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Bhawna Kukreti

Abstract

4.7  

Bhawna Kukreti

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फेयरवैल

फेयरवैल

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"अपने बेतरतीब होते बालों को कसते हुए, मेरी कमीज की जेब से बेझिझक, पैन निकाल कर अपने बालों मे खोंस लेना काफी था, मेरा उसके इश्क में पड़ने के लिए।"


पहली बार उसे तब देखा था जब मैं यूनिवर्सिटी के लेक्चर हॉल में पहुंचा ही पहुंचा था। मेरी आदत थी मैं हमेशा सबसे पहले पहुँच कर सबसे पहली रो पर जाकर बैठना पसंद करता था। यह क्यों था यह मुझे आज भी नहीं पता लेकिन उस दिन उस सुनसान लेक्चर हॉल में जाते ही मैंने एक दुबली पतली ,साधारण सी लगने वाली लड़की को बैठे देखा।

वह इधर-उधर दीवारों को ताक रही थी और उंगलियों के बीच में अपने चश्मे को घुमाए जा रही थी। मैं उसी रो पर उससे कुछ दूरी पर जाकर बैठ गया। जैसे अमूमन होता है की शिष्टाचार वश एक दूसरे को लोग नमस्कार वगैरह करते हैं पर इस लड़की को जैसे कुछ तहजीब ही नहीं थी। इसने मेरी ओर देखा और बिना हाय हेलो या नमस्कार किए बोली "लेक्चर कितने बजे शुरू होता है ? " मुझे पता नहीं था तो मैंने कंधे उचका दिये।


यह हमारी बेहद आम सी पहली मुलाकात थी ।मुझे नहीं पता था यह लड़की मेरी जिंदगी में भटकाव की वजह बनेगी। नहीं उसे गलत मत समझिएगा। दरअसल मैंने औरों की तरह इसको " गलत "समझने की गलती करी, जिसकी वजह से मैं जिंदगी में बहुत भटका।


यह रहस्यमयी सी लगने लगी थी। इस लड़की को मैं जितना ज्यादा नोटिस करता जा रहा था ,यह मुझे उतनी ही बनावटी नजर आती थी ।एक बार को तो मुझे लगा कि यह बेहद शातिर दिमाग है मगर मेरा भ्रम तब टूटा जब मैंने उसे खो दिया।


मुझे तब नहीं पता था कि वह सिर्फ मुझसे ही क्यों बात करती थी ।मगर उसे कुछ भी पूछना होता या कुछ बताना होता ,तो वह मेरे पास ही आती थी ।उसे लाइब्रेरी जाना होता तो मेरे पास आती ।लैब जाना होता ,तो मेरे पास आती थी । वह मुझसे हमेशा सीधे सपाट मागर अधिकार भरे लहजे में बोलती थी कि मेरे साथ यहाँ चलो - वहां चलो।


पता नहीं क्या था मैं उसे मना नहीं कर पाता था। वह भी कभी मेरे कहे किसी भी काम के लिए मना नहीं करती थी। हालांकि हमारे काम भी यही हुआ करते थे कि कभी लैब चलना, कभी लाइब्रेरी जाना, कभी सर के पास जाना या नोटस बदलना बस। बाकी उसके पास बातें करने के लिए कुछ इटरेस्टटिंग ही नहीं होता था।घूम-फिर कर वह बस कोर्स की बातें करती, ऐसी बोरिंग बातें कई हुई। साधारण सी बनी रहती थी इतनी कि कभी उसके साथ कोई शरारत करने की भी इच्छा नहीं होती थी।


फिर आया फ्रेशर्स वेलकम पार्टी का दिन। मुझे लगा कि शायद यह झल्ली इस दिन तो थोड़ा ढंग से आएगी। लेकिन वह दो चोटी की जगह एक चोटी बनाकर आई । बस यह उसका पार्टी में आने का बेहतरीन तरीका था। मुझसे पता नहीं तब क्यों रहा नहीं गया और मैंने उससे कहा "कम से कम आज के दिन तो बाल खोल लेती।इतने लंबे बाल है तुम्हारे ,थोड़ी सुंदर लगती।" उस पल उसने कुछ देर तक मेरी आंखों में देखा और फिर बिना कुछ बोले पूरी पार्टी में चुपचाप बैठी रही।


उस पार्टी में हम अपने बैच वालों से थोड़ा खुले।नतीजा अब हम दो से 5 लोग हो गए थे,दोस्त-यार टाइप , जो पहली रो पर बैठा करते थे। मगर हम पांच में से चार मानो 1 थान के कटे थे। हम चारों जब हंसी मजाक करते थे तो ऐसा लगता था इस पांचवी को या तो कुछ समझ में नहीं आता या यह बहुत पहुंची हुई है।मैने कहा "एरोगेंट मत बनो "जवाब में उसने कहा "एरोगेंस नही बस मुझे सबसे खुलना पसंद नहीं,ज्यादा लोग क्यू चाहिए तुम्हें ? "।


धीरे-धीरे समय बीता, हम लोगों का दायरा बढा।फिर जैसा होता है ,हमारे ग्रुप में से पहले एक आशिक मिजाज का झुकाव इस झल्ली की और हुआ। फिर वह और छिछोरों की नजरों में आने लगी। शुरू शुरू में हल्का-फुल्का मजाक मैंने भी करना शुरू किया जो धीरे-धीरे गंभीर होता चला गया। मगर ऐसा लगता था कि झल्ली सब समझते बूझते भी अनजान बनती है।उसके बारे में अब एक राय कायम होने लगी की ये बेहद शातिर है।


हमारा मेलजोल जितना औरों से बढता गया उसके बारे में उसे लेकर दोस्त तरह तरह की बातें करने लगे। मुझे उससे अंदर ही अंदर नाराजगी सी होने लगी।हालांकि वह मुझसे ठीक वैसे ही पेश आती थी जैसे आया करती थी मेरी हर बात पर बिना सवाल भरोसा , हर बात पर साथ , कोई ज्यादा बदलाव नहीं था सिवाय इसके कि मेरे कहने पर वह अब थोडा लोगों से हसी मजाक करती। मगर मुझे ऐसा लगने लगा था कि वह बहुत तेजी से बदल रही है। यह भी लगने लगा कि वह मुझे फारग्रान्टेड लेती है, मेरा इस्तेमाल करती है। और इस एहसास को सही साबित करने में यारों की फैंटेसी ने भी कोई कसर भी नहीं छोड़ी थी।


मगर झल्ली थी कि मानों उसे कुछ पता ही नहीं था।हाँ उसे कुछ अहसास नही था। उसे सिर्फ मुझसे ,मेरी पढ़ाई-लिखाई से और कभी कभी परिवार मे मेरी माँ से मतलब रह्ता था।शायद मै उसके प्यार में पड चुका था।मगर वो ?! उस पर कोई असर ही नहीं दिखता था।लगता था की जाने वह मुझे क्या समझती है ? सिर्फ दोस्त या बैचमेट या जानबूझ कर मुझसे खेल , खेल रही थी।



इसी तरह तीन साल बीत गए।आखिर वो दिन आया जब हमें हमारी जूनियर फेयरवेल पार्टी दे रहे थे। उस दिन दोस्तों के उकसाने पर मैंने उसे सबके बीच घेर लिया और सीधे शब्दों में पूछा "तुम्हें लड़कों में कौन अच्छा लगता है ?"मेरे इस सवाल से वह थोड़ी असहज हुई मगर फिर सहज होते हुए बोली " क्या बेवकूफी है " मगर मैं जाने क्या साबित करना चाहता था शायद यह कि वह जितनी सीधी बनती थी वह उतनी है नहीं और यही मैं उसे बताना चाहता था कि मैं बेवकूफ नहीं हूं उसे बहुत अच्छी तरह से समझ गया हूँ।


उसे एक बार फिर उसे बांह खीचते कोने में ले जाकर पूछा "क्या तुम मुझे पसंद करती हो " इस पर वह कुछ नहीं बोली।उसकी इस खामोशी को मै समझ नहीं पाया। कुछ देर वह बुत सी खडी रही आस पास के हुजूम को देखती रही " अबे यह तो यहाँ फसी है , तभी पटी नही " भीड से कोई चिल्ला कर बोला। उसी पल बिना कुछ कहे वह वहां से चली गई। मगर मैं सुनना चाहता था अपनी जीत। जब भी उससे मिलना चाहता वह हर बार बच कर निकल जाती। एक गुबार सा भरता गया।


उसके बाद जाने कितनी लडकियो को मैने उसकी सजा दी, मगर हर बार उसकी वो खामोशी मेरे जहन मे शोर मचाती आती और मै छटपटा कर रह जाता।अहसास होने लगा कि शायद झल्ली और मेरी दोस्ती, मेरी गलतफहमी/अहंकार की भेंट चढी थी। वो मेरी बेहतरीन दोस्त थी जिसे सिर्फ मुझ पर , हमारी दोस्ती पर यकीन था।शायद मेरे एकतरफा प्यार ने उसे अन्जाने में गहरी चोट दे दी थी।


आखिरकार सालों बाद उसे फेसबुक पर ढूंढ निकाला। इस बार उम्मीद नहीं थी पर मैसेंजर पर "हैलो झल्ली" भेजा। चार महीने बीत गए कोई जवाब नही। फिर लिखा " मुझे माफ कर दो तो चैन से जी पाऊँ "।


21अगस्त , मेरा जन्मदिन, सुबह सुबह मैसेंजर का नौटिफीकेशन, "हेल्लो जीनियस, हैप्पी बर्थ डे, सब भूलो आगे बढो, बाय।", "रूको प्लीज" मैं जैसे वापस फेयरवैल हाल मे खडा उसे पुकार रहा था। वो इस बार रुकेगी , यह यकीन हो रहा था, "हां कहो ?"


इस बार उसे खोना नहीं चाहता था सो बहुत संभल कर चल रहा था। मगर अगले चंद दिनो चली बातों से यह अहसास हो रहा था कि भले मैं फेयरवैल हाल में ही अटका हूँ मगर झल्ली अपनी जिंदगी मे बहुत आगे निकल चुकी है और किसी गहरी उलझन मे है। बडी हिम्मत करके पूछा

" किसी उलझन में हो ?"

" नही उलझन नहीं ।बस ,लगता है मुझे मेरा झल्ला मिल गया है "

"कौन, मै ? "


वह फिर खामोश हो गई ,मैं फिर सहम गया। कुछ दिन बाद उसका जवाब आया


"😊 😊 नही जीनियस तुम नहीं , मेरा ट्विन सोल है।"

"ओह।"

"अलविदा।"


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