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Arunima Thakur

Abstract Tragedy Inspirational

4.9  

Arunima Thakur

Abstract Tragedy Inspirational

ग्रे रंग ... बुराई का विनाश

ग्रे रंग ... बुराई का विनाश

5 mins
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नौ देवियों के रूप में छठवी नारी शक्ति पत्नी रूप को प्रणाम है ।

 नवरात्रि का छठवां दिवस माँ कात्यायनी के नाम है। 

ग्रे रंग बुराई के विनाश को दिखाता है। विनाश के बाद भी बुराई प्रकट कहाँ से होती है ? हम समझ ही नही पाते है। अच्छाई और बुराई एक सिक्के के दो पहलुओं की तरह साथ रहते हैं। कब बुराई अच्छाई में और अच्छाई बुराई में परिवर्तित हो जाती है पता ही नही चल पाता। जैसे ग्रे रंग एक साथ सफेद और काले दोनों का प्रतिनिधित्व करता है। सफेद अच्छाई और काला बुराई का प्रतीक माना जाता है। जबकि शरीर पर एक सफेद दाग चिंता और काला तिल सुंदरता का प्रतीक माना जाता है। मतलब मान्यताएं बदलती रहती है। हमेशा हमारी सहानुभूति लड़कियों के लिए होती है। पवित्रता शालीनता इन शब्दों से लड़को को दूर ही रखा जाता है। पर क्या पुरुषों को पवित्रता शालीनता की परीक्षा नही देनी पड़ती ? आकंड़े उठा कर देख लीजिए अदालतों में लाखों मुकदमे पत्नी पीड़ितों के है। तो क्या सच में यह वो अबलाएं है जो सबला बन कर अपने को प्रताड़ित करने वालो से हिसाब लेना चाहती है ? या ये वो बलाएँ हैं जो पुरुषों उनके परिवारों को प्रताड़ित करती हैं, घर में, समाज में, कोर्ट में। क्या ये बलाएँ भी शक्ति का स्वरूप कहलाती हैं। चलिये आज की कहानी पढ़ते है।

"मैं आखिरी बार पूछ रही हूँ, मुझसे शादी करने में तुम्हें क्या एतराज है" ? 

"समझो तो, मैं नहीं करना चाहता हूँ शादी"।

"किसी और को प्यार करते हो" ?

 "मैं किसी को पसंद करता हूँ या किसी और को प्यार करता हूँ, इससे तुम्हें क्या ? मैं शादी नहीं करना चाहता बस" । 

"हम बचपन के दोस्त हैं। मैंने तुम्हारे अलावा कभी किसी और के बारे में सोचा ही नहीं"।

 "तो दोस्त हो तो दोस्त रहो ना। शादी की जिद क्यों" ? 

"देखो अब भी अगर तुमने मुझसे शादी के लिए हाँ नहीं की तो मैं तुम पर हैरेसमेंट का केस कर दूंगी" । 

"हैं ??? ऐसे कैसे ....? पुलिस कानून भी कोई चीज है" ?

"कौन सी दुनिया में रहते हो ? कानून पुलिस यह सब लड़कियों के लिए है, लड़को के लिए नही",ऐसा बोल कर वह खतरनाक तरीके से मुस्कुराई।

जब तक शलभ कुछ सोच पाता उस पर बलात्कार का आरोप लग चुका था। टूटा फूटा घायल वह पुलिस स्टेशन में था । दुखी कविता पुलिस के सामने बैठी रो रही थी। दोनों के माँ-बाप भी मौजूद थे। कविता की नौटंकी चालू थी। अब मुझसे शादी कौन करेगा ? सब तो मुझे ही गलत समझेंगे ?

 उधर पुलिस भी शलभ को छोड़ने के मूड में नहीं थी । 

शलभ के मम्मी पापा बार-बार हैरानी, परेशानी, लाचारी से कविता और उसके मम्मी पापा से कहते है, "यह दोनों तो बचपन के दोस्त है। हमेशा साथ रहते।आज तक शलभ ने कोई गलत हरकत नहीं की। यह अचानक कैसे हो गया" ? 

कविता के मम्मी पापा भी दुविधा में थे। वह शलभ को बचपन से जानते थे। पर लड़की इतनी बड़ी बात झूठ तो नही कहेगी। अपनी बेटी पर तो शक करने का सवाल ही नही है। बातों, आरोपों-प्रत्यारोपों के बीच कविता सुबकते हुए बोली, "अब मेरे पास शलभ से शादी करने के अलावा कोई विकल्प ही नहीं है"।

शलभ चिल्लाते हुए, "मैंने ऐसा कुछ नहीं किया है। मैं शादी नहीं करना चाहता"।

कविता रोते हुए, "पापा अब मेरा क्या होगा ? मेरी कितनी बदनामी हो जाएगी"? 

शलभ के पापा उसको समझाते हुए, "बेटा अब जो होना था हो गया। अगर तूने इससे शादी नहीं की तो यह तेरी जिंदगी तबाह कर देगी। साथ साथ हम सब की भी। सोच हमारा, तेरे भाई बहनों का क्या होगा"? 

"पर पापा जब मैंने कुछ गलत किया ही नहीं है तो मैं क्यों ... .? "

शलभ के पापा शलभ के आगे हाथ जोड़ लेते हैं, "बेटा अब सब कुछ तेरे हाथ में है। तेरा भविष्य भी और हमारा भविष्य भी"।

शलभ के शादी के लिए हाँ बोलते ही मामला रफा-दफा हो जाता है। धूमधाम से शादी की तैयारियां होती हैं। शादी करके कविता घर पर आ जाती है। शादी की पहली रात कविता बहुत खुश है और सुहाग सेज पर बैठकर शलभ का इंतजार कर रही है । शलभ आता है और तकिया लेकर वही बिस्तर पर लेट जाता है। 

कविता को बहुत बुरा लगता है, "देखो तुम मेरे साथ ऐसा नहीं कर सकते। तुमने मुझसे शादी की है"

"मैंने तुमसे नहीं, तुमने मुझसे शादी की है वो भी जबरदस्ती, धोखे से"।

"पर तुम्हें मेरा अधिकार देना पड़ेगा"। 

शलभ बिना कुछ उत्तर दिए मुड़ कर सो जाता है।

 कविता सोचती है आज नहीं तो कल मैं शलभ को मना ही लूँगी। कविता के तमाम लटको झटको, अच्छी बहू के नाटक के साथ लगभग पूरा महीना निकल जाता है। इन सबके बावजूद भी शलभ कविता को स्पर्श तक नहीं करता हैं। एक रात कविता अपनी ओर से पहल करती है पर शलभ कोई प्रतिक्रिया नही करता। 

कविता गुस्से में चिल्लाती है, "यह तुम क्यों कर रहे हो ?

 शलभ मुस्कुराते हुए कहता हैं, "क्या अभी भी तुम्हें समझ में नहीं आया कि मैं शादी क्यों नहीं करना चाहता था। अब जाओ तुम जाकर दुनिया को चीख चीख कर बताओ कि मैं नामर्द हूँ और ऐसा करने पर तुम ही झूठी साबित होगी। तुमने जो मुझ आरोप लगाए थे वो सब झूठे साबित होंगे। दुनिया को मेरी सच्चाई और तुम्हारी मक्कारी पता चलेगी। फैसला तब भी तुमने किया था। आज भी फैसला तुम्हे ही करना है। वैसे अब चाहों तो मेरे घरवालों और मुझ पर दहेज और उत्पीड़न का केस कर सकती हो"।

कहानी ना तो खत्म हुई है न शुरू हुई है। कुछ कहानियां बस ... । किसको गलत कहेंगे ? प्यार करना गलत तो नही है। बस यही ज़िन्दगी है, काले सफेद के तालमेल में बीत जाती है कभी भी परफेक्ट ग्रे बनता ही नही हैं।

(नवरात्रि! माँ के पूजन, शक्ति के पूजन के दिन है। सारी कहानियां शक्ति स्त्री को केंद्र में रख कर सकारात्मकता के साथ लिखनी चाहिए थी मुझे। पर माँ के लिए बेटा व बेटी दोनो बराबर है। अगर शक्ति का दुरूपयोग किया जा रहा है तो उस ओर ध्यान दिलाना आवश्यक है )


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