तलाश
तलाश
यारअब फ़ोन पे कितना रोएगी? मुझे अच्छा नहीं लगता " रोशन बोला ।
"तो क्या करु?इस बार छुट्टियोंमैं भी घर नहीं आ रहे हो। तेरा ये मिशन छुट्टियाँ बर्बाद कर रहाँ हैं
याद नहीं आएगी क्या"सिया फटाकसे बोल पड़ी।
"हाँ।क्या मैं याद नहीं करता? मगर जानू। ड्यूटी के आगे मैं कुछ नहीं कर सकता ।"
"पता हैं। फक्र भी हैं तुजपे।मगर ये दिल हैं की मानता ही नहीं।मिशनपे जा रहे हो तो घभराहट तो होती ही हैं।कुछ ऐसा वैसा हुआ तो।"।सिया रोने लगी फिरसे।
"अरे पगली। हम तीन लोग हैं ।
और सिर्फ तीन दिन की तो बात हैं। फिर वापस पोस्टपे आ जाऊंगा।तु सोच मेजर साहबनेकितने विश्वासके साथ मुझे ये मिशन दिया हैं।मुझे उनकी उम्मीदों पे खरा उतरना हैं।तुझे और कुछ मिशनके बारे मैं नहीं बता सकता।
मगर रिस्क तो हैं। मगर।जान हैं तो मेरा जहाँँ हैं "
"ठीक हैं वापस आने के बाद मुझे फ़ोन करना। तभी मुझे चैन आएगा।"
"हाँ। क्यूँ नहीं मैं भी तो तुज़से बात करनेको तरसता रहता हु।अपना और माँ- बाबा का ध्यान रखना ! अगर।मिशन कामियाब हुआ तो उम्मीद के जल्दी छुट्टियाँ मिल जाए।तो घर आ जाऊ।"
वोह तो तुम आ चुके। हम्म्म।तुम और तुम्हाँरे मेजर ।ठीक हैंकोशिश करना।"
"चल अब बड़ीवाली स्माइल देदे। रोना नहीं "
"ठीक हैं।देशके जवान।जाओ मिशन पर।यहाँँ मुझे फ़ोनका इंतज़ार रहेगा।"आँसू पोछते हुए सिया बोली।
"अलविदा"।
"अलविदा। ख्याल रखना अपना"
रोशन। एक भारतीय जवान जिसका अभी अभी प्रमोशन हुआ था।वोह हमेशा मेजर कुलदीपकी परीक्षामैं खरा उतरा था। देशके लिए कुछ भी करनेको तैयार।2 मिशन उसकी निगरानी तले कामियाब हो चुके थे।देशका नाम रोशन हुआ था।
मगर। इसबार हाँलत अलग थे।केंद्रीय सरकारनेसरहदी राज्यों के लिए कुछ अलग ही नियम बनाये थे जिसे पडोशके देश को लेकर सरहदोंपे काफी गर्माहट चल रही थी।दुश्मनोका ज़ोर काफी बढ़ गया था।
और उसके रहते घुसपेठियोका ज़ोर भी बढ़ गया था।
कारगिल का इलाका। जो बहुत ही सेंसिटिव था वहाँं थोड़े दुर दुश्मनोनेबारूद और क्खिटकनी
बिछानेकी सजिश की थी।
बस उस बारूदको वहाँंसे हटना था। और इलाका सुरक्षित करना था उसके लिए।
सतनामसिंह,रोशन बत्रा और महोसिन खान को सीक्रेट मिशन पर भेजनेकी
की तयारी की जा रही थी।
कैसे बारूद ढूँढना हैं ? कैसे उसे वहाँंसे कैसे सुरक्षित निकलना हैं? और साथ साथ दुश्मनसे भी बचना हैं और ये सब तीन दिनोंमैं करके वापस आना था ।
सतनाम और मोहसिन पहेली बार रोशन के साथ जा रहे थे रोशन उनका चीफ था।
मेजर कुलदीप ने उन तीनो को बुलाया।
"बॉयज।गेट रेडी फॉर योर बेस्ट वर्क। आई नीड ओन्ली सक्सेसफ्रॉम योर साइड।"
तीनो एक साथ।"यस सर।"
मेजर कुलदीप।"जान जाए भी तो क्या?""
तीनोएकसाथ। "कोई फर्क नहीं सर।जान से पहले जहाँँहैं ""देश के लिए जीना हैं। देश के लिए मरना हैं"
सुबह की पहेली किरन धरती को छुए उसे पहले तीनो हेलीकाप्टरमें बैठ चुके थे.और मिशनकी और चल दिए..
मेजर कुलदीप हेलीकॉप्टरको गर्वके साथ और बड़ी उम्मीद के साथ विदा करके देख रहा था और अपने जवानो पे फक्र महेसुस कर रहा था.
दिसंबर का महीना और कड़ाकेकी सर्दी..बहुत ही तेज़ हवा चल रही थी.कारगिल की घाटियोंमें हवा ज्यादा तेज़ हो जाती हैं..पुरी सावधानीसे रोशनकी टीम आगे बढ़ रही थी.धीरे धीरे उस इलाकेमें पहुंचे जहा बारूदकी आवश्यकता थी.जैसा सोचा था..वैसा ही पाया.. बारूद मिलने लगे.. धीरे धीरे मशीनसे और हाथसे बारूद और खिटकनीको निष्क्रिय कर रहे थे.आधी घाटी तक अंदर पहुंच चुके थे.ठण्ड अपना काम कर रही थी. हाथ पाव बुरी तरहासे कापते थे.हाथमैं कुछ पहेन नहीं सकते थे.. क्यूँकी..बारूदको छूना था. दो दिन तक यही थकाने वाला काम किया..
अब्भी लग रहा था कही कही बारूद होंगे.इसलिए ज्यादा सावधानी बरतनी थी.
तीसरे दिन ज्यादा ठण्डकी वजहसे बर्फ गिरनी शुरू हुई..अब तो और मुश्किल..फिरभी जल्दी से काम ख़तम करने लग गए.. आज तीनो अलग दिशामैं काम कर रहे थे.रोशनने उन दोनों को सावध किया और वाकीटाकी फ़ोनसे संपर्क बनाये रखनेको बोला.
और कहा वापस मिलना हैं वोह भी बताया.
काम और ठण्डकी वजहसे रोशन थोड़ा थक चूका था.एक गुफाके मुखके पास एक बड़ा पत्थर था..
ठण्ड कम लगे ये सोच कर..वोह गुफा वाले छोटे पत्थर बैठ गया.. बैग थोड़ी दुर रखा था..बर्फ गिरनी बंध नहीं हुई थी.
"क्लीक..क्लिक"..आवाज़ आयी..
रोशन को पता चल गया के उसके पैरोंके तले एक बारूद एक्टिव हो चूका था.. उसे बर्फ की वजह से पता ही न चला और थकके चेक किये बिना बैठ गया इसलिए ये नौबत आई थी..
वोह बारूद नहीं था मगर खटकनी थी जिसे वोह जख्मी ही होगा ये उसे पता नहीं था..मगर बारूद तो बारूद ही होता हैं..
रोशनकी हालत बुरी थी.. भगवन याद आगये..
पैर हटानेके बाद क्या होने वाला था वोह जानता था
आँखों से आँसू निकल पड़े..वोह भी बहे नहीं पाए ठण्ड से जम गए.. उसे सिया की याद आगई..अगर वोह नहीं रहा तो सियाका क्या हाल होगा ये सोच कर उसका बुरा हाल था पुरी ज़िंदगी इंतज़ार करती रहेगी..
माँ-बाबा भी कैसे खुद को संभालेंगे?ये सोचता रहा..
फिर एकदमसे सतनाम और मोहसिन को वॉकीटॉकी से लोकेशन बताना चाहा.. मगर बैग लेने के लिए उसे थोड़ा खिसकना पड़ेगा.. इतना दुर भी नहीं था मगर वोह बिलकुल हिल नहीं सकता था.फिर भी रोशन ने कोशिश करने की ठानी.
मगर...जैसे ही घुमा। पैर थोड़ा ही खिसकाया और धड़ाम।।
बैगके साथ उछलकर वोह गुफामें गिरा।पुरी तरहाँसे पैर नस्टहो चुके थे। कमर तक लहू लुहाँन था और फिर वोह बेहोश हो गया।बर्फ का गिरना जोरोसे शुरूहुआ फिर। वोह गुफा का द्वार अस्सी प्रतिशत ढक चूका था और बाहर खूनपे ताज़ा बर्फ की चादर ढक चुकी थी सारे निशान कुदरतने मिटा दिए की ऐसा हाँदसा हुआ था यहाँँ।
इस तरफ 2 घंटे के बाद जब सतनाम और मोहसिन आये। नियत जगहपे तो रोशनका कोई अता पता नहीं था। कब से सतनाम कोशिश कर रहाँ था मगर वॉकीटॉकीभी बंध आ रहाँ था।सतनाम उसका प्यारा दोस्तभी था।उसनेऔर मोहसिन मिलकर पूरा एरिया छान मरा जहाँ रोशनके होनेकी सभावना थी।
अपने दोस्तको न पाकर सतनाम पुरी तरहाँ से टूट गया।उसने बड़े गमगीन स्वरमें मेजर कुलदीपको बताया। की रोशन लापता है।मेजर तो मान ही नहीं रहे थे के रोशन लापता हैं।
हेलीकॉप्टरके साथ 2-3 और नौजवानकी सर्च टीम भेजी।
और तलाश शुरू की।वॉकीटॉकी होता तो तुरंत लोकेशन पता चलता। मगर वोह उसे दूसरी जगह ही ढूंढ़ रहे थे।
सिया। रोशन की बीवी।शादी के सिर्फ 5 साल हुए थे पर दुर रहते भी उनका प्यार बढ़ता ही जा रहाँ थाफ़ोन के माध्यम से ही सही।वोह पास महेसुस कर रहे थे।
दो दिन ज्यादा हो चुके थे।रोशन तीसरेदिन फ़ोन करने वाला था।उसका दिल बैठा जा रहाँ था।उसकी गभरहट बढ़ गई थी। उसने फिर हेडक्वाटरमें फ़ोन किया। और पूछा तो पूरा वाकिया जानने को मिला।
फ़ोन पे ही वोह बिलख बिलख के रोने लगी।मगर फिर तुरंत कुछ ठोस निर्णय लिया। और अपने सांस ससुर को अनाप - शनाप कुछ भी बताके घर से निकली।
और एक दिन में पहोच गई।मेजर कुलदीप के पास हेडक्वार्टर्स। और रोने लगी। मेजर भी दहल गया।रोशन मरा नहीं था मगर कहाँ था ये।ढूँढना था और जल्दी से।
"खो गया हैं हमसफ़र मेरा।
बस तलाषु। जब तक।अखरी सफर मेरा।
मान लो मेरी बात।और जाने दो उस डगर।
ढूंढ़ लुंगी उसे।करके तलाश-ए-हमसफर।"
ये सुनके मेजर थोड़ा पिघल गया।मगर ऐसा अभी तक कोई आया नहीं था।
सिया जैसे। रोशन को ढूंढने आई थी।
मगर फिर भी ऐसे इलाको में आर्मी के सिवा कोई जाता नहीं हैं।ऐसे इलाके प्रतिबंधित होते हैं
वहाँं जानामुमकिन ही नहीं हैं और ये बर्फ का मौसम भी जानलेवा होता हैं वहाँं। मगर सिया नहीं मानी और बोली ।
" भेज दो चाहे कुछ नौजवान अफसर।
ठान लिया हैं।की ढूँढनाहैं उसेहर डगर।
मर जाउंगी।और क्या होगा??
ज़िंदा रही तो हमसफ़र साथ होगा "
अब मेजर क्या बोल सकता था। उसनेकर्नल
से बात की और ये सब बताया।
कर्नल ने बताया। "इट इस नॉट पॉसिबल टू एलाउ हर इन रिस्ट्रिक्टेड एरिया इन कारगिल। बट । इफ यू इन्सिस्ड ।टेक रिस्क बाय योर साइड एन्ड सेंड हर।"
मेजर वैसे तो दिलवाला था। उसकोअपने रिस्कपे कुछ जवान अफसरकी जाँच टीमके साथ कारगिल भेज दिया।काशकुछ पता चले।
पहोच गए सब घाटीमैं।चारो और आँखे चौंधियाने वाली बर्फ।और ऊपरसे ये ठण्ड।
कुछ दिखाई नहीं दे रहाँ था
सिया रो पड़ी।
"कहाँ होे मेरे रोशन। "महबूब"
देख तुझे ढूंढने आई हु मैं खुद।
ए खुदा। कर दे कुछ रहम --महेरबानी।
फिर से शुरू हो मेरी प्रेम-कहाँनी"।
धीरे धीरे टीमके साथ सिया चलने लगी।बर्फपे चलते चलते दोपहर तक तो थक चुकी थी।मगर हिम्मत नहीं हाँरी थी।बस रोशन को लेकर घर जाना था।कही कही बर्फ पिघली थी मगर। सबुत नहीं मिल रहे थे।
गर वॉकीटॉकीभी मिल जाए तो कुछ भी तलाश कर सकते थे।
बस अब सिया से चला नहीं जा रहाँ था।बस वोह वही जा बैठी जहाँ रोशन गुफामैं पड़ा था। पत्थरोकी गुफामैं ये कड़ाकेकी सर्दी थोड़ी कम होगी ये सोच कर वहाँं बैठी।
रोशनको होश आ गया था मगर 6 दिनसे सुस्त था ,कमज़ोर था पैर हिला नहीं सकता था।मगरवोह अपनाे हाँथोके सहाँरे । जोर लेकर थोड़ा अंदर खिसक गया था। ताकि कोई जानवर नाआ जाये।
पुरी टीम उसे सामने वाले पहाँड़ पे ढूंढ़ रही थी।सिया की हाँलत बुरी थी। उसकी सांसे फूली थी और घभराहट भी हो रही थी।
"आज मर जाऊ तो कोई ग़वारा नहीं।"
देख। तु जल्दी आ।तेरे बिना
मेरी कश्ती का कोई किनारा नहीं।।"
और जोर से रो पड़ी।रोशन को मद्धम मद्धम कुछ रोने की आवाज़ सुनाई दि।उसने बगल मैं पड़े पत्थर को उठाके उस और फेका। गुफा बड़ी नहीं थी।मगर।अब तककाफी अँधेरा हो चूका था तो सिया वोह आवाज़ सुनके गभरा गई।जैसे कोई जानवर हो।वोह गुफा के बाहर तुरंत दौड़ आई और टीमको बुलाके कुछ इशारा किया (गुफा को लेकर।)
पुरी टीम वहाँं आ गई। सर्चलाईटकी रौशनीसे
हाँथमैं गन लिए वोह सब गुफामैं दाखिल हुए।
थोड़ा अंदर जाते ही देखा तो वोह रोशन बेहाँल पड़ा था।तुरंत स्ट्रेचर को लेने दो जवान बाहरदौड़े।सिया को अंदर जाने को बोला।
सिया अंदर गई सर्च लाइट की रौशनी रोशन पर गिर रही थी।वोह वहाँं गई और दौड़ के उसे लिपट गई।मगर उसकी हाँलत देख रो पड़ी।
मगर। तभी जवानने उसे दुर किया और वक़्त ना गवाते हुए स्ट्रेचर पर लेटाके हेलीकॉप्टरकी और निकल पड़े सारे खुश थे।
सिया बहोत ही खुश थी की रोशन ज़िंदा हैं।बस उसे रोते हुए देखे जा रही थी।
"बुलंद था हौसला
मेरा तुझे ढूंढने का
बस आखरी सांस तक हर
मुश्किल से जूझने का।
पाया तुझे जैसे किस्मत का दस्तूर
मिलना फिरसे था यही खुदा को मंज़ूर "
और आखिर हेलीकाप्टर पोस्ट की और चल पड़ा था।
"आज एक "रोशन" सुबह हो चुकी थी।
बस एक प्रेम-कहाँनी फिरसे शुरू हो चुकी थी।