एक औरत भी
एक औरत भी


गांव में मेला लगा था, और उस में बहुत सारे मनोरंजक शो, और दुकानें थी, सिमा और शालू को देखनेका बहुत मन था, मगर बहु होने के नाते वोह ज्यादा बाहर नहीं जा सकती थी ऐसे मेले में, क्यूँकि सास का घरमें काफी ठोस था उन दोनों पे, और उनकी मर्ज़ी के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता था मगर मेला देखने का मन बहोत था, पर कैसे जाए ?
तब उस वक्त अचानक सासूमाँ को बाजु के गांव में जाने का न्योता आया, और वोह चल पड़ी।
तब सिमा और शालू का ख़ुशी का ठिकाना ना रहा और वह दोनों बाजुवाले शंकरराम के छोटे बेटे को बोल के निकले की अगर उनकी सास वापस आये तो पहले से खबर करे। दोनों निकल पड़ी और मेले में मज़े करने लगी।
बहुत सारी दुकाने देखी और फिर दोनों कठपुतली का बड़ा शो लगा था। वहां बड़े चाव से देखने बैठ गए, वो कठपुतली वाला बोला, "देखो ये रंगबिरंगी कठपुतलियां हमेशा फुदकती हमेशा खुले दिल से बातें करती, आज आप सबसे बहुत सारी बातें करेगी।" और खेल शुरू हुआ।
तभी पीछे से आवाज़ आई की, "दीदी, चलो आपकी सास आ जाएगी थोड़ी ही देर में।"
तब वोह भड़क के डरी हुई सटकसे खड़ी हो गई और अफ़सोस करते हुए चल पड़ी घर, और एक बार पीछे मुड़के, "फुदकती कठपुतलियों" को अफ़सोस से देखने लगी।