काश
काश
दिवाली की रौनक चरम पर थी। कॉलोनी के सारी बिल्डिंग फूलों और रोशनी से जगमगा रही थी। सारे घर आज एक नई नवेली दुल्हन की तरह सजे इतरा रहे थे।कॉलोनी के कुछ बच्चे पटाखे फोड़ रहे थे। तो कुछ फुलझड़ी और अनार चला कर ताली बजा रहे थे।वहीं कुशुम और कमल अपनी बालकनी से अपने बच्चों नित्या और हर्षित को पटाखे चलाते देख रहे थे।
कॉलोनी में एक घर ऐसा भी था जो रौशनी के त्यौहार में भी अंधेरे में डूबा था। उसे घर को देखते हुये कुशुम बुरा सा मुँह बना कर कमल से बोली........
"इस घर की मनहूसियत त्यौहार पर भी कम नहीं होती। इस घर के मालिक , मालकिन साल भर तो दिखाई नहीं देते पर दिवाली के दिन टंकी भर पानी और बाल्टी रखके खड़े हो जाते है, बच्चों को रोकने टोकने के लिये। वो देखो कैसे हर बच्चे के पीछे लगे है। ये नहीं की ये सब छोड़ कम से कम सगुन के लिये दो दिये ही जला ले ..... "
कुशुम की बात सुनकर कमल उसकी हां में हाँ मिलाते हुये बोला...... " सच कह रही हो तुम। दो साल हो गये इन लोगों को यहाँ आये हुये। पर अभी तक कोई इनके बारे में अच्छे से नहीं जानता। बस ऐसे ही उड़ती - उड़ती खबर सुनी है कि ये गुप्ता जी कहीं के बहुत बड़े व्यापारी थे। जो अपना सब बेच कर यहाँ आकर रहने लगे"...!
तभी नीचे से नित्या के चिल्लाने की आवाज आई.....
"पापा,,,, मम्मा बचाओ,,,,,,,,,,,,,, पापा,,,,,, "
आवाज सुनकर कुशुम और कमल दोनों ने नीचे देखा जहाँ नित्या की घेर वाली फ्रॉक में आग लग गई थी। वो डर के मारे इधर उधर भाग रही थी। उसके पीछे बेटा हर्षित आग बुझानेे की कोशिश कर रहा था।
ये सब देख कुशुम और कमल अपनी सुधबुध खो नीचे की तरफ भागे। सीढ़ियों को लगभग लांघते हुये कमल नीचे मैन गेट की तरफ लपका ...... तभी सामने से गुप्ता जी नित्या को गोदी में लेकर आते दिखे पीछे से हर्षित घबराया सा चला आ रहा था।उसके पीछे यंत्रवत्त कमल और कुशुम भी चलने लगी।
गुप्ता जी ने नित्या को वही रखे सोफे पर लिटाते हुये उन दोनों की तरफ देख कर बोला ....."चिन्ता मत करिये आपकी बेटी बिल्कुल ठीक है। बस वो डर के वजह से शायद बेहोश हो गई है।पर आपको अपने बच्चों की तरफ से यूँ लापरवाह नहीं होना चाहिये। जब बच्चे पटाखे चला रहे हो तो ऐसी कोई अप्रिय घटना न घटे उसके लिये पूरी तैयारी के साथ उनके साथ ही रहना चाहिये। "
तभी नित्या को होश आ गया। वो डर से " मम्मा " बोलते हुये उठ कर बैठ गई।जिसे कुशुम गले से लगाकर सब ठीक होने का यकीन दिला रही थी।
उधर हर्षित के भी हाथ आग बुझाते हुये झुलस गये। तो वो भी दर्द और डर के वजह से सकते में था। वो बार - बार गुप्ता जी से एक ही बात दोहरा रहा था....
" थेंक्यू अंकल आपने बचा लिया ",,,,,,,,
गुप्ता जी भी हर्षित के सर पर हाथ फिराते हुये बमुश्किल अपनी भावनाओं पर कंट्रोल कर पा रहे थे। उनकी आँखों की कोरो पर रुके आंसू सारे बंधन तोड़ कर बाहर आना चाहते थे।जब भावनाओं के सैलाब को रोकना उनके लिये मुश्किल हो गया तो ये बोलकर वो अपने घर चले गये कि... " मैने डॉक्टर को फोन कर दिया है। वो आते ही होंगे मै चलता हूँ। "
कमल बस उन्हें जाता हुआ देखता रहा। उसके मुँह से एक शब्द भी नहीं निकल पाया था। अभी थोड़ी देर पहले वो जिसकी इतनी बुराई कर रहे थे। उन्ही की पानी रखने की समझदारी ने उनके दोनों बच्चों की जिंदगी बचाकर उसकी दुनिया उजड़ने से बचा ली।
डॉक्टर आया उसने हर्षित के जले हाथों के लिये दबाई दी और नित्या को बिल्कुल ठीक बताया क्योंकि उसकी फ्रॉक बहुत घेर वाली थी आग उसके बदन को नहीं छू पाई थी।आठ दस दिन में जब हर्षित के हाथ भी ठीक हो गये तो एक दिन कुशुम बोली...... "कमल उसदिन से गुप्ता जी को हम ठीक से धन्यवाद भी नहीं बोल पाये। क्यु न हम उनके घर चले? उन्होंने तो हमारा संसार सूना होने से बचा लिया।"
कुशुम की बात से सहमत हो दोनों त्यौहार की गिफ्ट वाली टोकरी ले पहुँच गये गुप्ता जी के घर।
दरवाजा खुला था तो गुप्ता जी को आवाज लगाते वो लोग अन्दर आ गये। उनके घर में इतनी शान्ति थी कि एक सुई भी गिरे तो उसकी भी आवाज सुनाई दे जाये। इतने बड़े हॉल में सामान के नाम पर सिर्फ एक सोफा और सामने की दीवार पर नित्या और हर्षित की उम्र के मुस्कराते हुये बच्चों का माला चढ़ा फोटो टंगा था।
उस फोटो को देखकर कुशुम का दिल धक से हो गया। और अनायास ही उसके मुँह से निकला.. " हे भगवान इतने छोटे बच्चों की फोटो पर माला.. "??
तभी सामने के कमरे से गुप्ता जी निकल कर आ गये और हाथ जोड़कर बोले.... " अगर आपको बुरा न लगे तो हम बाहर चल के बात करें ? वो क्या है कि मेरी बीबी को बड़ी मुश्किल से नींद आती है। और अगर हम यहाँ बैठेंगे तो वो जाग जायेगी। "
और बिना किसी प्रतिक्षा के बाहर निकल आये ।कमल और कुशुम भी बिना कुछ बोले गुप्ता जी के पीछे चलते हुये बाहर लॉन में आ गये। वहीं पड़ी कुर्सियों की तरफ बैठने का इशारा करते हुये गुप्ता जी खुद एक कुर्सी पर बैठते हुये बोले....
" आपके बच्चे अब कैसे है?? "
कमल मुस्कराते हुये हाथ जोड़कर बोला... " आपकी कृपा से बिल्कुल ठीक है। अगर आप उस दिन न होते तो पता नहीं क्या हो जाता। "
तभी कुशुम भी हाथ जोड़ते हुये बोली.... "सच में आपने मेरे बच्चों को जीवन दान दिया है। आपका ये यहसान मै जिंदगी भर नहीं उतार पाऊँगी।"
और अपने साथ लाई टोकरी को आगे बढ़ाते हुये बोली हमारी तरफ से ये छोटी सी भेंट स्वीकार करें। "
गुप्ता जी ने बिना उस टोकरी को हाथ लगाए सर हिलाकर उसे स्वीकार कर लिया।
तभी कुशुम थोड़ा सकुचाते हुये बोली.... "अगर आप बुरा न माने तो एक सवाल पुंछू ??आप लोग इतने टाइम से यहाँ आये हो पर कभी आपने किसी से भी कोई व्यवहार नहीं रखा। फिर भी आप दिवाली के दिन पटाखे फोड़ते बच्चों की रखवाली करते है क्यों??
कुशुम की बात सुनकर गुप्ता जी गंभीर होते हुये बोले.....
" आपने अभी हॉल में एक तस्वीर देखी होगी। वो मेरे बच्चों की है। दिवाली के दिन वो भी पटाखे और चकरी चला कर खुशी मना रहे थे। और मै और मेरी पत्नी सभी से मिलने में व्यस्त थे। तभी मेरी बेटी के सिल्क की फ्रॉक में एक चिंगारी छू गई। जिसे मेरे बेटे ने बुझाने की कोशिश की तो उसके कपड़ो ने भी आग पकड़ ली।उससे उसके आस - पास रखे और भी पटाखो ने आग पकड़ ली।
हमने अपने आस -पास न तो पानी रखा था। न ही कंबल जिससे वो आग बुझा पाते। जब तक हम भाग कर ये सब लाते तब तक तो मेरे बच्चे धू धू करके वहीं जल गये और मै कुछ नहीं कर सका। बस मै काश करता रह गया। काश मैने अपने पास पानी रखा होता तो मेरे बच्चे मेरे साथ होते।"
अपनी आँखों में आये आँसुओ को साफ करते हुये गुप्ता जी आगे बोले.....
"बच्चों के जाने के बाद उनकी माँ को सदमा लग गया। तो उन्होंने बोलना ही बंद कर दिया। नींद भी नहीं आती उन्हें।इतना कुछ होने के बाद बच्चों की यादों के साथ हम उस शहर में नहीं रह पाये तो सब बेच कर यहाँ आ गये। और मेरी तरह किसी और की जिंदगी में काश न आये तो दिवाली के दिन अपनी तरफ से ये छोटी सी कोशिश करता हूँ। "
गुप्ता जी की बातें सुनकर कुशुम और कमल की आँखों से भी आँसू बहने लगे थे। उन्हें अपने आप में ही अपनी सोच से घृणा हो रही थी। कितनी आसानी से उन्होंने गुप्ता जी के सराहनीय काम को मनहुसियत फैलाना बोल दिया था । जबकि वो तो दुखो के पहाड़ को ढोते हुए भी दूसरो के जीवन की रक्षा करने की कोशिश करते थे। अगर उस दिन उन्होंने पानी न रखा होता तो क्या होता ये सोच कर ही दोनों की आत्मा कॉप गई।
अचानक ही दोनों एकसाथ बोल पड़े ....."हमें माफ कर दीजिये गुप्ता जी हमने बिना जाने ही आपके बारे में जाने क्या क्या सोच लिया था। पर अब हम अच्छे पड़ोसी होने के सारे धर्म निभायेगे। आपके सुख दुख में हम बराबर आपके साथ है। भगवान ने चाहा तो भाभी जी भी बहुत जल्दी ठीक हो जायेंगीं।
और अब हम हमेशा दिवाली के समय सतर्क होकर बच्चों के साथ रहेंगे। पानी की हम पटाखों से पहले व्यवस्था करेंगे ताकि किसी भी परिवार में दिवाली की खुशी काश में न बदले।"