इलाज़ के गहरे राज़
इलाज़ के गहरे राज़
राजा विक्रमादित्य अर्थात 'विक्रम' साहसी, पराक्रमी, समाजसेवी तो थे ही, साथ ही साथ इक्कीसवीं सदी के सामाजिक, राजनीतिक, प्रशासनिक, वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक ज्ञान से अपडेटिड भी थे यानि ज्ञान के हर क्षेत्र की अद्यतन जानकारी उनको रहती थी। वैज्ञानिक जगत में उन्हें बड़ा सम्मान दिया जाता था, किंतु प्रेमपूर्वक सब उन्हें 'विक्रम' ही कहा करते थे। सभी उनकी बातें मानते थे; यहाँ तक कि उन बातों पर शोध भी करते रहते थे।
दुनिया हर सौ वर्ष में किसी न किसी महामारी के प्रकोप से परेशान हुआ करती थी। इस वर्ष भी एक विषाणु वंश के नवीन वाइरस ने क़हर बरपा रखा था पूरी दुनिया में। वैज्ञानिकों ने उसे 'नोवेल कोरोना' नाम दे दिया था और उस विषाणु से फैल रही लाइलाज़ महामारी को 'सार्स-कोविड-19' नाम दिया गया था। इस महामारी ने दुनिया के सभी देशों में पैर पसार लिए थे क्योंकि यह मानव के मुख और नाक आदि से छूत की बीमारी की तरह संक्रमण फैला रही थी। इस महामारी से बचाव हेतु विश्व के कई होनहार वैज्ञानिक सफल वैक्सीन खोजने हेतु रात दिन एक कर रहे थे। विकसित देशों में होड़ लगी हुई थी पहला वैक्सीन आम जनता तक पहले नंबर पर पहुँचाने हेतु।
इसी सिलसिले में आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक सम्मेलन में राजा विक्रमादित्य को भी आमंत्रित किया गया था। वहाँ से लौटने पर विक्रम ने सोचा कि आयुर्वेद और प्राकृतिक औषधियों का धनी हमारा महान देश भी दुनिया में अव्वल नंबर पर हो सकता है। अपने वृहद ज्ञान के आधार पर उन्होंने एक प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य व आयुर्वेद विशेषज्ञ वैद्य मुनि आदित्यराज से तुरंत सम्पर्क किया। उन्होंने महामारी, वाइरस के प्रकारों, उनके जीवन चक्र और उन पर नियंत्रण के उपाय विषयक विस्तृत जानकारी विक्रम को दी। उनके विनम्र सुझाव के अनुपालन में विक्रम ने उज्जैन के विशाल जंगल में योग साधना में लीन योगी दिव्यानन्द से केवल अकेले जाकर सम्पर्क करने का फैसला लिया।
गोपनीय अनुसंधान की महत्वाकांक्षा के साथ विक्रमादित्य यानि 'विक्रम' रात के घोर अंधकार में अकेले उज्जैन के घने जंगलों से होते हुए कई दिनों जंगली वनस्पतियों और पशु-पक्षियों से जूझते हुए योगी दिव्यानंद तक पहुँचे। वहाँ का वातावरण देखकर विक्रम को यह समझने में देर न लगी कि यह योगी एक बड़ा तांत्रिक भी था। हवन कुण्ड, नरकंकाल, खोपड़ियाँ और योगी का अद्भुत डरावना आसन व उसकी काया.... यह सब देख विक्रम को पहले तो ऐसा लगा कि कि मुनि आदित्यराज से कोई चूक हुई है और उन्हें ग़लत व्यक्ति के पास भेज दिया गया है; लेकिन दृढसंकल्पित पराक्रमी विक्रम ने प्रणाम कर अपनी समस्या योगी दिव्यानन्द के समक्ष रखी।
पहले तो योगी ने अट्टहास करते हुए कुछ मंत्र उच्चारित किये, फ़िर बोला, "तुम बहादुर हो, ज्ञानी-विशेषज्ञ हो, पराक्रमी-बहादुर हो! इसी लिए तुम्हें मेरे पास भेजा गया है। यहां से पंद्रह किलोमीटर दूर तुम्हें अकेले जाना होगा। एक विशाल पेड़ पर एक मनुष्य का शव उल्टा लटका हुआ मिलेगा। वह शव चमगादड़ रूपी बेताल है। उसको पेड़ से उतारकर अपनी ही पीठ पर लादकर तुम्हें लाना है। उसे 'नोवेल कोरोना वाइरस' और 'सार्स-कोबिड-19' के लिये ज़िम्मेदार माने जाने वाले चमगादड़ों और मानव जाति तक वाइरस फैलाने वाले तमाम पशु-पक्षियों की गहरी जानकारी तो है ही; वह ही मुझे ही बता सकता है वाइरसों को हराने और महामारियों के बिना साइड इफैक्ट्स वाले शर्तिया इलाज़ के बारे में। वैक्सीन-ऐक्शीन तो बकवास है। हमारे देश में ही महामारियों और वाइरसों का प्राकृतिक अस्त्र-शस्त्र-शास्त्र है।.... तुम तो बड़े समाजसेवी माने जाते हो न!... जाओ यथाशीघ्र अपनी पीठ पर ही लादकर उस बेताल को लेकर आओ अपने देशवासियों की रक्षा की ख़ातिर!"
विक्रम जो आँखें फाड़-फाड़कर योगी के एक-एक शब्द को ध्यान से सुन रहा था, योगी दिव्यानन्द के समक्ष एकदम नतमस्तक हो कर बोला, "जैसी आज्ञा आपकी योगी जी! ... बताइये... किस दिशा में अब मुझे जाना होगा और किस तरह उस विशाल वृक्ष को पहचानना होगा ?"
योगी ने इशारे से विक्रम को नज़दीक़ बुलाया और उसके कान में कहकर गोपनीय सब कुछ भलीभाँति समझा दिया।
घने जंगल के बीच चट्टानों, झरनों को पार करता हुआ विक्रम जंगली वनस्पतियों और खतरनाक पशु-पक्षियों से जूझता आख़िर उस स्थान पर पहुंच गया, जहाँ उस विशाल वृक्ष पर एक शव उल्टा लटका हुआ था। यही वह अभीष्ट बेताल था। विक्रम तुरंत पेड़ पर चढ़ गये। लेकिन अट्टहास करता हुआ बेताल ज़मीन पर गिर गया। विक्रम ने पेड़ से उतर कर बेताल को क़ाबू में करने की कोशिश की, लेकिन यह क्या... बेताल पेड़ तक उड़ कर फिर से उल्टा लटक गया। वह लगातार अट्टहास कर विक्रम का मज़ाक़ उड़ा रहा था। विक्रम ने दूसरा प्रयास किया। किंतु फ़िर वही हुआ। लेकिन इस बार विक्रम बेताल को कब्ज़े में कर अपनी पीठ पर लादने में सफल हो गये।
अब विक्रम यथाशीघ्र बेताल को उस योगी दिव्यानन्द तक पहुँचाने की कोशिश में जुट गये।
"तो तुम मुझे उस ढोंगी योगी के सुपुर्द करना चाहते हो विक्रम!" विक्रम की पीठ पर लदा बेताल हँसते हुए बोला।
"जी, अवश्य और शीघ्र ही!" विक्रम ने उत्तर दिया।
"रास्ता बहुत लम्बा है! तुम थककर चूर हो जाओगे। बोरियत से उकता जाओगे। आओ मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूंँ। चुपचाप सुनते रहना। तुम्हारा मुँह खुला और तुरंत ही उड़कर मैं उस पेड़ पर वापस लटक जाऊँगा। फिर तुम मुझे उतार न सकोगे, समझे न विक्रम!"
"अपने देशवासियों की रक्षा के लिए मुझे तुम्हारी हर शर्त मंजूर है!" विक्रम ने बेताल पर अपनी पकड़ मज़बूत करते हुए कहा।
"तो सुनो विक्रम! तुम्हारे एक दुश्मन देश की गोपनीय वैज्ञानिक प्रयोगशाला में एक दूसरे विकसित देश की सेना का शोधार्थी सैनिक-वैज्ञानिक एक चमगादड़ की चीड़-फाड़ कर कोई नया वाइरस खोजने या बनाने की कोशिश कर रहा था! "
विक्रम अपना मुँह बंद रखे हुए बेताल की कहानी सुनने लगे।