कोरा कागज़....
कोरा कागज़....
पूरी ज़िन्दगी, जब उसका इंतज़ार किया।
और अब जब आखरी दिनों मैं बिस्तर पे पड़ा हू और उसे याद कर रहा हूँ।
बहोत ही समझते थे एक दूसरे को।महोब्बत बेइंतहा थी। ये तो आई लव यू कहना भी ज़रूरी नहीं था बस आँखों के ज़रिये ही सब जातती थी।
और मैं समज जाता था मगर तक़दीर की क्या लेखी थी मिल नहीं पाए।
आज अकेला वृद्धाश्रम मैं खुद के आखरी दिनों मैं सब याद आ गया।
आज उसने आखरी दिनों मैं भी मिलना मुनासिफ न समजा।ये कोरोना की वजह से ।तो।ये महामारी न होतीतो भी वोह कहा आने वाली थी।
बस आज एक लिफाफा भेज दिया मेरे नाम का।बस उसे खोलने की ज़रूरत ही नहीं थी। मैं ने खोले बिना ही पढ़ लिया था।पर बाजु मैं बैठा जिगर जो मेरा हमराज़ था।हम उम्र और साथ रहता था।
उससे रहा नहीं गयाऔर लिफाफा खोला।"अरे ये तो कोरा कागज़ है बड़े भाई। सिर्फ नाम ही लिखा है।"शिला"।कुछ नहीं लिखा।ये केसा सन्देश ?
मेरे आँख से आंसू निकल आये अनराधर।और बोला।" जिगर।ये कागज़ दुनियाभर की महोब्बत
भर के लिफाफे मैं बंध होके आया है। तुम नहीं समझोगे।"और एक प्यार भरी नज़र से उस कोरे कागज़ को देखता रहा उसमें कुछ नहीं लिखा था फिर भी बहुत कुछ लिखा था, गर समझो तो।