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Arunima Thakur

Abstract Inspirational

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Arunima Thakur

Abstract Inspirational

मेरा देश...अपना या पराया

मेरा देश...अपना या पराया

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     मैं हूँ प्रियम पटेल, जी हाँ एक गुजराती। हमारे बारे में कहा जाता है कि हम जन्म ही इसीलिए लेते हैं कि अमेरिका इंग्लैंड में जाकर बस सकें। सच भी है हमारी इतनी सारी जमीन जायदाद, खेती- वाड़ी (बाग) होने के बाद भी हमारे सारे रिश्तेदार अमेरिका इंग्लैंड में है। चलिए शुरू से शुरू करता हूँ। मैं महाराष्ट्र के एक छोटे से गाँव घोलवड़ में रहता था। जी हाँ था ! अब तो मैं अमेरिका में रहता हूँ ना। हाँ तो मेरे परदादा की बहुत जमीन थी। हमारी चीकू, नारियल, आम, सुपारी की बहुत बड़ी वाड़ी थी। अब कितनी बड़ी. . . कैसे बताऊँ ? यह समझ लीजिए कि पूरी वाड़ी को सिंचाई के लिए पानी पूरा पड़े इसलिए हमारी वाड़ी में लगभग बारह फुट या उससे अधिक व्यास के तीन कुएँ थे। फार्महाउस था और वाड़ी का चक्कर हम कार से लगाते थे, पैदल पूरी वाड़ी घूमना संभव ना था। 


समय बदला परदादाजी के सभी आठ बच्चों (छह : दादाजी और दो बुआ दादी) में से मेरे दादा जी और बड़े दादा जी और बड़ी बुआ दादी को छोड़कर सब एक-एक करके अमेरिका में बस गए। कालांतर में बड़े दादा जी के बच्चे और बड़ी बुआदादी के बच्चे भी अमेरिका व इंग्लैंड में बस गए। वाड़ी जमीन जायदाद का सब काम मेरे दादाजी संभालते थे। बड़े दादा जी नौकरी पेशा थे। वह बाहर रहते थे। मेरे दादाजी के शब्दों में वाड़ी में दिन रात मेहनत वह करते थे पर परदादाजी पूरे आय के आठ भाग करके समय-समय पर अपने बच्चों को देते रहते थे। यह बात मेरे दादा जी को अच्छी नहीं लगती थी। दादा जी को लगता कि बाकी लोग तो कमा भी रहे हैं और उन्हें यहाँ का हिस्सा भी मिल रहा है। तो कम से कम एक तिहाई हिस्सा उनको मिलना चाहिए और बाकी दो तिहाई हिस्से में सात भाग लगने चाहिए। पर वह अपने पापा से तो कुछ नहीं कह पाए पर अपने बच्चों को मतलब मेरे पापा व चाचा लोगों को बाहर जाने के लिए प्रेरित किया क्योंकि वह कहीं ना कहीं से यह चाहते थे कि उनके बच्चे भी आराम की जिन्दगी जियें उनके भाइयों की तरह। जो कि परदादाजी का बिल्कुल भी मन ना था कि मेरे पापा चाचा लोग भी बाहर जाए, नहीं तो जमीन जायदाद वाड़ी कौन संभालता ? खैर ऐसे ही चलता रहा और मेरे परदादा जी की मृत्यु के बाद सब ने तुरंत अपना अपना हिस्सा माँग लिया। दादा जी ने बोला भी जैसे चल रहा है चलने दो मैं कर ही रहा हूँ इतने सालों से। पर वे सब अपना अपना हिस्सा बेच कर निकल गए। अब तो जमीन बहुत कम थी और बचत शून्य पर वह कहते हैं ना मरा हाथी भी सवा लाख का होता है। तो जिंदगी आराम से बीत रहीं थी। धीरे धीरे करके मेरे बड़े पापा को विदेश में नौकरी मिली। बाद में कुछ सालों के अंतराल में मेरे पापा और छोटे चाचा भी बाहर चले गए। अब दादा जी बूढ़े हो रहे थे। मेरे बड़े पापा व चाचा दोनों ही दादाजी पर दबाव बना रहे थे कि जमीन बेचकर उनके साथ चले। पर दादा जी अब कहीं बाहर नहीं जाना चाहते थे। बाद में मेरे बड़े पापा व पापा की शादी एक साथ एक दिन ही हुई। बड़े पापा ने तो वही की लड़की जो गुजरात से थी से शादी की पर पापा ने यहाँ भारत की लड़की से शादी की। पापा का मन शायद यहाँ की लड़की से शादी करके बाद में यहीं मम्मी पापा के साथ बसने का था। मेरे पापा बहुत संवेदनशील है। मैंने मम्मी से ज्यादा पापा को रोते देखा है। खैर मेरे पापा ने यह सोचकर यहाँ की लड़की से शादी की थी कि वे थोड़ा कमाकर बाद में भारत में ही बस जाएंगे। पर मम्मी ने सोचा था कि लड़का बाहर काम करता है मजे से बाहर देश में रहने को मिलेगा। इसी जगह मेरे मम्मी पापा के विचारों में मतभेद शुरू हुआ। जब मैं मम्मी के पेट में था, मम्मी चाहती थी कि मेरा जन्म अमेरिका में ही हो। जिससे मुझे वहाँ की नागरिकता आसानी से मिल सके। पर पापा इतने बीमार पड़ गए कि उन्हें लेकर भारत आना पड़ा। मम्मी बरसों नाराज रहीं पापा से कि जानबूझकर उन्होंने बीमारी का नाटक किया सिर्फ सात महीने की तो बात थी। 


 खैर हम भारत आ गए ओह हाँ पापा की बीमारी, तब मैं तो था नहीं मम्मी बोलती है कि पापा के पैर बहुत दुखते थे क्योंकि वहाँ वह जो नौकरी करते थे, उन्हें बारह से चौदह घंटे खड़ा रहना पड़ता था। शायद रीढ़ की हड्डी में कुछ परेशानी हो गई थी। इसीलिए भारत लौटने के बाद भी पापा ने नौकरी करनी शुरू नहीं की। खेती- वाड़ी देखने लगे। पर अब खेती करना भी हाथी पालने जैसा था। खेती में अब उतनी आय नहीं थी। मेरा जन्म हुआ सब लोग बहुत खुश थे क्योंकि मैं घर कि इस पीढ़ी में पहला बच्चा था। मेरे बाद मेरे ताऊ जी को एक लड़की हुई पर वह एक डेढ़ साल बाद। तो मैं दादा दादी का बहुत ज्यादा लाड़ला था। मम्मी की अपनी उच्चाकांक्षाएं अभी भी थी। वह पापा को प्रेरित करती रही अमेरिका चलने के लिए। और एक दिन जब मैं तेरह साल का था तब उन्होंने कोई परीक्षा दी। वह पास हो गई और उनकी अमेरिका में नौकरी लग गई। वास्तव में मम्मी की दोनों बहने भी अमेरिका में ही थी तो वह सोचती थी तीनों बहने साथ में हो जाएंगी। नौकरी लगने के बाद मम्मी . पापा में थोड़ा मनमुटाव हुआ। पापा जाने को तैयार नहीं थे। मम्मी मुझे लेकर जाना चाहती थी। आखिरकार दादा दादी के समझाने पर मेरी सातवीं कक्षा की पढ़ाई पूरी कर हम अमेरिका में बस गये।


यहाँ पहली बार आकर मैं इतना खुश हुआ मानो स्वर्ग में आ गया था। रोशनी, चकाचौंध, सर्दी, बर्फ सब नया अनुभव। मैंने यहाँ आठवीं कक्षा में दाखिला लिया। यहाँ के स्कूल सितंबर में शुरू होते हैं। मुझे इस बार पहली बार पाँच महीने की छुट्टियाँ मिली। पर इन पाँच महीनों में मैं घर पर अकेले रह रह कर टीवी देख कर, खाना बनाकर बोर हो चुका था। सितंबर में जब स्कूल खुला तो मैं इतना खुश था कि पूछिये मत और सबसे ज्यादा खुश तो था मैं अपने विषय देखकर। सिर्फ चार विषय, अब मुझे हिंदी मराठी नहीं पढ़नी पड़ेगी। मैं तो नाच रहा था और दो प्रायोगिक विषय में मैंने फोटोग्राफी और कुकिंग का चयन किया। पर अजीब सा स्कूल था। वहाँ भारत में स्कूल में हम बच्चें एक क्लास में बैठे रहते थे, टीचर क्लास में आते थे। यहाँ हमें बैग उठाकर एक क्लास से दूसरी क्लास में भागना पड़ता था। भारतीय होने के कारण कोई दोस्त बनने को भी तैयार नहीं था। नहीं नहीं मैं काला या सांवला नहीं हूँ। मैं तो बहुत गोरा हूँ। पर बोलने का लहजा या बालों का रंग, वह लोग मुझ से दूरी बनाकर रखते, पीठ पीछे अपशब्द बोलते, पता नहीं कैसे कैसे उपनाम रखते, मुझे कितना दुख होता। वहाँ भारत में तो पूरी क्लास ही मेरी दोस्त थी। हम क्लास में कितनी मस्ती करते थे। सभी एक दूसरे को कितना सहयोग करते थे। पर यहां मुझे तो क्लास ढूंढने में भी बहुत परेशानी होती। अक्सर टीचर्स की डाँट खानी पड़ती। वह अनुपस्थित लगा देती। टीचर्स की डाँट' . . .  यहाँ के टीचर्स की डाँट प्रेम पूर्ण या आप को सही दिशा देने के लिए हो वैसी नहीं रहती उसमें भी हिकारत के भाव होते। पहले दिन तो मैं घर जाकर खूब रोया। अपने टीचर्स जिनकी मैं हँसी उड़ाता था ,अपने दोस्तों को याद करके बहुत बहुत रोया। मम्मी अपने अमेरिका प्रेम में कुछ सुनने को तैयार नहीं थी। उनका सीधा वाक्य "यू हैव टू एडजस्ट डियर" (तुम्हें थोड़े समझौते करने पड़ेंगे)। पापा भी अक्सर रोते। हमेशा उनकी आँखें लाल रहती आँसुओं से भरी। दादा दादी से बातें करते तो वह भी रोते। हम चारों में से कोई नहीं चाहता था पर माँ की जिद के कारण आना पड़ा। पर माँ खुश थी अच्छी नौकरी, अच्छी सैलरी। अब धीरे-धीरे मुझे यहाँ का मौसम भी खराब लगने लगा। इतनी ठंड कि बाहर निकलने की हिम्मत नहीं और घर पर अकेले टीवी कितना देखूँ। मुझे भारत की याद आती, जहाँ मेरे सारे दोस्त हमारे घर के मैदान में दोपहर तीन बजे से जुट जाते थे। मैं ट्यूशन से पौने चार बजे आता, हम सब शाम को सात बजे तक खेलते। कभी साइकिल चलाते, कभी मम्मी के साथ कभी दोस्तों के साथ दरिया पर जाते। अब वही याद करता हूँ। माँ को रोज शाम की सैर के लिए दरिया पर जाना पसंद था पर मैं गुस्सा करता, "क्या रोज दरिया पर जाना ? माँ मुझे टीवी देखना है, मुझे देखने दो ना"। और अब हाल यह है कि टीवी देख देख कर बोर हो गया हूँ और दरिया के लिए तरस रहा हूँ। 


वहाँ भारत में स्कूल से आता था तो दादी इंतजार में बाहर खड़ी ही मिलती थी। आगे बढ़कर मेरा स्कूल बैग ले लेती। मैं जूते यहाँ फेंकता मोज़े वहाँ कपड़े, टाई, बेल्ट न जाने कहाँ-कहाँ। दादी प्यार से खाने की थाली लगा कर लाती। बढ़िया घी वाली दाल, कढ़ी, रोटी छाछ का बड़ा गिलास और मैं मुँह बनाता क्या दादी रोज छाछ, यह खाना भी कोई खाना है l कल पिज़्ज़ा बनाना नहीं तो पास्ता। दादी हँसती और बोलती, "यह सब मेरे को बनाना नहीं आता। शाम को तेरी माँ बना कर खिलाएगी"। दादी अक्सर ढोकला, इडली, खांडवी , हंडवा मुठिया ना जाने कितने तरह तरह के गुजराती व्यंजन बनाती। मैं नाटक करता और वह मुझे मनुहार से पुचकार कर खिलाती। शाम को ट्यूशन से आने के बाद चीकू शेक, मैंगो शेक कुछ ना कुछ तैयार रखती। और अब. . . . स्कूल से पहले दिन जब मैं घर आया। वैसे ही कपड़े जूते सब फेंक कर बैठ गया। लगा दादी अभी खाना लेकर आएगी पर काफी देर बाद में याद आया यहाँ दादी नहीं है। उठकर किचन में गया वहाँ भी कुछ नहीं था। शायद मम्मी को याद नहीं रहा या फिर उन्हें देर हो रही होगी। तो थका हारा बिना कुछ खाए लेट गया। बताने की जरूरत नहीं है शाम को मम्मी आई तो कितना गुस्सा हुई। पूरे घर में सारे मेरे सामान बिखरे थे। शाम को मम्मी ने पास्ता बनाया पर आज मेरा मन चपाती खाने का था। पर मम्मी बोली बहुत थक गई हूँ मुझसे चपाती ना होंगी। मैंने धीरे से कहा आज स्कूल से आने के बाद भी मैंने कुछ नहीं खाया। तो मम्मी बोली क्यों अंडा बना कर खा लेना था अभी तू बड़ा हो गया है। अपना काम खुद किया कर। मैं रो कर रह गया। अब मुझे पता नहीं भूख लगी थी या दादी की या अपने देश की याद आ रही थी मुझे बहुत रूलाई आ रही थी।


पूरा साल निकल गया। यहाँ मेरे एक भी दोस्त नहीं है। अब मुझे दादाजी की बात समझ आई। वह कभी गमले में लगे सूखे पौधों को निकालते नहीं थे। बोलते थे लगा रहने दो खाद पानी डालते रहो, जगह बदली है। थोड़ा समय लगेगा, लगने में, पनपने में। मेरा भी शायद वही हाल था। मैं सोच रहा था क्या मैं फिर से लहलहा पाऊँगा। 

जीवन एक ढर्रे पर चलने लगा था। स्कूल से आता जूते, मोज़े, कपड़े, बैग सब व्यवस्थित जगह पर रखता। खाना बनाता, कभी मम्मी बना कर रख कर गई होती तो गर्म करके खाता। मम्मी खुश होती, बोलती "देख दादी के लाड प्यार में बिगड़ गया था। अभी देख तू सब कुछ खुद से कर लेता है"। मैं सोचता क्या मैं दादी को इसलिए याद करता हूँ क्योंकि मैं उनसे प्यार करता हूँ या इसलिए कि मुझे अपने काम खुद से करने पड़ रहे हैं। जो भी हों मैं दादी दादा को बहुत याद करता। हर साल दो-तीन बार मुझे लेकर छुट्टियों पर जाने वाली मेरी माँ इस पूरे साल एक भी वीकऐंड मेरे साथ नहीं मना पाई। शायद उनका हाल भी मेरे जैसा था जगह बदलने पर। 


खैर परीक्षा के परिणाम आए मैंने इंग्लिश में टॉप किया था। लोगों के साथ मैं भी अचम्भित था। अंग्रेजों के देश में अंग्रेजी में टॉप करना। पर उसके बाद से मुझे पहचान मिली। लोगों ने दोस्ती के लिए हाथ बढ़ाया। अब नए सत्र में स्कूल जाना थोड़ा अच्छा लगा। इस सत्र में मैंने कुकिंग छोड़कर रेसलिंग लिया था। कुकिंग की सारी विधियाँ तो यूट्यूब पर भी मिल सकती हैं। मैं भारत में कराटे सीखा करता था अमेरिका आने से पहले ग्रीन - २ भी हो गया था। इससे मुझे रेसलिंग में बहुत मदद मिली। इंटर स्कूल रेसलिंग जीता तो बहुत सारे लोग मेरे दोस्त बने। पर इन दोस्तों के बीच में मैं अपने बचपन को दोस्तों को ढूंढता। मैं यह भूल नहीं पाता कि यह दोस्त मेरे मतलब के तब बने जब मैं ऊंचाई पर था। वह बचपन के दोस्त जिनका हाथ पकड़कर चलना गिरना सीखा था मैं उन दोस्तों को बहुत याद करता था। फोन करना चाहता पर दिन रात का अंतर। जब मैं फोन करता वह स्कूल में होते या ट्यूशन में। कभी-कभी लगता शायद मैं उनकी जिंदगी से दूर हो गया हूँ। मैं ना वहाँ का रहा ना यहाँ का हो पाया। 


धीरे-धीरे करके अब मेरे हाईस्कूल की परीक्षाएं भी हो गई। तीन साल हो गए मुझे भारत की याद आती है। उन सब की याद आती है। मुझे जाना है, पर मम्मी को छुट्टी नहीं मिली। यहाँ के बच्चे छुट्टियों में काम करते हैं। मुझे भी एक तरणताल (स्विमिंग पूल) में इंस्ट्रक्टर (गार्ड) की नौकरी मिल गई। सुबह चार घंटे जाना पड़ता है। किनारे पर बैठकर बच्चों पर नजर रखना। पहली पगार हाथ में आई तो इतनी खुशी हुई। लगा कि उड़कर दादी के पास पहुँच जाऊँ और उन्हें मिठाई लाकर खिलाऊँ। पर मन मसोस कर रह गया। अभी अगर मैं भारत में होता तो दोस्तों के साथ पार्टी करता। अरे पार्टी की बात पर याद आया पिछले साल की बात है मेरा जन्मदिन था। भारत में तो खूब घूम धूमधाम से मेरा जन्मदिन मनाया जाता था। दोस्त आते, गिफ्ट लाते, पार्टी करते। यहाँ एक लड़के ने बोला, "इट्स योर बर्थडे बडी, आई विल गिव यू ए ट्रीट"। मैं खुश चलो कोई तो सच्चा दोस्त मिला जो मेरे लिए सोचता है। हम एक दुकान में गए उसने पूछा क्या खाओगे ? मैंने बोला, "व्हॉट ऐवर यू लाईक" (जो तू मंगा ले)। उसने मंगाया हमने खाया बाद में बिल आने पर वह बोला, "आई विल शेयर द बिल विद यू" मैं हक्का-बक्का मन में सोच रहा था कि जब तू ट्रीट दे रहा है बे तो पैसे आधे आधे क्यों"। वह तो बाद में मुझे पता चला है कि ट्रीट देना मतलब अपना-अपना खरीद कर खाना। वहाँ भारत में तो हमने कभी दोस्तों के बीच में हिसाब ही नहीं रखा। कभी मैं खिला देता कभी दोस्त कोई हिसाब नहीं, खैर..। 


यहाँ मेरे साथ ही एक लड़की है। वह भी इंस्ट्रक्टर है। मुझे अच्छी लगती है। शायद मेरी उम्र की ही है या मुझसे बड़ी। पता नहीं कभी बात नहीं की। एक दिन वह बोली, "हाय ! डू यू लाइक मी"? मैं हड़बड़ा गया। हकलाते हुए बोला, "यस आई लाइक यू"। वह बोली, "ओके देन दिस वीकेंड वी विल गो फॉर डेट"। डेट का नाम सुनकर मैं तो खुश हो गया। घर पहुँच कर पहले ढूँढ ढूँढ कर पैसे गिने। अरे भाई घूमेंगे फिरेंगे तो लड़की थोड़ी ही ना खर्च करेगी। मुझे ही खर्च करना पड़ेगा और मम्मी को बता नहीं सकता था। शनिवार को सज धज कर गया कि डेट पर जाना है। वह बोली, "आइ थॉट, वी विल गो एट नाइट। ओके डन, वी गो आफ्टर जॉब। विच होटल यू वांट टू गो"(मुझे लगा हम रात को जाएंगे। कोई नही काम के बाद जाएंगे। किस होटल में जाना पसंद करोगे) ? होटल...? मेरा तो दिमाग सुन्न हो गया। डेट के लिए होटल ? मैं तो अभी बहुत छोटा हूँ। हे भगवान नहीं चाहिए, नहीं करनी डेट। बहाना मार कर उस से पीछा छुड़ाया। वह कितना गुस्सा कर रही थी, "यू स्पाइल माय वीकएंड (तुमने मेरे सप्ताहांत खराब कर दिया)"। मेरे सामने ही उसने किसी को फोन करके बोला कि रात को मिलते हैं। तब मुझे याद आया बेटा यह भारत नहीं है अमेरिका है। यहाँ प्रेम प्यार नहीं करते यहां तो सीधे ....  होता है। उसने बाद में दोबारा कई बार मुझे आग्रह किया। नई उम्र थी मन तो करता था पर संस्कार रोक लेते थे। खैर मैंने वहाँ की नौकरी छोड़ दी वैसे भी अब कॉलेज में दाखिला लेना था। 


तब से इंग्लैंड से बड़े पापा मुझे छुट्टियों के लिए लिवाने आ गए। इतने सालों बाद मैं पहली बार अपनी बहन से मिलूँगा। हम साथ में राखी मनाएंगे। वैसे तो हम लगभग रोज ही वीडियो ग्रुप चैट करते थे। पर मिलना है यह सोच कर मैं बहुत खुश था। पर वहाँ जाकर भी अच्छा नहीं लगा। वह मेरी बहन बचपन से वही पैदा हुई, वहीं बड़ी हुई थी। इसीलिए उसके दोस्त उसका एक दैनिक जीवन था। जिसमें वह मुझे शामिल नहीं कर पा रही थी। बड़े पापा ने इंग्लैंड घुमाया। मुझे यहाँ व अमेरिका में कुछ फर्क नहीं लग रहा था। वहाँ भी मैं अकेला रहता था। घर पर यहाँ पर भी बड़े पापा बड़ी मम्मी के जाने के बाद अकेला ही रहता। कितना टीवी देखूँ ? कितना प्ले स्टेशन पर खेल खेलूँ। खैर कल सुबह राखी है। नसीब से शनिवार या रविवार था। याद नहीं हफ्ते का आखरी दिन था। मैं खुशी-खुशी सुबह उठ कर नहा धो कर बैठ गया। इतने बरसों बाद पहली बार मेरी बहन मुझे राखी बांधेगी। वह उठी मुझे देखकर पूछा तुम इतनी सुबह सुबह तैयार होकर कहीं जा रहे हो ? मैंने बोला, राखी है। वह बोली, "सो व्हाट ? चिल ब्रो, वी आर नॉट सलेब्रेटिंग" (तो क्या ? हम नही मनाते है।)। हाँ मैंने भी पिछले तीन सालों से राखी नहीं मनाई है। पर अब मैं आया हूँ तो तू राखी बांध दें। वह बोली, "ओके कम, आई विल टाई राखी टू यू" (ठीक है आ जाओ बाँध देती हूँ।)। मैंने कहा, अरे बाबा ऐसे नहीं जा जाकर नहा तो ले। वह मुँह बनाती पर शायद बड़े पापा ने कुछ कहा तो वह गई। लगभग एक घंटे बाद नीचे आई। तब तक मैंने सब ढूंढ ढूंढ कर पूजा की थाली सजा ली थी। दिया ढूंढ रहा था। तो वह हँसी भाई यहाँ दिया नहीं जला सकते। यहाँ आग जलाने का समय है। इस समय जो अलग टाइम में जलाया तो अलार्म बजने लगेगा। यह कैसा देश है? मैं अपने देश की यादों में डूब गया जहाँ मेरे पड़ोस की बच्चियां मुझे राखी बांधने आती थी और मैं उन्हें खूब परेशान करता था। राखी के दिन देर से उठता, आराम से नहाता। मुझे मालूम था वह बेचारी बिना मुझे राखी बांधे कुछ ना खाएंगी। मैं उन्हें परेशान करता। पर मैं उन्हें पिछले तीन सालों से कितना याद कर रहा हूँ। 


      मैं कुछ दिनों बाद वापस लौटकर अमेरिका आ गया। जिंदगी वापस अपने ढर्रे पर चलने लगी। मैंने कॉलेज के साथ-साथ एक डिपार्टमेंटल स्टोर में नौकरी भी कर ली। अब मैं सच में पैसा बचाना चाहता था। मैं अपने देश अपने दादा दादी से मिलने जाना जाता था। इस बार मम्मी को छुट्टी मिली और वह देश जाने के लिए तैयार भी हो गई। वह भी इसलिए कि उन्हें उनकी माँ को देखने जाने का था, नानी बीमार थी। पापा को छुट्टी नहीं मिल पा रही थी। पापा की लाल आँसुओं से भरी आँखें और निरीह सा चेहरा अपनी यादों में लेकर हम भारत आ गए। मम्मी मुझे दादी दादा के पास छोड़कर, एक दिन रुक कर अपनी माँ के पास चली गयी। मैं आया हूँ यह सुनकर मेरे सारे दोस्त मुझसे मिलने आएँ। अजीब बात है कोई भी मेरा हाल नहीं पूछ रहा था। सब अमेरिका के बारे में जानना चाहते थे, कि भाई स्कूल कैसे हैं? कहाँ कहाँ घूमा ? नियाग्रा फॉल देखा या नहीं ? मेरे बचपन के दोस्त जैसे अजनबी से लग रहे थे। शाम को दरिया पर जाने का प्रोग्राम बनाने को कहा तो सब दोस्तों ने असमर्थता जताई। किसी का ट्यूशन था किसी का स्पोर्ट्स। जितना परायापन मुझे वहाँ अमेरिका जाने पर महसूस हुआ था वहीं परायापन वापस आने पर महसूस हुआ। जितना उछलता कूदता खुशी मन से भारत गया था, उतना ही बुझे मन से वापस आया। लोगों को दिखता नहीं है पर किसी के लिए भी एक मिट्टी को छोड़कर दूसरी मिट्टी में जड़ पकड़ना आसान नहीं। एक शून्य सा पैदा हो जाता है। जो फैलने लगता है और छा जाता है आपके पूरे वजूद पर। ऐसा ही एक निर्वात मेरे अंदर भर रहा था। जहाँ खुशियाँ मर गई थी। सिर्फ जीना था, पता नहीं क्यों ? 


      अब मैंने बारहवीं पास कर ली है। इस साल कोरोना का कहर फैला है। मेरी तेरहवीं की पढ़ाई सब अटक गई है। सब दुनिया पिंजरे में बंद हो गई है। मुझे फर्क नहीं पड़ता मैं तो पहले से ही पिंजरे में बंद था। कोरोना की लहर उठ रही है। मम्मी डॉक्टर है इसीलिए उनका जाना जरूरी है। अब डर लगता है। पापा कल रो रहे थे। पता नहीं अब कभी मैं अपने माँ पापा को देख पाऊँगा भी या नहीं। पापा वापस लौटना चाहते हैं। क्या मैं भी ? पता नहीं। कोरोना के साथ जीते जीते साल भर हो गया। दादी का फोन आता है। सब ठीक है, वीडियो कॉलिंग में दादाजी बहुत बीमार दिखते हैं। पर दादी बोलती है, "नहीं सब ठीक है "।

     आज आखिर दादाजी के जाने की खबर भी आ गई। मैं और पापा जाना चाहते हैं। पर कोरोना वायरस और मम्मी बोली, "जाने में कम से कम बीस घंटे लगेंगे। इतनी देर वहाँ कौन रखेगा। जाने वाला तो चला ही गया। अब जाकर बेकार में क्या करोगे? कुछ दिन बाद जाना। सब जमीन बेचकर माँ (दादी) को साथ ले आना। पापा बहुत रो रहे थे। बापूजी चला गया बगैर मिले माँ भी चली जाएगी। मैं कितना अभागा हूँ। मुझे यहाँ नहीं मरना। मैं वहाँ की जमीन नहीं बेचूंगा। वहाँ की धरती से नाता नहीं तोडूंगा। पापा की बात सुनकर मुझे लगा कुछ पौधे दूसरे गमलों में लग तो जाते हैं पर लहलहा नहीं पाते। उनकी आधी जड़े वही टूट कर रह जाती है, पहले गमले में, जैसे पापा, जैसे मैं . . . शायद। मैं क्या करूँ ? यहाँ जीना हैं एक शानदार विलासिता पूर्ण जिन्दगी .. . . . या फिर लौट चलूँ उस मिट्टी के बुलाने पर ... .. वापस अपने देश। 


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