मदद और मार्गदर्शन
मदद और मार्गदर्शन
आशा जी मॉर्निंग वॉक कर अपने घर लौट रही थी कि एक नवयुवक सामने आकर हाथ जोड़ प्रणाम किया। उन्होंने नजर उठा कर देखा, एकदम लंबा चौड़ा, हट्टा कट्टा युवक जो देखने से सेना का जवान लग रहा था।
"जी आप कौन?"
इतना सुनते ही वह नवयुवक तुरंत उनके चरण पकड़ लिए।
आशा जी ने बांह पकड़ उठाते हुए कहा, "बेटा, मैंने आपको पहचाना नहीं। कृपया अपना परिचय दीजिए और क्या आप मुझे जानते हैं?"
"जी मैम, आपको जानता हूं। आप प्रधानाध्यापिका श्रीमती आशा जी हैं और मैं विपिन।"
"कौन विपिन?? मैं तो किसी विपिन को नहीं जानती?"
"मैम, मैं विपिन आपका स्टूडेंट!"
वो दिमाग पर जोर डालने लगी कि ये विपिन कौन है?
"मैम, शायद आप भूल गई। जनता हाई स्कूल में पढ़ने वाला आपका स्टूडेंट विपिन! जिसे गिल्ली डंडा खेलने के लिए आपने थप्पड़ जड़ा था और आपने मेरी..!"
बात पूरी होने से पहले ही आशा जी ने कहा, "हां-हां याद आया। तो तुम वही विपिन हो!'' बोलते ही पुरानी यादें आंखों के सामने चलचित्र की भांति चलने लगी।
अभी-अभी उनका तबादला जनता हाई स्कूल में प्रधानाध्यापिका के तौर पर हुआ था। पहले दिन जब वो कक्षा में गई तो देखा, विपिन लास्ट बेंच पर अकेला बैठा था। वह सबसे पहले उसी के पास गई नाम पूछा और हिंदी किताब निकालने को कहा।
पहले तो कुछ देर गुमसुम खड़ा रहा पर, जब उन्होंने दोबारा कहा वह डरते डरते बोला मैम मैं आज किताब लेकर नहीं आया हूं।
क्यों..?
"मैम, वो.. वो मैं घर पर भूल गया।" सिर झुकाए ही बोला।"
"देखो रोज जो विषय पढ़ाई होती है वह सभी लेकर आया करो।"
"जी मैम।"
फिर दूसरे बच्चों का किताब लेकर उसे अपनी कुर्सी के पास खड़े होकर जोर-जोर से पढ़ने को कहा।
अगले दिन जब वह कक्षा में आई तो वहां सभी बच्चे थे सिवाय विपिन के।
उन्होंने सब बच्चों से उसके बारे में पूछा भी पर किसी ने कुछ जवाब नहीं दिया।
अगले दिन जब वो आया तो उन्होंने पूछा कल क्यों नहीं आया? देखो स्कूल रोज आया करो तभी आगे बढ़ोगे। नहीं तो तुम्हारे सभी साथी अगली कक्षा में चले जाएंगे और तुम इसी कक्षा में रह जाओगे।"
उसने जी मैम तो कहा। पर, उसके बाद वह अक्सर अनुपस्थित रहने लगा। कभी आता भी तो अंतिम बेंच पर ही बैठता, पढ़ाई पर बिल्कुल ध्यान नहीं देता। उन्होंने एक दो बार उसके बारे में बच्चों से पूछा भी पर किसी ने ज्यादा कुछ नहीं कहा।
एक दिन उन्होंने विपिन को बहुत समझाया कि अगले साल बोर्ड परीक्षा है तो रेगुलर स्कूल आओ और पढ़ाई पर ध्यान दो। उसने हां में तो सिर तो हिलाया पर किया कुछ नहीं।
एक दिन स्कूल की छुट्टी होने के बाद जब वो घर जा रही थी तो रास्ते में एक चौराहे पर विपिन कुछ बच्चों के साथ गिल्ली-डंडा खेलते हुए दिखा। उन्होंने विपिन को बहुत डांटा और कहा, "कल अपने पेरेंट्स के साथ स्कूल आओ, वहीं बातें करूंगी। स्कूल आने और पढ़ाई पर ध्यान देने के बजाय गिल्ली डंडा खेल रहे हो।"
विपिन जब अगले दिन पैरंट्स के साथ नहीं आया तब उन्होंने फिर पूछा, पैरंट्स को साथ में क्यों नहीं लाए? उसने बिना कुछ बोले सिर झुका लिया।
इन्होने गुस्से में दो-तीन थप्पड़ जड़ दिया, "एक तो रोज स्कूल नहीं आते, ना कभी होमवर्क करते हो और चौराहे पर बच्चों के साथ गिल्ली डंडा खेलते हो। पेरेंट्स के साथ आने को कहा था, क्यों नहीं लेकर आये?"
तब उसने सिसकते हुए कहा, "मैम, मेरे पापा नहीं है और मां लोगों के घरों में काम करती है। बीमार होने की वजह से पिछले कुछ दिनों से काम पर नहीं जा रही तो मुझे ही घर का सारा काम और मां की देखभाल करना होता है। यही कारण है कि मैं स्कूल नहीं आ पाता हूं। फिर मेरे पास सारी किताबें और कॉपियां भी नहीं है। रेगुलर स्कूल नहीं जाने की वजह से मुझे गणित और विज्ञान कुछ समझ में नहीं आता। बस इसलिए, कभी समय भी रहा तो इस स्कूल जाने से डर लगता है कि कहीं आप डांटेंगी।"
उसकी बातें सुनकर उन्होंने कुछ देर सोचा फिर कहा, "कौन-कौन सी किताबें तुम्हारे पास नहीं है? नाम बताओ!"
अगले दिन वो सारी किताबें और कुछ कॉपियां, पेन, पेंसिल विपिन को दिया और कहा रेगुलर स्कूल आने के साथ शाम को मेरे घर पढ़ने आ जाया करो।
अब विपिन स्कूल आने के साथ रोज शाम उनके घर भी पढ़ने जाने लगा। उन्होंने विपिन को पढ़ाने के लिए बहुत मेहनत की। विपिन भी कड़ी मेहनत करने लगा। आखिर दोनों की मेहनत रंग लाई और विपिन दसवीं कक्षा प्रथम श्रेणी में पास हुआ। स्कूल के आखिरी दिन विपिन अपनी मां के साथ आया था। दोनों इनके सामने सामने हाथ जोड़कर रो रहे थे, "मैडम जी आपकी वजह से मेरा बेटा पढ़ पाया।"
"देखिए, यह सफलता विपिन की कड़ी मेहनत का परिणाम है। हां विपिन, तुम अपनी मेहनत और लगन को आगे भी जारी रखो, जीवन में कुछ करो और मां को कभी मत भूलना।"
उसके बाद फिर कभी विपिन से मुलाकात नहीं हुई। कुछ सालों बाद ये भी सेवानिवृत्त हो गईं।
सब याद करते ही उन्होंने कहा, "अरे विपिन तुम! बहुत बदल गए तुम तो। बिल्कुल भी पहचान में नहीं आ रहे।"
"मैम, आपकी बातों को गांठ बांध मैं जी तोड़ मेहनत करता रहा और उसका परिणाम मुझे मिला भी। अभी 5 साल पहले मेरा सिलेक्शन इंडियन आर्मी में हो गया और अभी मैं आर्मी ऑफिसर हूं। मैंने आपको ढूंढने की बहुत कोशिश की पर पता नहीं चला। आप जहां रहती थीं मैं वहां भी गया। तब पता चला कि आप तो वहां किराए पर रहती थी। अभी मैं यहां से गुजर रहा था तो आपको देख रुक गया। मैम, आपका बहुत बहुत आभार! आज मैं जो कुछ भी हूं सिर्फ और सिर्फ आपकी वजह से हूं। मुझे आशीर्वाद दीजिए मैं यूं ही आगे बढ़ता रहूं।"
सुनते ही आशा जी की आंखें भर आई उन्होंने विपिन के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, "विपिन, उस दिन भी तुम्हारी बातें सुनकर मेरी आंखें भर आई थी और आज भी पर तब दुख के आंसू थे और आज खुशी के। मैं आज तुम्हें देखकर बहुत खुश हूं। अपने आप को बहुत ही गौरवान्वित महसूस कर रही हूं। मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ है, तुम यूं ही जीवन में आगे बढ़ो और सफलता प्राप्त करो।"
"मैम, मां आपको बहुत याद करती है, आपसे मिलना चाहती हैं।"
"विपिन, मेरी भी उम्र हो चली है, तबीयत ठीक नहीं रहती। इसलिए मैं ज्यादा बाहर नहीं जाती। तो मैं नहीं आ पाऊंगी पर, हो सके तो तुम अपनी मां के साथ आ जाओ। और हां, मेरा घर यहां से कुछ ही दूरी पर है तो चलो आओ मेरे साथ तुम्हें अपने हाथों से चाय पिलाऊं।"
"न.. न..नहीं..मैम..!"
"अरे घबराओ मत! आज मैं अपने स्टूडेंट को नहीं बल्कि देश की सेवा करने वाले जवान को चाय पिलाऊंगी और यह मेरे लिए बहुत गर्व की बात होगी। तो शरमाने की जरूरत नहीं।"
विपिन ने सिर झुका कर उन्हें धन्यवाद कहा। फिर देश के दो रियल हीरोज घर की ओर चल पड़े।