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Arunima Thakur

Abstract Classics Inspirational

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Arunima Thakur

Abstract Classics Inspirational

कल युग

कल युग

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कल माने यंत्र और कलयुग का मतलब यंत्रयुग यानि की मशीनों का समय” मैं अपने आठ साल के बेटे को युगों के बारे में समझते हुये बोली। पर मेरा बेटा मुझसे ज्यादा समझदार निकला, उसने पूछा मशीनों का युग कैसे ? हम मानव भी तो रहते हैं, तो फिर कलयुग कैसे हुआ ? इतने मे फोन की घंटी बजी, उठाया तो भाई का फोन था। सारी औपचारिक बातों, खैर खबर के बाद एकदम सामान्य आवाज में वह बोला, "कल छोटी अम्मा को भी पहुँचा कर आया। “कहाँ पहुँचा कर आए ? क्या वह तुम्हारे यहाँ आईं थी ? वह तो काफी बीमार हैं न ?” मैंने कई सारे सवाल एक साथ पूछ लिए। 

भाई बोला, “अरे नही, बीमार थी न, मुक्त हो गयी, निकल ली”। 

अरे भगवान ! इसका मतलब ......... 

छोटी अम्मा, हमारी ताई जी, बचपन के संयुक्त परिवार की यादों में एक मुस्कुराता हुआ प्यारा सा चेहरा। बचपन की दोपहर हमारी और हमारी गुड़ियों की, उनके ही कमरे मे बीतती थी। उनके अपने बच्चे थे, थोड़े बड़े, वास्तव में हमारी उम्र से काफी बड़े। दीदी लोगों की गुड़ियों की आठ -दस संदूकचिया उन्होने सँभाल कर रखी थी। हम उन्ही हाथ की बनी बड़ी बड़ी गुड़ियों, उनके सन्दूक भर भर कपड़ो, उनकी गृहस्ती का सारा सामान देखने के लालच में जाते थे। हमें वे गुड़िया कभी खेलने या छूने को तो नहीं मिली, पर वह दिखती बड़े जतन से थी, जैसे कोई अपना खजाना दिखाता हों। यह गुड़िया फलां मेले से लाये थे, यह गुड़ियाँ फलां ने ला कर दी थी। काले धागे की कढ़ाई से बनी बड़ी बड़ी बोलती हुई काली काली आखों वाली, लाल धागे से बने होठ, लंबे लंबे काले धागों से बने बाल, और कपड़े की ही अपूर्व करीगिरी से बनी प्यारी सी नाक। नाक और कान मे सोने की छोटी छोटी बालियाँ, चाँदी की करधन, कंगन, पायल पहनी, जरी गोटे के लहगा चुन्नी से सजी गुड़ियाँ, वास्तव में हमारी सीधी सादी,बगैर नाक और बाल वाली गुड़िया से ज्यादा सुंदर थी। फिर साथ ही साथ हर गुड़िया गुड्डा के आने की कहानी, उनकी शादी की कहानियाँ। किस गुड़िया की शादी किस गुड्डे के हुई, कैसे हुई, कैसे आलीशान बारात आई थी, कैसे उस जमाने मे सारे गाँव को न्योता दिया गया था। कहानी कहते समय उनका चेहरा एक अलग ही आभा से चमकता, जैसे लगता मानो गुड़िया गुड्डे की नहीं, वह अपने बच्चो की शादी की कहानिया सुना रही हो। 

याद नहीं पड़ता गुड़ियाँ देखने का लालच ज्यादा था या कहानियाँ सुनने का, जो भी हो उस जमाने मे जब टी.वी. नहीं था तो दोपहर बिताने के लिए इससे अच्छा इंतजाम दूसरा नहीं था। और उनको भी पता नहीं हमारा साथ अच्छा लगता था, या इसी बहाने वह अपना और अपने बच्चो का बचपन हमारे साथ दुबारा जी लेती थी। समय के साथ साथ बचपन, गुड़ियाँ, पीहर सब छूटता गया। पर जब भी मैं अपनी बिटिया के साथ गुड़िया खेलने बैठती, मैं उसको जरूर बताती कि वह भी क्या जमाना था, जब गुड़ियाँ गुड्डे जेवर पहनते थे, उनकी सच्ची की शादी होती थी, उनका अलग से पूरा कमरा होता था। मेरी बेटी बड़े गर्व से मुझे अपनी बार्बी डाल दिखा कर बोलती, मेरी ड़ाल का तो पूरा होम सेट है। मैं उसकी नादानी पर मुस्कुराती हुई अपने बचपन को याद करती। बचपन की यादों के साथ छोटी अम्मा का प्यारा सा चेहरा हमेशा मेरे जेहन मे रहता। 

वैसे तो फोन पर जैसे सब का हाल चाल पूछती थी वैसे ही उनका भी पूछ लेती थी। पर आज यह सुन कर समझ में ही नहीं आया, क्या प्रतिक्रिया करूँ ? कैसी प्रतिक्रिया करूँ ? तभी भाई बोला,“ चलो सब ठीक है, फोन रखता हूँ, एक जरूरी फोन आ रहा हैं, बाद मे फोन करता हूँ”।

 फोन रख कर बैठी ही थी कि पति ने आवाज लगाई, “मेरा टिफिन दे दो, मैं निकल रहा हूँ, अरे हाँ याद आया शाम को पार्टी मे जाना है, तैयार रहना”। टिफिन पकड़ते हुये मैंने कहाँ, “मेरी छोटी अम्मा आफ हो गयी हैं”। ये बैग उठाते हुये बोले, “अच्छा, कब ? कैसे ? ...वो तो काफी बीमार थी न, ..... चलो ठीक ही हुआ। जाना चाहती हो तो टिकट निकलवा देता हूँ। जैसा लगे मुझे फोन कर देना। और हा शाम को आठ बजे तैयार रहना पार्टी मे जाना है”। इतना कह कर ये निकल गए। मैं अपने भाई व पति के अति सामान्य व्यवहार पर विचार कर ही रही थी कि तभी मेरी जिठानी कि लड़की अंदर आते हुये बोली, “काकी चलो न,नयी फिल्म लगी है, देख कर आते है”। मैंने कहाँ, “मेरी छोटी अम्मा आफ हो गयी हैं”। 

वो बोली, “आपकी आँटी न, सो व्हाट, बूढ़ी थी ...न .। एबव सिक्सटी, बहुत जी ली, अच्छा हुआ, चलो तैयार हो जाओ फ़ास्ट ”। मैं उसको देखती ही रह गयी, एक समय था जब लोग गुड़िया गुड्डों से भी स्नेह करते थे उनके साथ भावनात्मक संबंध रखते थे, और आज के लोग हर रोज अपना मोबाइल फोन अपना gadget बदलने वाले भावनाओ के साथ साथ संवेदनाओ से भी परे है। 

मुझे अपने बेटे के सवाल का जवाब मिल गया था, मनुष्य रहते तो हैं, पर भावनाओं से शून्य, संवेदनाओं से परे, यांत्रिक मानवों जैसे। मैं भी उठी और अपनी दैनिक दिनचर्या निपटने लगी यंत्रवत। 


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