अहं ने ली एक रिश्ते की बलि

अहं ने ली एक रिश्ते की बलि

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रिया क्या हो गया है तुम्हें आजकल।

तुम मेरा स्वभाव जानती हो ना, बोल देता हूँ बस मन मैं कुछ नहीं होता।

निशांत दो दिन से मनाने की कोशिश कर रहा था रिया को, पर कुछ दिनों से रिया ने रुठना छोड़ दिया, झगड़ना छोड़ दिया

दिल की नाजुक बात-बात में जो रो देती थी उसने रोना भी छोड़ दिया..!

कितना बोलती थी निशांत के ताने का जवाब उलाहना से देती थी, बस एक झूठी हँसी को होठों पर सजाए हर बात पे मुस्कुरा देती है, समेट लिए उसने अपने सारे रंग एक दायरा बना लिया अमोघ कवच सा..!

हँसती खिलखिलाती रिया बूत सी बन गई, जब पहचान ही खो गई तो क्या खुलकर जीना।

निशांत ने हंमेशा एक प्रभाव बनाने की कोशिश की पति होने की धौंस जमाते हर छोटी मोटी बातों पर रोक टोक..!

कपड़े कैसे पहनने से लेकर खाना कैसे बनाया जाय पर बहस, रिया पढ़ी लिखी आज़ाद खयालात की लड़की उसकी हर दलील लाज़मी होती कई बार निशांत को दिल ही दिल में रिया सही लगती पर उसका मेल ईगो स्वीकार करने से रोकता,

ओर हर बात पे बहस हो जाती शुरुआत में निशांत मनाता, बहलाता ओर सुलह हो जाती थी।

रिया को भी लगता की प्यार में तकरार तो होती रहती है ओर वो लेट गो कर देती..!

पर कुछ समय से हद ही हो गई रिया के किसी रिएक्शन का निशांत पर कोई असर नहीं हो रहा था,

दो दिन पहले रिया की मम्मी का फोन आया की उसके पापा का छोटा सा ऑपरेशन है तो दो चार दिन के लिए आ जाओ तो मुझे सहुलियत रहेगी..!

निशांत ने साफ़ मना कर दिया। इतनी छोटी बात के लिए मायके क्यूँ जाना इतने दिन मेरे खाने पीने का क्या होगा ?

धमासान हुआ दोनों के बीच रिया ने दो दिन से खाना नहीं खाया, पर निशांत मजे से खा कर बिंदास नोर्मल सा घूम रहा था, उसे तो सब नोर्मल लग रहा था..!

रिया आज तक सह रही थी खुद की दुनिया थी खुद निपट लेती थी, दरार अब खाई बन चुकी थी मरम्मत भी अब इस रिश्ते को नहीं बचा पाएगी, क्यूँकि इस बार रिया के वजूद पर ही घाव लगा सोचने लगी की निशांत इतना स्वार्थी कैसे हो सकता है मेरे माँ पापा की कोई अहमियत ही नहीं !

रिया बुत सी बन गई वो कतराने लगी निशांत से बात करने से, धीरे-धीरे निशांत के प्रति रिया के अहसास बदलने लगे, प्यारा निशांत नश्तर सा चुभने लगा घर कैद जैसा लगने लगा..!

दूर होती जा रही थी सारे अहसासों से सारे बंधनों से, आज तक वो लड़ लेती थी बेधड़क,

रो लेती थी तो निशांत पर असर होता था अब महसूस करने लगी रिया कि निशांत पर उसके रुठने का, रोने का, चिल्लाने का कोई असर नहीं होता।

निशांत रिया पर सिर्फ़ अधिकार समझता था फ़र्ज़ के नाम पर सिर्फ़ मंगलसूत्र बाँधा था जिसकी कीमत रोज़ चुकाती रही रिया,

निशांत आज थोड़ा गंभीर हुआ मनाने चला आया रिया कुछ तो बोलो तुम्हारी चुप्पी से घुटन होती है घर खाने को दौड़ता है,

मेरी बातों को दिल पर मत लिया करो मेरी पहले वाली रिया बन जाओ मेरी प्यारी रिया ..!

एक दृढ़ संकल्प के साथ रिया इतना ही बोली निशांत स्त्री तब तक ही तुम्हारी है जब तक तुम अपनापन प्यार ओर इज्ज़त दोगे, जब तक तुमसे ये सब मिलता रहा मैं संपूर्ण तुम्हारी थी, आज तुम मेरे लिए पराए हो, घिन्न आती है तुमसे

तुमने अपने अभिमान के उपर हमारे रिश्ते की बली चढ़ा दी, तुम्हारे अहं को पोषते इस हद तक गिर गए की मेरे माँ पापा की भावनाओं को कुचल ड़ाला..! असली मर्द वो है जो बीवी को गुलाम नहीं दोस्त समझे ना की अपनी मर्दानगी का परिचय बीवी का दमन करके दें।

मैं सुबह की ट्रेन से माँ-पापा के पास जा रही हूँ, अब तुम अपने स्वार्थ ओर अहं को पोषते रहो मुझे तुमसे तलाक चाहिए..!

जरुरी कागज़ात भेज दूँगी दस्तखत कर देना, निशांत ने इस बार के झगड़े का ये अंजाम तो सोचा ही नहीं था..!

देखो रिया तुम गुस्से में हो जल्दबाजी मत करो पर कुछ ऐसी नज़र से रिया ने देखा की निशांत

रिया के चेहरे की दृढ़ता देखकर आगे कुछ बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाया..!

बस जो तुम्हारी मर्ज़ी बोलकर चल दिया ओर एक प्यारा रिश्ता मेल इगो के आगे हार गया।

बचाने को रिया बचा सकती थी रिश्ता पर किस उम्मीद पे बचाती पूरी ज़िंदगी घुटन में जीने से बेहतर है की इस रिश्ते का अग्नि संस्कार ही कर दें..!

समयानुसार निशांत कुछ दिन बदल सकता है, पर इंसान की फ़ितरत भगवान भी नहीं बदल सकता निशांत के स्वभाव के चलते ये तो होना ही था जो हुआ..!

रिया आज कुछ आज़ादी सा महसूस कर रही है जंजीर को गले से उतारकर निशांत के हाथ में थमा दी, निशांत सोच रहा है काश की चाहत के धागों में पिरोए काले मनकों की गरिमा समझता,तो रिया आज भी मेरी होती स्त्री को पाना आसन है ज़िंदगी भर अपना बनाए रखनाा कोई हुन्नर नहीं बस थोड़ी सी इज्ज़त ओर अपनापन मिले तो जी उठती है हमेशा के लिए समर्पित, पर अब क्या पछताना जब चिड़िया चुग गई खेत।।


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