों में देखते है वो छवि हरगिज़ नहीं पुरुष की ,
किशोरावस्था से ही खुद को तराशता है ज़िन्दगी के हर एक संघर्ष ओर चुनौतियों का सामना करने...!
वैसे अपने आप में एक संपूर्ण,
आँखों में नूर लिये शराफ़त, अहसास ओर संवेदना को परिभाषित करता मर्द उसे शब्दों में ढ़ालना आसान नहीं,
हर एक के प्रति नर्मी ओर तहेज़िब का लहजा समेटे गोरववंत गरिमा को पेश करता..!
शब्दों को तमीज़ के शृंगार में लपेटे अपने भाव से परिवार को परवाज़ में समेटे, हर जिम्मेदारी को बखूबी निभाता ज़िन्दगी की चुनौतियों को सीने पे जेलता,
अपना कर्तव्य निभाए जाता है...!
दिल में खुद के जीवन से जुड़ी हर औरत का पूरा सन्मान लिये,
उसे पूरी इमानदारी से हिम्मत ओर आत्मविश्वास से रक्षता है..!
औरत को विश्वास दिलाता है उसके होते कोई परेशानी छू न पाएँगी..!
जो समझता है की औरत भी इंसान है ओर
दिलाता है वो अहसास औरत की हथेलियों को अपने मजबूत हाथ में लेकर की हाँ में तुम्हारा दोस्त हूँ,हमदर्द हूँ ,हमनवाज़ हूँ.....!
एक ही बिस्तर पर पास-पास सो रहे दो शरीरों के साँसों की आवाज़ तक सुनाई देती है, पर ज़िंदगी की उलझनों से घिरे पुरुष के भीतरी धमासान का शोर भूले से भी नहीं जताता अपनी अर्धांगिनी को,
मैंने कभी किसी पुरुष का तकिया गीला नहीं देखा..!
पूरे परिवार की अस्क्यामत को खुद के कँधों पर लादे देता है एक सुख संपन्न भरा जीवन सबको...!
अपने शौक़ को भूल पूरा किये जाता है नि:स्वार्थ सपने सबके,
खुद चाहे कितना टूटा हो भीतर से पग-पग सबको हौसला देता...!
हाँ एक मर्द ही है पूरी सृष्टि में सहनशीलता का प्रतिक है....!
जो कभी संघर्ष से ड़गमगाता है तब अपने पर्याय सी स्त्री के कँधे पर सर रखकर अश्कों की नमी को पीते जताता भी है....!
की हाँ मैं अधूरा हूँ तुम बिन,
सलाम है धैर्यवान,हिम्मतवान,शौर्यवान मर्द के जज़बे को..!
पुरुष के वात्सल्य का झरना एक बार ही आँखों में सैलाब लाता है,
बेटी को,बिदा करते वक्त आस-पास की भीड़ को भूलकर फूट-फूट कर रोने में उसे कोई शर्म नहीं,
तभी तो हर बेटी का हीरो उसके पापा होते है..!
कहा जाता है की स्त्री गहन है उसे चाहते रहो समझने की जरुरत नहीं,
मैं हर स्त्री को कहूँगी पुरुष को सिर्फ़ समझो वो भावुक बच्चे सा है तुम्हें खुद ब खुद चाहने लगेगा॥