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Modern Meera

Abstract Drama Fantasy

5.0  

Modern Meera

Abstract Drama Fantasy

मॉडर्न मीरा

मॉडर्न मीरा

6 mins
528


मॉडर्न मीरा

पार्ट 1


दिमाग सुन्न हो रहा है बिलकुल.

अब तो एक भी बात जैसे मुझे सुनाई भी नहीं दे रही. क्लब में म्यूजिक तेज़ और तेज़ होता जा रहा है, और दिल की धड़कने भी. पसीने की बूँद से शरीर का कोई हिस्सा अब बचा नहीं जो नहाया न हो, जबकि हाथ में अब मेरे ये चौथी ठंढी बियर की बोतल है. मुझे तो २ के बाद ही रुक जाना था लेकिन न ये शाम ढल रही है और न मुझे उस रात की ओर रुख करना है जो साली काटने को दौड़ती है.


ठंढी बोतल को थोड़े देर यु ही अपने गले में लगाए, आंखे बंद करती है मीरा.


क्रिश.


उफ़, क्या मुसीबत है.


ये २ बियर के बाद सिर्फ इसका ही नाम क्यों याद रह जाता है. उसे तो मेरी कभी पड़ी ही नहीं। न जाने कहाँ बैठा अपने दर्द भरे नग्मे किस किस में बाँट रहा है, वो ही जाने.

आह.

कैसे बता दू उसको एकबार की कितनी ज़ोर की लगी है मुझे उसकी लत.

कैसे?

लड़खड़ाती सी, मीरा कोने में रखे काउच पर निढाल सी बैठ जाती है.

क्रिश.

फिर से?

कैसा बैर है मेरे दिल और दिमाग को मुझी से.

बियर को टेबल पर रख, दोनों हाथ में सर पकड़े मीरा आंखे बंद कर लेती है थोड़े देर.

कब जाउंगी घर? कौन सा घर? या मकान? कहाँ जाऊं मैं?



बस पता होता तो फिर बात ही क्या थी.

घर तो मेरा वहीं बन जाता है जहाँ तुम आ खड़े होते. पर तुम तो न आओगे न मुझे ही बुलाओगे. और मैं उनमे से नहीं जो तुम्हारी आस लगाए दीवारों के बीच अपना दम घोंट लूँ।


एक गहरी सांस लेकर आंखे खोलती है , और इस मदहोश भीड़ में ढूंढ़ती है फिर से वही एक चेहरा जो वहां नहीं है.


मोबाईल में जाकर फेसबुक खोलती है, थोड़े देर देखती रहती है क्रिश की प्रोफाइल में लगे उसके तीन साल पहले की तस्वीर. हंसती सी आँखे, बोलते से होठ. कैसे होंगे ये होठ? बियर की बोतल जैसे ठंढे या मेरी उंगलियों जैसे गर्म? कैसे पता चलेगा कभी? सोचकर ही जैसे एक करंट सा दौड़ जाता है और रंग भर जाता है मीरा के गालों पर.


क्या यार.... इस कमीने के लिए? आज भी?


ठहाके लगाती है , और साथ में छलक जाती है उसकी आंखे भी लेकिन क्या फर्क पड़ता है. काजल तो पहले से ही फैला हुआ है.


हवा हवाई?


ओह, ये सही वाला गाना बजाया है डीजे ने.


और मीरा वापस इशारा करती है अपनी सहेलियों को जो अभी तक डांस फ्लोर पर डटी हुयी है. और इसबार अपनी हील्स वही टेबल के पास उतार कर , वो भी चल देती है.


...जानूं जो तुमने बात छिपाई, कहते हैं मुझको. हवा हवाई



मॉडर्न मीरा

पार्ट 2



सफ़ेद चादरों की सिलवटों में बस इंतज़ार ही है, की कुछ अंगड़ाई कभी टूटती. कुछ नयी सी सिलवटें , कुछ नयी सी ओस में चमकती इन धागों की भी लड़ियां।


औंधी पड़ी मीरा , बस यही सोचा करती है आजकल. सर्दियों की शामें और भी तनहा, और भी वीरान हो रखी हैं. न तितलियाँ हैं , न फूल और नहीं लम्बे वाले दिन. निगोड़ी बेइन्तेहाँ लम्बी रातें ज़रूर हो गयी हैं, इसमें इंसान सो न पाए तो ? शामत ही है समझो.


और एक टेक्स्ट मेमैसेज पलकों पे वैसे ही उभरता है, जैसे परसों फ़ोन पर आया था, एक लम्बी मीठी और हलकी सी टीस के साथ.


“आ जाओ “


आगे पीछे कई सारी और भी बातें है , लेकिन इन दो लब्ज़ो में जैसे कायनात की सारी बेचैनी और सारे अरमान भरे पड़े हैं. मीरा के, बस अकेले उसके। और कही कोई नहीं.


वो जानती है, कहने भर की बात है बस.


सब कहते है , ये लड़की ख़यालो में जीती है बस. पागल है, पत्थर की मूरत से दिल लगा बैठी है. दिल लगाना तक तो ठीक था , अब तो ज़िन्दगी दांव पर लगा बैठी है. न इसे पहर की खबर होती है न कुछ होशो हवास।


उठती है मीरा , क्युकी चादर पर अभी भी उतनी ही सिलवटें है। ..वही की वही, जस की तस. जैसे परसो थी। न वो कही जाती है, न कोई आता है.


लैपटॉप ऑन करके लिखने बैठती है फिर , मीरा के दोहे ... मतलब ब्लॉग. और बड़ी बारीकी से बयां करती है कृष का आना , उसके दिल का जोरों से धड़कना और कृष का कान लगा के सुनना उन्ही धड़कनो को. और फिर, हरेक धागे का तितर बितर होकर झूम झूम कर नाचना , सर्दियों की रात का जग उठना , तितलियों से कमरा भर जाना और उड़ा ले जाना हर दर्द परेशानी और डर को. दूर कही दूर. घंटो कृष सुनाया करता है कहानिया बैठकर उसी सफ़ेद चादरों पर, और मीरा सुनती है कभी उसकी गोद में लेटी ... कभी उसके आँखों में डूबी. साँसे कुछ चल सी रही है और बह रहा है धमनियों में लहू कुछ गुलाबी गुलाबी होकर.


पोस्ट ऐसे ही कम्पलीट होता है और पब्लिश.


अब ये बात कौन नहीं जानता की मीरा और कृष कभी नहीं मिलते।


कहानी वही है, बस दौर बदल गया है.


मॉडर्न मीरा

पार्ट 3


मुझे शादी वादी नहीं करनी।


मीरा कहती है. उसकी उंगलियां ब्रा के हुक्स वापस फंसाने में लगे है और व्योम आधा लेटा इस कस्मकश को सांस रोके देख रहा है. ये मीरा की पीठ सुनहरी सी कैसे है? सोचते सोचते उसकी उंगलियां खामखा ही मीरा की पीठ पर सांपो की लकीरे उकेरने लगते हैं. मीरा की बांहो पर उग आये गूसबम्प्स व्योम से छिपे नहीं हैं. और मुस्कराता हुआ वो निढाल वापस सफ़ेद चादर पर लेट जाता है, गहरी सांस लेकर.जाने कबसे रोक रखी थी.


मुझे शादी नहीं करनी। सुना तुमने?


मीरा ने एक और सफ़ेद चादर में लपेट रखा है खुद को और अब व्योम के सीने पर झुकी सी कुछ उलाहने के लहज़े में बोलती है.

व्योम अभी भी कुछ हंस ही रहा है ,आँखों में कही कोने में बैठी बेबसी भी झांकती सी तो नहीं.


“चलो अच्छा है, कह दिया। वैसे मैं कौन सा अंगूठी लिए घूम रहा हूँ.”


वो पलट जाती है , मुंह को तकिये में गाड़े। इन आँखों की नमी उन्ही में कही खो जाये तो अच्छा.


कुछ पल यु ही अंत हीन से इस कमरे में टँगे से रह जाते हैं.


मीरा के फ़ोन पर एक टेक्स्ट का अलर्ट आता है और एक झटके में

वो उठती है.


“जीन्स कहाँ है मेरी.”


व्योम अभी भी वही पड़ा है, लेकिन अब उठ बैठा है.


मीरा अपने ग्रे जीन्स को एडजस्ट कर रही है.


“शावर ही ले लो.”


“नहीं, बाल भींग जायेंगे.”


“ड्रायर तो है। . वो रहा”


मीरा नजरे भी नहीं मिला पाती न कुछ कहती है.


आइने में अपना बहका काजल ठीक करने के बहाने घूम जाती है. देखती है व्योम को बाथरूम जाते.


अब वो जूते पहन वापस कंप्यूटर डेस्क के बगल की कुर्सी पर बैठ गयी है. वापस आ जाये तो चलूँ मैं भी. फ्लाइट का टाइम क्या है, देख लूँ। सब टाइम पे है।


शावर से पानी की आवाज आती है और न जाने किस अहं शर्म लिहाज़ को साथ बहा ले जाती है मीरा के ह्रदय से.


“ पानी गर्म है क्या?“

“हाँ “


नालायक, कौन जाता है शावर दरवाजा खुला रखकर.


“रुको, आती हूँ....”


“। .. आ जाओ “


कुछ झुंझलाकर बाथरूम की लाइट ऑफ करती मीरा व्योम के पीछे आ खड़ी होती है.


“टू मच लाइट फॉर मी ”


गुनगुना सा पानी और अनगिनत अनकही बाते झरे जा रहे है अगले कई लम्हो में जिनकी उम्र कौन तय कर सकता है भला. पिघलता जा रहा है हर वो मोम इस धीमी आंच में जो सदियों अटका पड़ा था किसी मधुमक्खी के छत्ते में.


मीरा के कहीं जैकेट में पड़े फ़ोन अपने आप ही बज रहा है


“.... मैनु इश्क़ तेरा लै डूबा ”


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