अजनबी सी..
अजनबी सी..
अंजू बौराई सी घूम रही है। भाई और भतीजे उसका मजाक बना रहे हैं। पर उस पर फर्क नहीं पड़ता। वह अपने भाई और भतीजे के मजाक का बुरा मानने बैठे या अपनी सहेली मीता के आने की तैयारी करें । अंजू और मीता दोनों बचपन की सहेलियाँ, नहीं सहेलियाँ नहीं सहपाठी थी । दोनों का स्वभाव और एक दूसरे से बिल्कुल भिन्न। बचपन से साथ पढ़ते हुए भी कभी एक दूसरे से दोस्ती नहीं हुई। फिर जब बारहवीं में दोनों ने एक ही कॉलेज में एडमिशन लिया तो एक ही विषय होने के कारण ना चाहते हुए भी दोनों दोस्त (लगभग) बन गए ।अंजू खिलंदड़, झल्ली, कम बोलने वाली और कुछ कुछ लड़कों जैसी थी। वहीं मीता सामान्य लड़कियों की तरह पंचायत करने वाली मुँहफट थी। संक्षेप में दोनों को एक दूसरे का साथ इतना पसंद नहीं था। पर कालेज में लड़कियों की संख्या कम होने के कारण एक दूसरे के साथ रहना मजबूरी थी या उनके पास इसके अलावा दूसरा विकल्प नही था। इसीलिए तो शादी के इतने बरसों बाद तक अंजू ने कभी उसके बारे में पता लगाने की कोशिश भी नही की।
कुछ सालों से फेसबुक व्हाट्सएप समूह बनने के बाद से हाय हेलो शुरू हुई तब पता चला कि मीता उसी शहर में रहती है, जहां पिछले पाँच सालों से ट्रांसफर होकर उसके भाई भाभी ने रहना शुरू किया है (मतलब अंजू का अस्थायी मायका) । अंजू ने मीता से वादा किया कि वह जब भी मायके आएगी तो उससे मिलने आएगी। पर मायके जाकर माँ की गोद से निकलना ही नहीं हो पाता है तो अंजू कभी मीता से मिलने जा ही नहीं पायी। इस बार तो उसके आते ही मीता का फोन आया कि तू तो आ नहीं पाती है तो मैं ही आ जाती हूँ।
वह कहते हैं ना मायके का तो कुत्ता भी प्यारा होता है। तो इसीलिए अब अंजू सब तैयारी कर रही है। उसको अपने आपको अच्छे से दिखाना है। दिखाना है यह भी कोई बात हुई। मैंने बताया ना कि वह दोस्त नहीं थी। अंजू सामान्य घर की थी तो उसका घर भी सामान्य था। वही मीता थोड़ी अमीर थी। उसका घर उस जमाने में भी आलीशान था । घर मे ड्राइंग रूम था, सोफा, मीता का अलग कमर, कुल मिलाकर अंजू थोड़ा सा हीन भावना महसूस करती । मीता एकदम लड़कियों जैसी थी। लंबे बालों की चोटी, इस्त्री किये हुए कपड़े, दुप्पटा व्यवस्तिथ कंधों पर पिन से लगा (अंजू कभी अगर सलवार कुर्ता पहनती और दुप्पटा लेती भी तो दुप्पटा या तो गले से चिपका होता शंकर भगवान के नाग जैसा या कमर में बंधा रहता)। मीता का परिवार भी थोड़े संकुचित विचारों का था। कहीं पर भी जाना हो तो मम्मी से पूछ कर बताऊंगी। भैया से पूछ कर बताऊंगी । भैया देख लेंगे तो डाँटेंगे। कहीं जाना होता तो मीता को अपने भाइयों के साथ ही जाने को मिलता।
वैसे तो अंजू को बचपन से चाह थी कि उसका भी एक बड़ा भाई होता। जो उसे ऐसे डांट सकता । काश वह भी कह सकती कि भैया से पूछ कर बताऊँगी या भैया डाँटेंगे। कभी-कभी उससे खीझ भी होती क्या तुझे हमेशा बॉडीगॉर्ड लेकर चलना पड़ता है। कभी अंजू को लगता कि वह नसीब वाली है कि एक संकुचित परिवार की बेटी नहीं है। उसके मम्मी पापा ने उसे पूरी स्वतंत्रता दी है । अंजू को घर में किसी भी प्रकार की बंदिश नहीं थी। वह हमेशा कटे बालों में बिना कंघी किये बस लड़कों की तरह उंगलियों से बाल संवार कर साइकिल लेकर घूमती, भटकती रहती।
यह तो बचपन की बातें थी। अंजू आज भी वैसी ही है। जब पहली दो तीन बार जब ससुराल वालों ने कहा कि मायके से भाई लेने आएगा। यहां से पति लेने जाएगा तो उसने अपने पति को साफ बोल दिया, "यह सब मुझसे ना होगा। एक लोग लेने आएं। एक लोग छोड़ने जाएं। आप मुझे ट्रेन में बैठा देना वहां पर भाई रिसीव कर लेगा । वहां से भाई ट्रेन में बैठा देगा, यहां आप रिसीव कर लेना मुझे अपने आगे पीछे पूँछ लगा कर नहीं घूमना। अंजू आज भी बिंदास थी और वैसे ही हीन भावना से ग्रसित कि कहीं उसका घर, मीता के घर से खराब ना दिखे । वैसे अब उसके भाई के घर में भी एक ड्राइंग रूम था अच्छा सा सोफा था। वह बचपन की छोटी छोटी बातें आज भी दिमाग में फंसी हुई थी। बचपन में तो वह सारा दिन शर्ट पैंट, फ्रॉक कुछ भी पहन कर घूमती थी पर आज उसने अच्छी सी साड़ी पहनी थी। मेकअप किया था। थोड़े गहने भी पहने थे। पता नहीं क्यों, क्या वह अपनी दोस्त को दिखाना चाहती थी कि वह भी एक लड़की है। जो भी हो अंजू आज प्यारी लग रही थी ।
थोड़ी देर बाद मीता का फोन आया, "अरे यार मैं आ गई हूँ तू जरा अपनी सोसाइटी में अंदर आने का गेटपास भेज"।
"ओके मैं पास भेजती हूँ और रुक मैं तुझे लेने गेट पर आती हूँ"। अच्छा लगता है ना दोस्त को रिसीव करने जाना। अंजू भागते हुए उतरकर सोसायटी के गेट पर आ गयी। उसे लग रहा था मीता टैक्सी कर के आई होगी या उसका पति उसे छोड़ने आया होगा। आखिर बचपन में हमेशा उसके भाई ही उसे छोड़ने आते थे। तबसे एक कार एकदम से उसके सामने आ कर रुकी। कार को एक महिला चला रही थी। धूप का चश्मा लगाए, करीने से कटे खुले बाल, लम्बा फ्रॉक गाउन पहने महिला उतरी वह इधर उधर देख रही थी । उसे देख कर अंजू को लगा यह तो मीता है , शायद। नही यह मीता नही हो सकती। वहीं मीता अंजू को देख रही थी, लंबे बालों का व्यवस्तिथ जूड़ा, हल्का मेकअप, गहने, कलफ वाली साड़ी, मीता भी अंजू को देख कर सोच रही थी, नही ये 'झल्ली अंजू' तो बिल्कुल नही हो सकती। उसने फ़ोन लगाया तो सामने अंजू ने फ़ोन उठाया। दोनो एकदूसरे को देख कर अचंभित रह गयी। बचपन से साथ रही सहेलियाँ आज एक दूसरे के लिए अजनबी थी। अंजू इस कार चलाती मीता को देखकर सोच ही नही पा रही थी कि ये वही मीता है जो अपने से चार साल छोटे भाई का हाथ पकड़े बिना कही जाती नही थी।
वही मीता सोच रही थी कि यह वही झल्ली सी अंजू है जिसके बालों में कंघी भी नही की रहती थी, कितनी व्यवस्तिथ है आज।
समय, परिवार, हमसफ़र के साथ, हम महिलाओं के व्यक्तित्व में इतना परिवर्तन हो जाता है,कि पीछे घूम कर देखने पर हम खुद अपने आप को पहचान नही पाते। हमारे बरसो पुराने दोस्तों के लिए तो क्या अक्सर हम अपने आप के लिए भी अजनबी हो जाते है ।
