एक बरगद की छाँव

एक बरगद की छाँव

1 min
309



मैं एक बरगद का पेड़,बड़ा ही विशाल 

बहुत ही मज़बूत ।चलो आज कुछ बात करते हैं । गांव के चौराहे पे सालों से खड़ा..जैसे गांव वालों का चौकीदार।

सुबह जब सूरज रोशन होता है सारे पंछी दाना लेने जाते हैं तब उसके बच्चों की रखवाली करता हूं।

गांव की कोई भी औरत पानी भर के यहीं आती है और उस बहाने मुझे भी पानी पिलाती है।

अरे वो...फ़क़ीर..और संत है ना

उनके लिए तो में आशीर्वाद रूप हूं।

जब भी थकते थे तो यहीं सो जाते थे मेरे पास और वो रमेश और उसके सब दोस्त मेरी  डाली पे लटक के झूला झूलते हैं .. बहुत मस्तीखोर हैं।

पर सच बोलूं, वही सब ज़िंदगी की असली खुशहाली है..और मेरे सब से प्यारे साथीदार भी सुबह शाम सालों से यहीं गांव के हालचाल पर दूर दू तक नज़र रखे खड़ा हूं ।

धूप सर्दी..और बारिश को सहता हूं, पर मुझे कोई अफ़सोस नहीं है।क्यूँकी गांव वालों का मैं प्यारा हूं।कभी नहीं काटेंगे ये मुझे विश्वास है ।मुझ में भी जान है ये सब समझते हैं।

बस ऐसे ही गांव की पनाह में ज़िंदा रहूँगा और उनका सुख दुःख का साथी बनूंगा ।



Rate this content
Log in