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Ragini Pathak

Abstract Children Stories Tragedy

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Ragini Pathak

Abstract Children Stories Tragedy

सीख

सीख

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जिंदगी में कभी कभी कुछ ऐसी अनहोनी होते होते रह जाती है जिसकी कल्पना भी उम्र भर आपकी रूह तक हिला देती है। उन्हीं एक अनहोनियों में से एक होता है स्कूल से आप के बच्चे का घर लौट के ना आना। इसकी कल्पना भी कोई माता पिता नहीं कर सकते।

ये मेरे बचपन की मेरे साथ घटित सबसे भयानक घटनाओं में से एक है। जब मैं सिर्फ पांच साल की थी। ये वाक्या रेनुकूट सोनभद्र जिले का है। जहाँ आज भी ऑटो रिक्शा नही चलता। स्कूल का पहला दिन था, सब बहुत खुश थे। मैं भी स्कूल जाने के लिए बहुत उत्साहित थी। मेरे मम्मी पापा ने मुझे सुरक्षा संबंधित सारी जानकारियां सिखा रखी थीं और मैंने याद भी रखी। मेरे पापा की एक आदत थी वो जब भी हमें कहीं भी ले जाते। ये बोलते जाते कि जैसे जैसे हम जिस रास्ते से जा रहे हैं, रास्ते में कौन कौन सी चीजें आप ने देखी और किस तरफ़ किस रंग की सब याद रखना। मैं घर चल कर पूछुंगा।

तो हम पांचों भाई बहनों की आदत थी कि रास्ते की सारी चीजें याद करते औऱ देखते गिनते हुए जाते थे। स्कूल के पहले दिन मेरे पापा मुझे अपने साथ लेकर गए बस में बिठा के बाय किया। मैं स्कूल में जा के बहुत ख़ुश थी। यहाँ तक तो सब कुछ ठीक था| गड़बड़ तब हुई ....जब शाम चार बजे छुट्टी हुई। मैं अपनी बस के बैठने की बजाय दूसरी बस में बैठ गयी।

बस कंडक्टर हर स्टॉप पे पूछता मैं मना कर देती, नहीं ये मेरा स्टॉप नहीं है। अंत में उसने गुस्से में मुझे सबसे अंत में बस स्टॉप पे आखिर के बच्चों के साथ उतार दिया। वहाँ उतरने के बाद सभी बच्चे अपने अपने माता पिता के साथ घर चले गए और मैं वहीं इंतजार करने लगी अपने पापा का।

मुझे एक तरफ जंगल और एक तरफ सड़क दिखती। जो भी उधर से गुजरता मुझे देखता हुआ जाता। लेकिन कोई भी कुछ पूछता नहीं। अंधेरा होने लगा, तो मैं बैग उठा के चलने लगी। तभी कुछ लोगों ने मुझे पूछा "बेटा रास्ता भूल गयी हो क्या?"

मुझे अपनी मम्मी की बात याद आ गयी कि किसी अजनबी को अपना सीक्रेट मत बताना। मैंने तुरंत कहा "नहीं तो ये है मेरा घर"। और वो लोग वहाँ से चले गए। तभी उस घर के बुजुर्ग ये देख के हँसते हुए बोले बेटा चलो "आप मुझे रास्ता बताना मैं आप को छोड़ दूंगा।" अपने बचपने में मैंने उन्हें भी मूर्ख बनाने की कोशिश की नहीं नहीं मैं चली जाऊँगी ।

लेकिन दादा जी नहीं माने और कहने लगे "अच्छा ठीक है। मैं भी बस पास के घर तक ही जाऊंगा।" अब थोड़ी दूर आप का साथ मिल जाये तो अच्छा रहेगा। मैंने कोई उत्तर नहीं दिया। तभी उन्होंने मुझे बातों बातो में समझाने की कोशिश की कि पुलिस हमारी मदद करती हैं। तो जब भी हम मुसीबत में हों तो हमें पुलिस की मदद जरूर लेनी चाहिए। ये देख रही हो पुलिस स्टेशन।

पुलिस स्टेशन देखते ही मैं डर गयी और मैंने उनको कहा "दादाजी! मैं चोर नहीं हूं, मैंने तो कुछ भी नहीं चुराया। मैं नहीं जाऊंगी पुलिस स्टेशन आप के साथ आप अपने घर जाइए। मैं तो उल्टा अपने घर का रास्ता ढूंढ रही हूं।"

तब दादाजी हँसते हुए बोले कि "पुलिस सिर्फ चोर ही नहीं पकड़ती, बल्कि हमारे खोने पर हमें घर का भी रास्ता बताती है।"

लेकिन मैं जिद पर अड़ गयी नहीं जाना मुझे पुलिस स्टेशन। मुझे रास्ता पता है। सब्जी की दुकानें और बड़ा सा लाल रंग का फील्ड मिलते ही मेरा घर आ जायेगा और मैं चली जाऊँगी। शायद उनको मेरी बात समझ में आ गयी और वो मुझे उसी रास्ते पर ले के चल दिये। फिर उन्होंने कहा "अपना बैग मुझे दे दो बहुत देर से आप ली हो"|

मैंने मना कर दिया और अपनी आदतों के हिसाब से दोनों तरफ पूरा रास्ता देखते हुए जा रही थी कि तभी मेरी नजर मेरे चाचा जी पर पड़ी। जो मुझे साइकिल से ढूंढ रहे थे हर जगह।

मैंने दादाजी से हाथ छोड़ने के लिए कहा, तो उन्होंने मना किया। और मैंने सोचा कि वो मुझे जाने देना नहीं चाहते जबकि वो मेरी सुरक्षा की वजह से मेरा हाथ नहीं छोड़ रहे थे। मेरे चाचा सड़क के बाई तरफ और मैं दाई तरफ थी। मैंने जोर से आवाज़ लगाई चाचा बचाओ और दादा जी को दांत से उनके हाथ पर काट के हाँथ छुड़ा के चाचा के पास भागी।

चाचा के चेहरे पर जैसे रौनक आ गयी और मुझे गोद में उठाते हुए कहा "दादी अम्मा कहाँ चली गयी थी?"

पीछे से दादाजी भी आये औऱ बोले बहुत ही समझदार बच्ची है। ले जाइए और ध्यान रखिएगा और उनको पूरी बात बतायी। चाचा हँसते हुए बोले "ये तो सच कि दादी अम्मा निकली।" और उनको धन्यवाद कहा फिर हम घर आ गए।

घर पर बहुत भीड़ इकट्ठा थी, सब रो रहे थे। मेरी माँ की हालत तो पूछिये ही मत "रोये जा रही थी और बोले जा रही थी कहीं से भी मेरी बेटी ढूंढ के लाओ वरना मैं भी मर जाऊंगी।"

तब तक मैंने उनको पीछे से माँ बोलते हुए गले लगा लिया और कहा "अरे मम्मी मरना नहीं.... वरना मुझे खाना कौन देगा?"

मम्मी के तो जैसे जान में जान आ गयी । गले लगा मुझे खूब प्यार करने लगी। सब भगवान का शुक्रिया अदा कर रहे थे और मैं मम्मी को स्कूल और रास्ते में हुई बाते बता रही थी।

मम्मी ने खाना खिलाया और कमरे में जा के दादा दादी के पास बैठ गयी।

तभी पापा बाहर से आये। मेरे पापा उस दिन पहली बार जोर से रोते हुए मेरी मम्मी को बोले "सावित्री हमारी बेटी का कुछ पता नहीं चल रहा। पता नहीं कहाँ होगी? पुलिस भी कोशिश कर के थक गयी और कहा कि जैसे ही पता चलेगा वो लोग घर आएंगे, क्योंकि तब फोन नहीं होते थे।

पापा की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी और मैं भागते हुए उनके पास आई "लेकिन पापा मैं तो यहाँ हूं। और आज सब घर में रो क्यों रहे हैं? पापा आज तो मैंने सारे रास्ते याद कर लिए है। और मैं आपको ले भी जा सकती हूँ।"

पापा मुझे देखते ही खुश हो गए और मम्मी की तरफ इशारे से पूछा? बाद में मम्मी ने सारी बात बतायी। तब मेरे लिए ये बड़ी बात नहीं थी, लेकिन मम्मी पापा के लिए ये हादसा आज भी आंखों में आँसू ला देता है। मम्मी हमेशा भगवान का शुक्रिया अदा करने लगती हैं। दिन मेरे मम्मी पापा की दी हुई सीख मेरे काम आयी कि परिस्थितियां कुछ भी हो धैर्य नहीं खोना चाहिए और समाधान ढूंढना चाहिए। जिस नियम का पालन मैं आज भी करती हूं।


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