दोस्ती महंगी पड़ेगी
दोस्ती महंगी पड़ेगी


कपड़ों को तह लगाती हुयी, मीरा के ज़हन में ये वाकया जैसे घड़ी के कांटो सा टिक टिक करता घूम रहा है।
हाँ, तुमने सामने से कहा था की बड़े स्वार्थी टाइप हो और ये फिल्मी वाला रोमांस तुम्हारे बस का नहीं। मैंने ही अनदेखा करके जैसे, थाली में रख परोसा अपना प्रेम और आह्लाद, बहुत सारे हरसिंगार के फूलों के साथ।
तुमने तब भी शायद अनिच्छा से या कौतुहल से उठा लिये थे एक दो फूल। तब जो हवा चली थी और खुशबु से महका था आँगन। याद करती हूँ तो अभी भी मुस्करा उठती हूँ और जी करने लगता है दराज़ में धूल पड़ रहे घुंघुरओ को अभी के अभी बाँध लूँ इन पैरो में, नाच पडूँ और कोई रोके नहीं।
सब ख़याल आंधी की तरह आये भी और गए भी।
हरसिंगार की भी एक उम्र होती है, मैं ही नहीं समझी थी। तुमने एक दो बार कहा भी था की ये भी क्या वक़्त है सोलह सत्रह की उम्र वाला प्यार होने को?
अब मीरा दीवानी क्या जाने, प्रेम तो प्रेम है, ह्रदय पटल पर किसी के अंक जाने का फेनोमेनन। कभी भी कहीं भी हो सकता है। ऊपर से थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी पर भी अच्छा खासा भरोसा रखती है और उस हिसाब से समय की गति सबके लिए एक जैसे थोड़े न होती है? फिर उम्र से एहसासों को नापना निपट बेवकूफी नहीं तो और क्या है।
हंसी भी आती है और रोना भी सोच कर, नाच पड़ने को जी करता है और साथ ही किसी गहरी खायी में कूद जाने का भी, आग लगा दूँ अपने प्रेम को भ्रम को तो कभी मन करता है सहेज कर रख लूँ।
याद का हर वो मोती उस माला के, जिसे तुम गले की फांस सा खींच कर बिखेर गए थे मेरे इसी कमरे में।
अब तक सारे कपड़े तह हो चुके है, इन्हे बस रखना बाकी है जगह पर। उठती है मीरा अपने इस पद्मासन वाले पोज़ से एक एक कपड़े की ढेरी ले के अलमारी में रखती है।
बड़बड़ा रही है अपने आप ही, हाँ महंगा तो पड़ा लेकिन सस्ते सौदे वैसे भी मुझे कब रास आये हैं।