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Arunima Thakur

Abstract Children Stories Inspirational

4.9  

Arunima Thakur

Abstract Children Stories Inspirational

जीवन के नवरंग (नीला)

जीवन के नवरंग (नीला)

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372


नवरात्रि के नव रंग 

(तीसरा दिवस - नीला रंग)

नौ देवियों के रूप में तीसरी देवी, इस संसार की जीवित शक्ति हमारी मॉसी को प्रणाम है ।

 नवरात्रि का तीसरा दिवस माँ चंद्रघंटा के नाम है। 

नीला रंग दिव्य ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है। वास्तव में देखा जाए तो यह संसार ऊर्जा का ही एक रूप है। विस्तृत अर्थों में जिसे हम भगवान, खुदा, गॉड या पारलौकिक शक्ति मानते है वह एक असीमित ऊर्जा के अलग अलग नाम है। जैसे अलग अलग भाषा मे माँ को मम्मी, आई, अम्मा बोलते है वैसे ही भगवान, खुदा, वाहे गुरु उस शक्ति के ही नाम है। एक सवाल आप सब से.... महाराष्ट्र में माँ को आई बोलते है और उत्तर भारत में अम्मा, माई, तो महाराष्ट्र में रहने वाला कोई उत्तर भारतीय अपनी माँ को आई नही बुला सकता क्या ? बुला सकता है ना ? इससे न तो व्यक्ति पर ना ही रिश्ते पर कोई असर पड़ेगा। मानते है ना। बस उसी तरह अलग अलग धर्म ऊर्जा के अलग अलग नाम मात्र है ऊर्जा एक ही है। वही ऊर्जा हम सब मे निहित है। इसीलिए कहा गया है 'अहम ब्रम्हास्मि' । यही ऊर्जा सकारात्मक और नकारात्मक दोनो रूप में हमारे अंदर होती है। जरूरत है सकारात्मक दिव्य ऊर्जा को पोषित करने की। चलिये आज की कहानी पढ़ते है।

कैसा अजीब दिन है। क्यों औरत के निर्णय को स्वीकार नही किया जाता। मधुर बेचैन सी यहाँ से वहाँ घूम रही है, घर मे भी, विचारों में भी। घर का कुछ काम भी नही हो पा रहा है। अभी आफिस भी निकलना है। शाम को क्लब द्वारा आयोजित सेमिनार में उसे व्याख्यान भी देना है। अभी उसको लिखना भी है। हे भगवान यह सब एक ही दिन में क्यों आ गया। अरे हाँ शाम को डॉक्टर का अपॉइंटमेंट भी है। कुछ भी टाल नही सकती। आज शुक्रवार है डॉक्टर के पास तो आज ही जाना होगा । आज हो जाएगा तो शनिवार, रविवार दो दिन आराम मिल जाएगा। शरीर को आराम तो मिल जाएगा पर इस दिमाग का क्या ? यह सेमिनार भी आज ही होना था ? अरे अगले सप्ताह हो जाता तो क्या बिगड़ता। 

वह सिर पर हाथ रख कर बैठ गयी। नही उसे कोई निर्णय नही लेना है निर्णय वह ले चुकी है। अब उसे कमजोर नही पड़ना है। उसने डॉक्टर को फ़ोन करके कल सुबह की अपॉइंटमेंट ले ली। वह उठी कागज कलम लेकर आज के सेमिनार के लिए व्याख्यान लिखने बैठ गयी। कितना आसान है "बालिका भ्रूण हत्या" विषय पर लिखना, पर उसके हाथ काँप रहे है। 

उसके मष्तिष्क में पिछले दिनों की घटनाओं की यादे घुमड़ने लगी। मधुर एक पढ़ी लिखी, उच्च शिक्षिता, नौकरीपेशा सामाजिक कार्यो में जोर शोर से भाग लेने वाली महिला है। पति और ससुराल का पूरा सहयोग है। एक सात वर्षीय बेटी की माँ है। बेटी के बाद पति की सहमति से यह निर्णय लिया था कि एक बेटी ही बस है। अच्छा खुशहाल परिवार है। अभी कुछ महिनों पहले जब उसे पता चला कि वह माँ बनने वाली है तो उसने अपने पति को बताया। पति ने सामान्य रूप से लिया, बोले,"जब इतनी एहतियात के बाद भी आ गया है तो जीवन का स्वागत करना चाहिये"। मधुर बिफर पड़ी,"आप का क्या ...सहना तो मुझे पड़ेगा। मेरा कॅरियर, मेरा शरीर, सब पर असर पड़ेगा"। 

पति ने बोला,"मैं सहमत हूँ तुम्हारी बात से। तुम्हे नही चाहिए तो, डॉक्टर को दिखा कर निकलवा देंगे। तुम्हारी खुशी में मेरी खुशी है"।

मधुर बोली, "ऐसा करते है थोड़े दिन इंतजार कर लेते है। जब गिराना ही है तो भ्रूण परीक्षण के बाद गिराते है"।

पति को यह बात पसन्द नही आई। वो बोले, "कोई अनपढ़ नासमझ होती तो मैं उसे समझाता कि यह गलत है, पाप है। तुम्हे नही चाहिए तो अभी निकलवा दो। भ्रूण परीक्षण क्यों ? अगर लड़का हुआ तो क्या तुम्हारे कॅरियर, शरीर पर असर नही पड़ेगा" ? 

"अरे लड़का होगा तो परिवार पूरा हो जाएगा" मधुर थोड़े लाड़ से पति के करीब आ कर बोली। 

"परिवार तो हमारा अभी भी पूरा ही है। मुझे तुम्हारी सोच पर हैरत हो रही है। देखो इस मामले में मैं तुम्हारे साथ नही हूँ।"

"यह क्या बात हुई, मेरी कोख और मुझे ही निर्णय लेने का अधिकार नही", मधुर गुस्से से बोली। 

पति शांत स्वर में बोले, "तुम्हे तुम्हारी कोख के निर्णय पर पूरा अधिकार है। पर यह निर्णय निष्पक्ष होना चाहिए। भ्रूण परीक्षण के बाद भ्रूण हत्या निसन्देह गलत है"। 

मधुर यह जानती है कि यह गलत है पर....एक मन जो कहता है, बेटे बुढापे का सहारा होते है, वंश चलाते है, उसको कैसे समझाए। अब ऊपर से यह व्याख्यान, जैसे सब मिल कर मधुर को समझाने पर तुले है। मधुर सिर झटक कर खड़ी हो गयी नही उसे किसी की नही सुननी। उसने परीक्षण करवा लिया है। अब कल जाकर वह अबॉर्शन करवा लेगी। ड्राइवर आ गया था। वह तैयार हो कर आफिस के लिए निकल गयी। कार में बैठते ही सामने डैश बोर्ड पर लगी देवी माता की मूर्ति को प्रणाम किया। रास्ते मे ड्राइवर को निर्देश दिए कि शाम को छः बजे उसे सेमिनार के लिए पहुँचना है। सेमिनार खत्म होने पर वह फ़ोन करेगी। फिर कल छुट्टी है पर सुबह की डॉक्टर की अपॉइंटमेंट है।

शाम को सेमिनार से आते वह बहुत थक गई थी पर उसके चेहरे पर गर्व और होंठो पर मुस्कान थी। आज उसके व्याख्यान की क्या जोरदार तारीफ हुई। तालियों की गड़गड़ाहट तो रुक ही नही रही थी। लोगों की आँखों मे आँसू आ गए थे। कौन कहता है कि व्याख्यान अंतर्मन की आवाज होते है। कम से कम मधुर का अंतर्मन इतने शानदार व्याख्यान के बाद भी कल अबॉर्शन के लिए तैयार था।

अचानक से ब्रेक लगने के कारण वह विचारों से बाहर आई । उसने सामने देखा, कुछ कुत्ते लड़ते लड़ते बीचोबीच सड़क पर आ गए थे। वे एक पोटली के लिए झगड़ रहे थे। मधुर मुँह बनाते हुए बोली, "इतनी जागरूकता के बाद भी लोग कचरा यूँ ही कही भी फेंक देते है"। 

ड्राइवर आश्चर्य से पोटली को देख रहा था। वह कार का दरवाजा खोल कर नीचे उतरा।

मधुर बोली,"नीचे उतरने की क्या जरूरत है ? कार बगल से निकाल लो"। 

ड्राइवर अनुभवी था। वह बोला, "मैडम पोटली में शायद..."। 

ड्राइवर ने उन कुत्तो को भगा कर पोटली उठायी। तब से मधुर भी उसके पास पहुंच गई। ड्राइवर के अंदेशेनुसार उस पोटली में नवजात बच्चा था। 

ड्राइवर एक गंदी सी गाली लगभग देते देते चुप हो गया और मधुर को दिखाते हुए बोला,"कचरा नही लक्ष्मी है मैडम। कोई नासमझ फेंक गया है"।

मधुर आश्चर्य से ड्राइवर को देखते हुए बोली,"तुम्हे कैसे मालूम लड़की ही है" ?

"अरे मैडम लड़के को कहां कोई फेंकता है। लड़के तो नाजायज भी नही होते, पैदा होते ही खरीद लिए जाते है, वंशबेल बढ़ाने के लिये। "।

नसीब से बच्ची ठीक थी कुत्तें उसे नुकसान नही पहुँचा पाये थे। "अब इसका क्या करना है" ? उसने कुछ अपने आप से, कुछ ड्राइवर से पूछा।

ड्राइवर कुछ नही बोला,"वह उस महिला को देख रहा था जो अभी अभी अपने विचारों से क्रांति की बाते, बालिकाओं के विकास की बाते, उनके संरक्षण इनके उचित विकास की बाते कर रही थी। जिसका कहना था "बालिकाओं का विकास यह सामाजिक जिम्मेदारी है जिसे अपने अपने स्तर पर हम सबको निभानी चाहिए"। 

 तो वह ही बोली,"फेक दो यही। कहा चक्कर मे पड़ोगे। जब जन्म देने वाले को नही पड़ी है"।

ड्राइवर उसको कुछ आश्चर्य कुछ हिराकत से देखते हुए बोला,"इस मासूम को यहाँ मरने के लिए मैं नही छोड़ सकता। बस थोड़ा समय लगेगा पुलिस में लिखवा कर घर चले जायेंगे"।

"अरे ये पुलिस के चक्कर में कौन पड़ेगा। छोड़ो इसको और चलो यहाँ से"।

ठीक है मैडम मैं आपको घर पर छोड़ कर फिर इसे ले कर पुलिस स्टेशन जाऊँगा। पर मैं इस अबोध को यहाँ मरने के लिए नही छोड़ सकता", कहते हुए ड्राइवर बच्ची को गोद मे लेकर कार में बैठ गया ।

अपनी झेंप छिपाने के लिए वह बोली,"अरे इतना खराब समय है। पुलिस में दोगे तो वह अनाथालय में भेज देंगे और आजकल आये दिन अनाथालयों के बारे में कितना खराब खराब निकलता रहता है"।

"नही मैडम जी मैं पुलिस को बता कर इस लड़की को पालूंगा", कार चलाते हुए ड्राइवर ने उत्तर दिया

पर तुम्हारे दो लड़कियाँ तो पहले से ही है। इतनी मंहगाई में कैसे पाल पाओगे ? 

बस मैडम जैसे दो पल रही है वैसे ही ये भी पल जायेगी। बच्चे अपना भाग्य लिखवा कर आते है। वैसे मैडम जी मेरी छोटी बिटिया ऐसे ही सड़क से पायी थी मैंने"। 

पीछे बैठी मधुर सामने काँच में दिखता ड्राइवर का अक्स देख रही थी। गोद मे बच्ची लिए एक आत्मिक अनुभूति से चमकता उसका चेहरा दिव्य ऊर्जा से प्रकाशित लग रहा था। सामने डैश बोर्ड पर लगी देवी माता के चेहरे में उसका चेहरा या उसके चेहरे पर माता का चेहरा परिलक्षित हो रहा था। पता नही शर्म से या श्रद्धा से मधुर का सिर झुक गया। वह उस गरीब आदमी के सामने खुद को बहुत छोटा महसूस कर रही थी। 

उसने ड्राइवर को बोला,"पहले पुलिस स्टेशन ही चलते है। अभी भी देर नही हुई है । कल सुबह मत आना मैं कही नही जाऊंगी।

ड्राइवर ने याद दिलाते हुए कहा,"कल आपका डॉक्टर के साथ अपॉइंटमेंट है"।

"नही अब उसकी जरूरत नही है। और हा इस बच्ची की पूरी जिम्मेदारी मेरी" ।

अगर हर नागरिक अपनी जिम्मेदारी समझ ले तो देश में अनाथालयों की जरूरत ही ना पड़े।


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