वो खूबसूरत सफर
वो खूबसूरत सफर
बात आठ वर्ष पूर्व की है। बड़ी बेटी इंजीनियर है और उस समय विप्रो कंपनी में काम करती थी, दिल्ली में उसकी जॉब थी, वह वहाँ एक गर्ल्स हॉस्टल में रह रही थी। हम लोगों का भी प्रोग्राम बना की चलो दिल्ली चलें। वहाँ से मनाली, शिमला, धर्मशाला घूम कर आएंगे। मई का महीना था, बेटी मीनल से बात हुई। उसने कहा, आप लोग आ जाओ मैं फ्लाइट की टिकट करवा देती हूं। उसने रायपुर से दिल्ली की टिकट कराई। निर्धारित दिन हम वहां पहुचे तो मीनल कैब लेकर हम लोगोंनको लेने भी आ गई थी। अपने होस्टल के पास ही उसने एक जगह हम लोगों के रुकने की व्यवस्था भी की थी।
जब वहां से मनाली जाना था, उसने ऑनलाइन बस की टिकट मनाली होटल में भी रुकने की बुकिंग कर ली, यह सब देख मेरे पति ने कहा, अरे इसने तो सब व्यवस्था कर ली मुझे कुछ भी नहीं करना पड़ा। हम सब मनाली, शिमला, धर्मशाला सब जगह खूब घूमे। लौटते समय पति ने बेटी को गले लगाकर कहा, "बेटा तूने हमारी यात्रा कितनी आसान कर दी, मुझे कुछ भी नहीं करना पड़ा।” उसने हँस कर कहा, "पापा बचपन में आपने हम लोगों को खूब घुमाया, अब हमारी बारी आई है। आज इस कबिल भी तो आपने ही हमें बनाया है।” पति की आंखों में खुशी के आँसू आ गए और बेटी पर बहुत गर्व महसूस हुआ हमें।
मनाली, शिमला घूमने की इच्छा थी जो बेटी ने पूरी करा दी, बहुत खुशी महसूस हुई हमें।