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प्रतिफल

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आज फिर लड़के वाले देखने आ रहे थे। घर को बहुत सुंदरता से सजाया गया। सोफे पे नया कवर डाला गया ,कुशन पे कढ़ाई वाला कवर लगा, टेबल क्लॉथ भी भी चेंज किया गया। फूल दान पर ताजे गुलाबो के फूल से सजाया गया। और कुछ पेंटिंग थी।उन्हें भी इस तरफ दीवाल से टंगा दिया गया कि सामने वाले कि नजर उसमे पड़े।कोई कसर नहीं बची अपना वैभव दिखाने में।इन सबके बावजूद सारी क्रीम फैल हो गयी 30 वर्ष की कृपा की काली रंगत छुपाने में।जब भी कोई लड़का देखने आता तो बस रंग की वजह से बात ठहर जाती। सर्वगुण सम्पन्न होने के बावजूद सिर्फ काला रंग उसके लिए अभिशाप बन चुका था। हुबहु अपनी पिता की तरह दिखने वाली श्याम रंग भी पिता की तरह था। जाने क्यों कहते है लोग की जो बेटी पिता के चेहरे में हो! तो, वो भाग्यशाली होती है। जबकि उसकी छोटी बहन टीना माँ के चेहरे और रंग में गई गोरी सुंदरता की मूरत पर उतनी ही बदमिजाज, घमंडी थी। जो भी लड़का कृपा को देखने आता वो टीना को पसंद कर जाता। और अंततः टीना को जब लड़के वाले कृपा को देखने आते तो बाहर भेज दिया जाता। बार-बार लड़का देखने आना तंग आ चुकी थी कृपा। अब वो अपना आत्मविश्वास को खोना नहीं चाहती थी। सबकुछ अच्छा है तो गुण महत्व नहीं रखते क्या?, क्या काला रंग इंसानों का नहीं होता? खीझ जाती कृपा। रोज रोज के इस तमाशे से। इतनी पढ़ी-लिखी फिर भी व्यर्थ माता-पिता तो बस हाथ पीले कर देना ही अपनी जिम्मेदारी समझते है। जाने क्यों अब भी लड़कियों को बोझ समझा जाता है।

आज भी लड़के वाले, जब घर आये तो टीना कॉलेज गयी थी। टीना के आने के पहले जल्दी लड़के वाले आये और कृपा को पसंद कर चले जाएं बस यही कृपा के घरवालों के दिमाग मे था। समय से लड़के वाले आये। कृपा बहुत सादगी के साथ आई,थोड़ी देर बाद सबके लिए चाय का कप ले आई।कृपा से लड़के ने अलग से मिलने की इच्छा जाहिर की, दोनों गार्डन एरिया में गए। कुछ हल्की-फुल्की बातचीत हुई। लड़के ने कृपा की पढ़ाई के बार में पूछा फिर कुछ देर बाद वापस आ गए। लड़के के घरवालों ने भी बातचीत के बाद लगभग कृपा को पसंद कर लिया। बात आगे बढ़ी लड़के ने आँखों से कृपा को हरी झंडी दिखा दी। कृपा भी बहुत खुश थी कि आज उसे रूप की वजह से नहीं बल्कि उसके गुणों की वजह से पसंद किया गया। क्योंकि आज बहुत सादगी से कृपा बाहर आई थी। चेहरे पर कोई मेकअप नहीं था। ये सोच की जिसे पसन्द करना है वो मुझे बिना नकली बनावट के स्वीकार करे। गुलाबी साड़ी, खुले बाल, सांवले रंग में भी तीखे नाक नक्श आज अपनी सादगी में कृपा बहुत सुंदर लग थी। सगाई की तिथि तय हो गयी। पूरी बातचीत के बाद लड़के वाले बाहर तक आ गए। गाड़ियों तक पहुँच गए। और सब लड़के वालों को विदा कर ही रहे थे कि टीना आ गयी।।


लड़के ने पूछा ये कौन है ..और फिर सब पुनः अंदर आकर बैठ गए। बहुत देर की चुप्पी तोड़ते हुए लड़के ने अपने पिता के कानों में कुछ कहा। वो लोग फिर बाहर गए कुछ देर के लिए। उनके बीच बातचीत हुई। जाने क्या खिचड़ी पकने लगी उन लोगो के बीच।अंदर आकर लड़के के जीजाजी ने कृपा के लिए इधर उधर का रिश्ता बताने लगे। और ये एलान भी कर दिया कि उन्हें कृपा नहीं बल्कि उसकी छोटी बहन टीना पसन्द है। रिश्ता तो बहुत अच्छा था,पर कृपा के पिता मायूस हो गए। बढ़ी के रहते छोटी का रिश्ता कैसे कर दे। कृपा के पिता अंदर आ गये उनकी पत्नी ने समर्थन किया कि कम से कम एक पुत्री का विवाह तो हो जाएगा टीना भी तो 27 वर्ष की हो चुकी। एक पल के लिए कृपा के पिता जी को भी सही लगा आखिर कृपा की शादी लगाते लगाते उनकी हालत खराब हो चुकी थी। वो कहने जा ही रहे थे कि कृपा की दादी ने टोक दिया और इस रिश्ते के लिए मना करने को कह दिया। जिसने सिर्फ रूप देखा कल को उसे टीना से भी सुंदर लड़की दिखे तो वो उसे भी छोड़ देगा। ऐसी जगह हमे किसी बेटी का रिश्ता तय नहीं करना। पर अपनी माँ की बातें अनसुनी कर कृपा के पिता ने टीना का विवाह तय कर दिया। उन्हें यकी हो गया था कि कृपा का विवाह मुश्किल हो गया है और उसके चक्कर मे टीना को घर नहीं बैठाना चाहते थे।तो उन्होंने लड़के वालों से कुछ वक्त मांगा ताकि कृपा की शादी इस बीच कहीं तय हो ही जाए।

कृपा को रात में नींद नहीं आ रही थी। जैसे विवाह के बिना उसका कोई अस्तित्व ही नहीं है। अपने घर वालो के संकुचित बुद्धि से भी हताश हो चुकी थी।कुछ मन ही मन निर्णय ले, निराशा के अंधेरे में डूबी कृपा आधी रात को उठी और घर से बाहर निकल गयी। घनी अंधेरी रात में 'कृपा' अंधेरे को चीरते बढ़ी जा रही थी। इस संसार से तंग आ चुकी थी। और मौत को गले लगाने बढ़ते जा रही थी। काले रंग की वजह से अक्सर ताना ही तो मिलता था। विवाह में भी अड़चन आने लगी। छोटी बहने भी मेरी तरह बैठे रहे इससे अच्छा तो इहलीला ही समाप्त कर परिवार का बोझ हल्का करूँ । जिसकी वजह से हर बात में परिवार के लोग मुझे कोसते थे अब सब ठीक हो जाएगा। ऐसा लगने लगा कि प्रेम जैसे कोई चीज ही नहीं रही। सिवाय दादी माँ के जो हमेशा हौसला देती।पर आज के दिन घर मे कलह इतना हुआ कि फिर मरने के लिए सुनसान सड़को को पार कर पुल के पास आ गई। पुल के ऊपर खड़ी हो गयी आँख मूंद कूदने ही वाली थी कि सहसा एक छोटे बच्चे की रोने की आवाज़ आई। पुल के पास ही एक बास्केट को कुत्ता खींचे जा रहा था जिसमे से बच्चे की रोने की आवाज़ आ रही थी। है ईश्वर!! कृपा के मुख से निकला और तुरन्त पास की लाठी उठा उस कुत्ते को मारी। वो भागा तुरन्त उस बास्केट को खोल कर देखी एक नवजात शिशु था। कृपा ने उसे सीने से लगा लिया। वो आत्महत्या करने जा रही थी और देखो ईश्वर ने उसे एक जीवन बचाने का कार्य दिया।


जब घर लेकर आई उस बच्चे को तो घर के लोगो ने उसे ही बाहर का ही रास्ता दिखा दिया। थक हारकर कृपा सुबह पुलिस स्टेशन गयी। जहाँ नया एसपी साहब भास्कर शर्मा आये हुए थे।कृपा के इस कार्य से वे बहुत प्रभावित हुए। बहुत जाँच पड़ताल के बाद भी पता नहीं चल पाया कि वो किसका बच्चा है।तब तक कृपा उस बच्चे को अपने पास ही रखी थी 9 माह बीत चुके थे कृपा का उस बच्चे के प्रति लगाव बढ़ने लगा। इधर घर मे भी बच्चे के साथ उसका प्रवेश वर्जित था।गर्ल्स हॉस्टल में कृपा रह रही थी।घर तो उस रात को ही त्याग चुकी थी,मोह तो पहले से ही टूट चुका था,घर से। इस बीच कृपा की एसपी साहब से मुलाकात होती। कृपा पूरे समय बच्चे की बात करती,और भास्कर कृपा को निहारते रहते उसकी सादगी और मासूमियत की! एसपी भास्कर शर्मा किसी न किसी बहाने कृपा से मिलते रहते थे। कृपा को पता ही नहीं चल पाया कि, कोई उसे मन ही मन चाहने लगा।

फिर एक दिन कानूनी रूप से गोद लेने के लिए एक बहुत पैसे वाले दम्पत्ति वहाँ पहुँच गए। उस दिन कृपा बहुत उदास थी।पूरी प्रक्रिया होने के बाद कृपा उस बच्चे को नहीं दे पाई कृपा को उस बच्चे से अब लगाव हो चुका था। अंततः कृपा ने उस बच्चे को गोद ले लिया। क्योंकि जब वो निराशा से घिरी मरने जा रही थी तब वो फरिश्ता बन उसकी जिंदगी में आया औऱ उसके जीने की वजह बना। कृपा को पता था उसके लिए उसके घर के दरवाज़े हमेशा के लिए बंद हो जायेंगे फिर भी उसने ये निर्णय ले लिया।

एसपी साहब भी जो विवाह के उम्र के थे। कृपा के सुंदर मन से मोहित हो गए। उससे विवाह का फैसला ले चुके थे। पर कृपा से उसकी राय पूछे बगैर कैसे आगे बढ़ता। भास्कर ने अपने घर में कृपा के बारे में बताया। भास्कर के घर में उसके माता-पिता समझ चुके थे कि भास्कर को प्यार हो गया। उन्हें भास्कर की पसन्द पर नाज था।

एक शाम भास्कर और कृपा पास के गार्डन के पास टहल रहे थे। बारिश के बाद मौसम सुहाना हो चुका था।कृपा ने कहा अब हमारा साथ यही तक था।तभी पानी की वजह से कृपा फिसलने ही वाली थी कि,भास्कर ने उसे थाम लिया।कुछ देर दोनों एक दूसरे को यूँ ही देखते रहे अपलक!!भास्कर छोड़ो मेरा हाथ" कृपा की बात सुनकर भास्कर ने कहा!"अगर तुम चाहो कृपा तो ये हाथ जिंदगी भर के लिए थामना चाहता हूँ!!कृपा को भी भास्कर पसन्द था।पर...कृपा की बात बीच मे काटते हुए भास्कर ने कहा। वो बच्चा तुम्हारी जिंदगी में आया और तुम मेरी जिंदगी में तुम दोनों के बिना मैं जी नहीं सकता, बोलो कृपा!! नहीं तो मैं किसी से विवाह नहीं करूँगा। तुम्हारे लिए ही मैं हूँ कृपा। कृपा शरमाकर जाने लगी।तभी भास्कर ने उसे खींचकर अपने करीब लाया और गुलाबी साड़ी देते हुए कहा शाम को डिनर के लिए मम्मी ने बुलाया है।

 दोनों का उनके परिवार वालो की रजामंदी से विवाह हुआ।और नए जीवन की शुरुआत हुई। ईश्वर एक रास्ता बंद करता है तो दूसरा खोल देता है।कृपा को दादी की ये कही बात याद आ गयी।



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