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Arunima Thakur

Abstract Inspirational

4.9  

Arunima Thakur

Abstract Inspirational

जुनून

जुनून

7 mins
401


नवरात्रि के नव रंग 

(दूसरा दिवस - लाल रंग)

नौ देवियों के रूप में दूसरी देवी, इस जहाँ की जीवित शक्ति हमारी दादी माँ / नानी माँ को प्रणाम है ।

 नवरात्रि का दूसरा दिवस माँ ब्रह्मचारिणी के नाम है। 

लाल रंग जुनून शुद्धता और क्रोध का प्रतीक है क्रोध जो बुराई का प्रतीक है, स्वयं बुराई को जड़ से मिटाने के लिए अत्यंत आवश्यक है। जुनून जिसे काफी नकारात्मक रूप में भी देखा गया है पर जीवन में उन्नति के लिए सकारात्मक जुनून होना बहुत जरूरी है । इस प्रकार से लाल रंग जीवन में सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह से शामिल है। यह हम पर है कि हम कौन सी शक्ति का प्रयोग किस दिशा में करना पसंद करते हैं। 

 यह सच है किसी काम का अभ्यास करने से व्यक्ति निपुण बनता है पर उससे बड़ा सत्य है कि उस काम का अभ्यास करने का जुनून भी होना चाहिए । आज का लाल रंग माँ जगदंबा को समर्पित है । वह हम सबके अंदर एक सकारात्मक जुनून दे । चलिए आज की कहानी पढ़ते हैं।

"तुमको कितनी बार समझाना पड़ेगा यह सब बड़े घर के लड़कों के चोंचले नहीं है। तुम तो मेरी नाक कटवा कर ही मानोगे"। 

आरव अपने पापा को आश्चर्य से देख रहा था। उसने ऐसा क्या कर दिया कि पापा की नाक कट जाएगी। बचपन से आज तक उसने एक अच्छा बच्चा बनने के लिए वही किया जो उसके मम्मी पापा ने चाहा। वह सोचता है यह कैसी नाक लेकर घूमते हैं उसके मम्मी पापा, जिसका बात बात पर कटने का खतरा रहता है। बचपन से ही उससे नाचना बहुत पसंद था। बचपन में तो मम्मी पापा अपने दोस्तों, परिवार के लोगों के आगे उसके नृत्य की निपुणता की नुमाइश करते और गौरवान्वित होते कि उनका बच्चा कितना अच्छा नाचता है। बचपन से ही नाचने के कारण उसका शरीर बहुत लचीला था। उसे याद है स्कूल के एक कार्यक्रम में मुँह को चुनरी से ढक कर जब उसने "मोहे पनघट पे नंदलाल छेड़ गयो रे" गाने पर नृत्य किया था तो शिक्षक तो सन्न रह गए थे कि लड़कों के स्कूल में यह लड़की कहां से आ गई। शायद यही करना गलत हो गया। उसकी तारीफ घर पर पहुँची और उसके नाच पर अंकुश लग गया। "नहीं अब बड़े हो गए हो। यह नाच गाना बंद। पढ़ाई पर ध्यान दो"। ठीक ही था दसवीं में हर बच्चे के ऊपर पढ़ाई पर ध्यान देने का दबाव पड़ता ही है। पर दसवीं के बाद भी उसे नृत्य की अनुमति नहीं मिली। 

"तुम यह सब करके साबित क्या करना चाहते हो? क्यों हमारी नाक कटवाने पर तुले हुए हो"? 

इसमें नाक कटने की क्या बात है ? कितने तो शास्त्रीय नर्तक हैं तो क्या उनके परिवार की नाक कट जाती है ? कितने पुरुष कोरियोग्राफर है ! यह सब तो देश का नाम रोशन करते हैं।  

मम्मी पापा के नृत्य नही करना है के दबाव के साथ आरव ने अब बारहवीं की परीक्षा भी पास कर ली थी। दोस्तों के साथ जिम जाकर मस्कुलर बॉडी भी बना ली थी। अब पापा बड़े गर्व से अपने दोस्तो के सामने उसकी मस्कुलर बॉडी की नुमाइश करते । शायद वह दिखाना चाहते थे उनका लड़का एक संपूर्ण लड़का था। कोई नचनियाँ या किसी भी प्रकार से लड़की नहीं । मम्मी पापा खुश तो आरव भी आंशिक रूप से खुश था।

आरव ने साधारण भारतीय लड़कों की तरह अब इंजीनियरिंग भी कर ली थी और नौकरी की तलाश में था। पर नौकरी मिलना इतना आसान कहां ? माँ-बाप डोनेशन देकर इंजीनियरिंग करवा तो देते हैं पर .. खैर...। आखिर घर बैठे बैठे आरव अवसाद का शिकार होने लगा। उसका भी मुख्य कारण उसके माता-पिता ही थे। जब देखो वह चिल्लाते कि देखो उसे देखो कितने लाख की नौकरी कर रहा है। ढंग से पढ़ाई की होती तो कैंपस सिलेक्शन से तुम्हें भी नौकरी मिल जाती। फलाना ढिमकाना... कह कह कर उसका मानसिक तनाव बढ़ा देते। आरव की हालत कुछ ज्यादा खराब होने लगी।

एक दिन यूँ ही आरव अपने मम्मी पापा से बोला,"जब तक मुझे नौकरी नही मिल रही। मैं और मेरा दोस्त मिलकर डांस क्लास खोलने वाले है"।

इतना सुनते ही पापा तो गुस्से से उबल पड़े, "हाँ यही करने के लिए लाखों रुपये खर्च करके तुम्हे इंजीनियरिंग पढ़ाई है। तुम हमारी नाक कटवाए बगैर नही मानोगे। यही सब करना था तो लाखों रुपये क्यो खर्च करवाये ? दस लोग देख कर हंसेंगे की इंजीनियरिंग करके लड़का नचनिया बना फिरता है।"

अब आरव क्रोध में आ कर बोला,"कैसी नाक है आपकी जो बात बात पर कट जाती है। लोगों का क्या, लोग तो अभी भी बोलते है इतना बड़ा लड़का बेरोजगार घर पर बैठा है। और फिर जो भी करने जा रहा हूँ अपनी कला के दम पर ही ना, भीख तो नही मांग रहा कि आपकी नाक कट जाए। और ऐसा तो नही कि मैं नौकरी नही ढूंढ रहा। नौकरी मिल जाएगी तब तक के लिए घर बैठ कर अवसाद ग्रस्त होने से तो अच्छा है ना। क्या आप चाहते है कि आपकी नाक बचाने के लिए मैं घर बैठ कर अपनी नाकामी का शोक मानते हुए पागल हो जाऊं। आपको जो लगता हो लगे। इतने सालों से आप की मर्जी ही कर रहा था। अब मैं वो करूँगा जो मुझे ठीक लगेगा"।

आज पहली बार आरव को उसके मम्मी पापा ने क्रोध करते देखा था। जिस तरह से फूल की खुशबू छुपाने से नही छुपती वैसे ही हमारी योग्यताएं दबाने से नही दबती।

आरव के बदले हुए रूप का कारण उसका उसके पुराने दोस्तों से मिलना था । जब उन्होंने आरव को ऐसे हताश निराश देखा तो पूछा, "कोई प्यार व्यार का चक्कर तो नही है"? वह सब आरव को बचपन से जानते थे। एक हंसमुख, शैतान, मस्तीखोर, बहुत अच्छा डांसर आज अगर ऐसे हताश है तो क्या कारण हो सकता है ? 

आरव ने बोला, "एक बेरोजगार से प्यार कौन करेगा"? 

दोस्तो ने आरव से बहुत सारी बातें की। उसको अपना मन खोलने का मौका दिया। आजकल के लगभग सभी जवान बच्चों की तरह आरव भी अपने मम्मी पापा की उच्चाकांक्षाओ का शिकार था। उन्होंने कहा, "नौकरी आज नहीं तो कल मिल जाएगी पर दिमाग का संतुलन खराब हुआ तो जिंदगी खराब हो जाएगी। तुम अपना मन बहलाने के लिए कुछ और काम क्यों नहीं करते। तुम तो कितना अच्छा डांस किया करते थे। जब भी डिप्रेस्ड हुआ करो थोड़ा नाच लिया करो। डिप्रेशन कम हो जाया करेगा। तब उन्हें पता चला कि आरव के मम्मी पापा ने उसके नाचने पर रोक लगा रखी है । उनको लगता है नाचने वाले लड़के संपूर्ण नहीं होते। दोस्त सिर पर हाथ रख कर बोले, "यह भारतीय अभिभावक पता नहीं कब सुधरेंगे? तो एक काम करो तो जब तक तुम नौकरी ढूंढ रहे हो तब तक पार्ट टाइम कहीं पर भी बच्चों को डांस सिखाना शुरू करो। इससे तुम्हारा ध्यान भी बटेगा"।

"नहीं नहीं बहुत साल हो गए हैं। मैंने नाचना लगभग छोड़ ही दिया है"। 

दोस्त हंसते हुए बोले, "तुम्हें मालूम है हमारी बहुत सारी चीजें जो हम सीखते हैं वह कभी नहीं भूलते और तुम्हारी तो रगों में खून की जगह डांस दौड़ता है।हमें खबर मिलती रहती है जब तुम इंजीनियरिंग में थे तब भी तो अपने डांस वीडियो बनाकर नेट पर अपलोड करते थे। अच्छा सुनो दो महीने बाद नवरात्र है। लोग सीखना चाहते हैं"। 

"पर मुझसे कौन सीखेगा ? और उसके लिए तो जगह भी चाहिए होगी और मम्मी पापा की अनुमति भी"।

"सुन मेरे पास एक आईडिया है मेरी बहन और उसकी सहेलियां गरबा सीखना चाहते हैं। पर मम्मी उनको बाहर नहीं भेजना चाहती। तो तू एक काम कर मेरे घर पर सिखा दे। मेरा घर का हाल भी बहुत बड़ा है और आवाज सुनकर बिल्डिंग से बहुत सारी महिलाएं आएंगी। तब मेरे घर की छत पर भी सिखा सकते हो। क्योंकि सभी महिलाएं चाहती हैं कि उनको ज्यादा दूर ना जाना पड़े आसपास ही सीखने को मिल जाए" एक दोस्त बोला।

आरव बोला, "ठीक है पापा से पूछ कर ....."।

उसकी बात काटते हुए दोस्त बोले, "पूछ मत, शुरू कर दे। तू डांस करेगा तो तेरा डिप्रेशन दूर हो जाएगा।डांस सबसे अच्छी दवा है"। 

कुछ सोचते हुए आरव ने हाँ कर दी। सच पूछो तो उसने दिमाग में प्लानिंग भी शुरू कर दी थी कि वह कैसे, कौन से स्टेप पहले सिखाएगा ? पहला गाना कौन सा लेगा ?

 वास्तव में मुश्किल सिर्फ पहला कदम उठाने की होती है। बाकी कदम खुद-ब-खुद मंजिल की ओर बढ़ जाते हैं। आरव आज नामी डांसर है। उसका खुद का हॉल है। उसकी समाज में इज्जत है, पहचान है। अब उसको मम्मी पापा के नाक कटने की चिंता नहीं है। उसने अपने शौक को जुनून बनाया और जुनून ने उसे सफलता की सीढ़ियों तक पहुंचा दिया।

यह कहानी आरव , आरवी या किसी की भी हो सकती है। जरूरत है सिर्फ अपने शौक को जुनून में बदलने की।


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