Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Priyanka Gupta

Drama Inspirational Others

4.5  

Priyanka Gupta

Drama Inspirational Others

मैं ही हूँ तुम्हारी माँ

मैं ही हूँ तुम्हारी माँ

7 mins
193


"तुम मेरी सगी माँ नहीं हो न, इसलिए मुझे पूरा दिन डांटती रहती हो। दादी सही कहती है, तुम में ममता है ही नहीं, इसीलिए तो तुम्हारी अपनी कोई संतान नहीं हुई।" सुगंधा रोते-रोते ऐसा कहते हुए अपने कमरे में चली गयी और सुगंधा की माँ वृंदा, सौतेली माँ वृंदा बुत बनी वहीं की वहीं खड़ी रह गयी।

वृंदा को समझ ही नहीं आया कि उसकी बेटी उसे क्या बोलकर चली गयी है ? वह क्या प्रतिक्रिया व्यक्त करे ? कुछ समय के लिए उसके दिल -दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था। वृंदा और सुगंधा की जन्मदात्री माँ वैदेही दोनों बहुत ही अच्छी सहेलियां थी। वृंदा छोटी जात से थी, लेकिन वैदेही को उससे कोई फर्क नहीं पड़ता था। वृंदा का वैदेही के घर आना -जाना था। सुगंधा के पिता शिशिर भी काफी सुलझे विचारों के थे। तीनों घंटों बैठकर विभिन्न राजनीतिक, आर्थिक मुद्दों पर चर्चा करते थे।

शिशिर की माँ सुमित्रा जी वृंदा को छोटी जात का होने के कारण पसंद नहीं करती थी। वृंदा के खाने -पीने के बर्तनों को रसोई में ले जाने नहीं देती थी। मौका मिलते ही वह उसकी जाति को लेकर उस पर कोई न कोई ताना भी मार ही देती थी। लेकिन वृंदा उनकी बातों का बुरा नहीं मानती थी, उसका कहना था कि, "जिन मान्यताओं को वो बचपन से मानती आयी हैं, अब एक दम से इस उम्र में कैसे छोड़ सकती हैं। हमें तो उनका शुक्रिया अदा करना चाहिए कि कम -से -कम वे घर में मेरे आने -जाने पर तो रोक नहीं लगाती और कभी -कभी हमारे साथ बैठ भी जाती हैं। किसी के लिए भी बदलाव को स्वीकार करना बहुत मुश्किल होता है। और एक उम्र के बाद तो कुछ ज्यादा ही मुश्किल।"


वृंदा के सुलझे हुए विचारों से शिशिर बहुत प्रभावित थे और उसका बहुत सम्मान भी करते थे। ऐसे में ही वैदेही गर्भवती हुई, सभी लोग बहुत खुश थे। सुमित्राजी की ख़ुशी तो समाये नहीं समा रही थी। वृंदा के प्रति भी उनके व्यवहार में नरमी आ रही थी। वैदेही ने समय आने पर एक बेटी को जनम दिया , डॉक्टर्स के अथक प्रयासों के बावजूद वैदेही के रक्त स्नाव को कम नहीं किया जा सका। वैदेही जान गयी थी कि ,"ईश्वर एक नयी जिंदगी के बदले पुरानी ज़िन्दगी चाह रहा है। कई बार ईश्वर भी मनुष्य जैसा लालची हो जाता है। "

वैदेही ने वृंदा और शिशिर को अपने पास बुलवाया और अपनी नवजात बेटी को वृंदा की गोद में देते हुए कहा कि,"वृंदा जानती हूँ ,तुमने अपनी ज़िन्दगी के लिए कुछ अलग सपने देख रखे हैं। लेकिन यह स्वार्थी माँ अपनी इस नन्ही सी जान के लिए तुमसे तुम्हारे सपने मांगती है। अपनी बेटी को तुम्हारे हाथों में सौंपकर निश्चिंत होकर जा सकूंगी। जानती हूँ तुमसे बहुत बड़ा बलिदान मांग रही हूँ, दूसरी पत्नी और सौतेली माँ को हर पल तलवार की धार पर चलना होता है। समाज और लोग तुम्हारे हर निर्णय और कार्य का अपने नज़रिये से मूल्यांकन भी करेंगे। लेकिन तुम्हारे सिवा किसी और पर भरोसा भी नहीं है।" कहते -कहते वैदेही की सांसें उखड़ने लगी थी।


वृंदा ने उसे सहारा दिया और कहा ,"तुम आराम करो ,तुम्हें कुछ नहीं होगा। हम दोनों मिलकर अपनी गुड़िया के सारे सपनों को पूरा करेंगे। "तुम्हें अच्छे से जानती हूँ कि तुम कितनी दृढ़ निश्चयी हो, जो एक बार तुमने मेरी गुड़िया को आँचल में समां लिया तो स्वयं भगवान भी तुम्हारा निर्णय नहीं बदल सकते। वादा करो तुम मेरी बेटी की माँ बनकर हमेशा उसके साथ रहोगी। हो सके तो अपनी इस अभागी सखी को तुम्हें इस दुविधा में डालने के लिए माफ़ कर देना। " ऐसा कहकर वैदेही हमेशा -हमेशा के लिए इस दुनिया से रुखसत हो गयी थी और वृंदा उसे अपने मन कि बात तक नहीं बोल पायी थी ।

शिशिर ने वृंदा को वैदेही के वादों से मुक्त करते हुए कहा भी था कि ,"वृंदा ,यह तुम्हारी ज़िन्दगी है। तुम्हें अपने तरीके से जीने का पूरा हक़ है। मैं तुम्हें वैदेही के वादों से मुक्त करता हूँ। "

वृंदा कोई निर्णय नहीं ले पा रही थी। उसने शिशिर से सोचने के लिए कुछ वक़्त माँगा। इस बीच वृंदा लगातार सुगंधा की देखभाल के लिए आती रहती थी। शिशिर पर उसकी माँ दूसरी शादी के लिए दबाव बनाने लगी थी। शिशिर के लिए प्रतिरोध करना मुश्किल हो रहा था, वैसे भी वैदेही के जाने के बाद शिशिर काफी टूट सा गया था।

आखिर वृंदा ने अपने सपनों के ऊपर अपनी सखी से किये वादे को तरजीह दी और उसने सुगंधा की माँ बनने का निर्णय ले लिया। वृंदा की जाति को लेकर वृंदा को नापसन्द करने वाली सुमित्रा जी भी तुरंत इस रिश्ते के लिए मान गयी। वे अपने बेटे का घर हर कीमत पर दोबारा बसते हुए देखना चाहती थी।

शादी के कुछ समय बाद सुमित्राजी वृंदा पर बच्चे के लिए दबाव बनाने लगी। उनकी इच्छा थी कि ," घर को अपना एक चिराग भी मिल जाए, रोशनी तो पहले से ही है। "सुमित्राजी की इच्छा पूरी नहीं हो रही थी, उन्होंने रोज़ मंदिर -देवालयों के चक्कर लगाना शुरू कर दिया। कभी -कभी वृंदा को भी लेकर जाती। तब एक दिन थक हारकर वृंदा और शिशिर ने उन्हें बताया कि ,"वृंदा कभी माँ नहीं बन सकती। "

सुमित्राजी का उस दिन से वृंदा के प्रति व्यवहार बदल गया। वृंदा ने सुमित्राजी से झूठ बोला था और शिशिर को भी इसमें शामिल कर लिया था। वास्तव में ,वृंदा गर्भवती हो भी गयी थी ,लेकिन वह बच्चा नहीं चाहती थी। शिशिर ने उसे बच्चा रखने के लिए समझाया भी था। तब वृंदा ने कहा कि ,"शिशिर, मैं सुगंधा को दिलोजान से चाहती हूँ। लेकिन खुद के बच्चे के कारण कहीं में जाने -अनजाने में सुगंधा का दिल न दुखा दूँ। अगर सुगंधा को मेरी वजह से कोई भी तकलीफ हुई तो मैं वैदेही को ऊपर जाकर क्या जवाब दूँगी। "


तब शिशिर ने वृंदा को कहा, "लेकिन वृंदा माँ बनना तो हर औरत का सपना होता है। पहले ही तुम हमारे लिए अपने सपनों का बलिदान कर चुकी हो। "

"शिशिर मैं तो बिना प्रसव -पीड़ा से गुजरे हुए पहले से ही माँ हूँ तो दोबारा माँ बनने के लिए प्रसव -पीड़ा से क्यों गुजरूं?" वृंदा ने जवाब दिया।

"फिर भी। "शिशिर ने कहा।

"बस शिशिर, हम इस बारे में और बात नहीं करेंगे। "वृंदा ने कहा।

"और ,माँ को क्या कहेंगे ?" शिशिर ने पूछा।

"कह देंगे कि मैं कभी माँ नहीं बन सकती। नहीं तो, झूठी उम्मीद लिए वे मंदिरों के चक्कर काटती रहेंगी। "वृंदा ने कहा।

"तुम पागल हो गयी हो। बाँझ का लांछन लिए पूरी उम्र कैसे जीयोगी, जबकि तुम बाँझ नहीं हो।" शिशिर ने कहा।

"जानती हूँ ,बाँझ नहीं हूँ, इसीलिए तो लांछन नहीं लगेगा मुझे।" वृंदा ने मुस्कुराते हुए कहा।

"तुम्हारे लिए किन शब्दों का इस्तेमाल करूँ? समझ नहीं आ रहा। तुम हमारे लिए इतना सब......"

वृंदा ने शिशिर के बात ख़त्म करने से पहले ही अपना हाथ उसके मुँह पर रख दिया।

"अब तुम डॉक्टर से अपॉइंटमेंट ले लो।" वृंदा ने अपनी कोख अपनी खुद के हाथों से ही नष्ट कर दी थी।

आज जब वृंदा ने सुगंधा को उसके भले की लिए ही डांटा तो, सुगंधा इतनी बड़ी बात बोलकर चली गयी थी।" शायद किशोर होती बेटी को मैं समझ नहीं पा रही हूँ। लेकिन किशोरावस्था में ही उठाया गया कोई गलत कदम मेरी बेटी की पूरी ज़िन्दगी बर्बाद कर सकता है। लोग चाहे कुछ कहे ,सुगंधा चाहे कुछ भी कहे, मैं उसको अपनी ज़िन्दगी में कोई भी गलत कदम उठाने नहीं दूँगी। उसे सही -गलत का फर्क समझाना मेरा फ़र्ज़ है। अगर आज मैंने उसे अकेला छोड़ दिया तो मेरी ज़िन्दगी भर की तपस्या बर्बाद हो जायेगी। वैदेही के सपनों का क्या होगा ? "यह सोचते हुए वृंदा ने सुगंधा की कमरे की तरफ अपने कदम बढ़ा दिए।


उधर सुगंधा को भी अपनी गलती का एहसास हो रहा था। वह सोच रही थी कि ,"मेरी सभी सहेलियों की मम्मी भी तो उन्हें देर से घर आने पर डांटती है। उन्हें बार -बार फ़ोन करती है। मम्मी तो बच्चों के लिए फ़िक्र करती ही हैं। दादी तो मम्मी से हमेशा ही नाराज़ रहती हैं, मुझे दादी की बातों में आकर मम्मी से नाराज़ नहीं होना चाहिए था। जब भी मैं बीमार होती हूँ, मम्मी पूरी रात मेरे सिरहाने बैठी रहती है। पापा ने कितनी बार बताया है कि मेरी देखभाल ठीक से हो सके इसलिए मम्मी ने नौकरी भी नहीं की। मुझे तो लगता है कि पापा भी झूठ बोलते हैं कि मुझे जनम देने वाली मम्मी वैदेही मम्मी थी। लोगों कि गलत -सलत बातों पर ध्यान देकर मैंने उनसे कितनी बदतमीजी से बात की।मैं भी क्या करूँ ?बचपन से सबसे यही सुनती आ रही हूँ कि इस बेचारी कि तो सौतेली माँ है। लेकिन मुझे अपनी माँ और दूसरों कि माँ में कभी कोई फर्क ही नहीं लगा। जब भी तुलना करनी चाही ,अपनी माँ ही बेहतर लगी। मुझे अपने व्यवहार के लिए मम्मी से माफ़ी मांगनी होगी। "

वृंदा की आवाज़ ने सुगंधा को अपने विचारों की दुनिया से वास्तविक दुनिया में ला दिया," सुगंधा बेटे, सो रही हो क्या ?गुस्से में खाना भी नहीं खाया, गुस्सा इंसान को खुद को ही नुकसान पहुंचाता है। "

"मम्मी ,मुझे माफ़ कर दो, मुझे आपसे ऐसे बात नहीं करनी चाहिए थी।" सुगंधा ने वृंदा के गले में बाहें डालते हुए कहा।


"मेरी अच्छी बेटी। मैं ही हूँ तुम्हारी माँ सगी भी और सौतेली भी आगे से कभी यह मत कहना कि तुम मेरी सौतेली बेटी हो।" वृंदा ने उसे गले लगाते हुए कहा।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama