मेरी पसंद
मेरी पसंद
लाल चूड़ी, लाल सिंदूर ,सफेद लाल बॉर्डर वाली साड़ी,बड़ी बिंदी शाम के गरवा के लिऐ नीतू ने सारी तैयारी तो कर रखी थी बस इंतजार था तो अपने पति कुनाल के आने का।
ये समय था कि गुजर ही नहीं रहा था क्योंकि वो पिछले छः महीने से इंतजार की अग्नि में तिल तिल जो जल रही थी।नवरात्रि के कुछ दिन पहले बात की थी कुनाल से क्योंकि उसके पड़ोस में रह रहीं आंटी ने कहा था......
"नीतू यहां की दुर्गा पूजा बहुत विशाल होता है अपने पति को कहो कि वो भी आये पति पत्नी जब साथ में सिंदूर खेला में आता है तो मां दुर्गा का उसे बहुत आशीर्वाद मिलता है ।,,
इसीलिये उसने नवरात्रों के कुछ दिन पहले से ही कुनाल को बोला था छुट्टी लेने और और वहां कोलकत्ता आने को।तब तो कुनाल ने हां कर दिया पर हर बार कि तरह इसबार भी वो नहीं आया था न कोई फोन न कोई मैसेज करने की जहमत उठाई थी कुनाल ने ।नीतू ने अगर फोन किया भी तो बिजी हूं, मां के साथ हूं ,ऑफिस में हूं जैसे बहाने बनाकर फोन रख दिया था।
इन नौ दिनों में नीतू ने हर पल हर समय इंतजार किया था कुनाल का यहां तक कि जब वो ऑफिस जाती तो चाबी उन्ही आन्टी को दे जाती कि कहीं कुनाल पीछे से आ जाये तो उसे बाहर खड़े होकर इंतजार न करना पड़े।नवरात्रों के पहले दिन से ही जब जब वो तैयार होती दुर्गा पांडाल में जाने को तब- तब खुदको आईने में देखकर सिर्फ रोना ही आया था उसे लग रहा था जैसे उसके और कुनाल के बीच में सब कुछ खत्म हो गया है क्या सच में उनका प्यार इतना कमजोर था कि नीतू के अपनी पसंद का एक फैसला लेने से ही वो खत्म हो गया?
वैसे फैसला भी कौन सा उसने ऐसा लिया था कि कुनाल इतना गुस्सा हो गया उसे तो शादी से पहले से ही पता था कि मेरे लिऐ मेरी नौकरी सिर्फ नौकरी नहीं बल्कि मेरा सपना मेरो जिन्दगी है। इसी बात को करते हुऐ तो हमने कितना समय बिताया था अपने ऑफिस की कैंटीन की उस कौने वाली टेबल पर। कुनाल को मेरी उन्ही बातों से तो प्यार हुआ था तभी तो वो मुझे कैसे एकटक बोलते हुऐ देखता रहता था।तब तो उसे मेरी पसंद का इतना ख्याल था कि उसने पूरी हाफ दर्जन शर्ट खरीद लीं थीं मेरे पसंदीदा रंग की उसने और रोज वही शर्ट पहनकर आता था।
फिर शादी के बाद ऐसा क्या हो गया कि मेरी पसन्द की नौकरी में मेरा प्रमोशन होने और उसके शहर से दूर यहां कोलकत्ता में ट्रांसफर होते ही उसे मेरा फैसला गलत लगने लगा।कंपनी के बॉस ने हमारी नई शादी को देखते हुऐ कुनाल को ऑफर भी दिया था कि अगर वो चाहे तो अपनी वर्तमान पोस्ट पर ही रहते हुऐ वो कोलकत्ता की ब्रांच ज्वॉइन कर ले पर वो वो ऑफर ठुकरा कर मेरे पीछे पड़ गया था कि "मैं ये प्रमोशन कैंसिल करके उसी पोस्ट पर वहीं रहूं उसके घर परिवार के साथ।"
शादी से पहले जिस प्रमोशन को पाने के लिऐ मैने दिनरात एक कर दिया था उसको पाकर में उसे कैसे खोने देती? मैं क्यों अपनी मेहनत को यूं ही बेस्ट होने देती।ये फैसला लेते हुऐ तनिक भी आभास न था कि कुनाल उससे इतना दूर हो जायेगा कि इन छ: महीनों में वो एकबार भी मिलने नहीं आयेगा।
ऐसा भी क्या बोल दिया था उसने कि वो इसकदर गुस्सा था उसने तो सिर्फ कुनाल से साथ चलने की गुजारिश ही की थी। इसबात पर भी कितना भड़क गया था.....
"हां बहुत अच्छे से जानता हूँ कि तुम यहां मेरे परिवार के साथ नहीं रहना चाहतीं इसीलिए तो नौकरी के बहाने से दूर जा रही हो पर मैं नहीं जा सकता अपने परिवार से दूर तुम करो जो तुम्हे करना है।,,
बहुत कोशिश की पर कुनाल ये समझ ही नहीं पाया कि परिवार से दूर तो वो भी जा रही थी अगर उसका परिवार उस शहर में था तो परिवार तो उसका भी वहीं छूट गया था।पर अपने परिवार और ससुराल के परिवार से वो सिर्फ शरीर से दूर हुई थी मन से नहीं।तभी तो उसे आज भी ये पता था कि तुम आजकल घर रोज देर से आते हो सुबह आंखे सूजी होती है तुम्हारी।जब तुम मुझे इतना याद करते हो तो आ क्यों नहीं जाते मेरे पास ?क्या आपका ईगो हमारे प्यार से इतना बड़ा हो गया कि तुम मुझे एक फोन भी नहीं कर सकते?वो भी सिर्फ इसलिये कि मैने अपना सपना पूरा कर लिया ये कैसा प्यार हुआ तुम्हारा कि तुम मेरी खुशी से खुश नहीं हो?
अपने लहंगे को दूर बैठ कर निहारती ख्यालों में खोई नीतू की तंद्रा गेट पर दी जा रही थप थपाहट से टूटी।नीतू बिना थपकी देने वाले की आवाज सुने घड़ी में समय देखकर अनमने मन से बोली......
"आंटी आप जाओ सिंदूर खेला में हम नहीं जाएंगे हमारी तबियत ठीक नहीं है आज।,,"
पर बाहर जो था उसने बिना उसकी बात सुने दरवाजे पर थपथपाहट और बड़ा दी थी इसलिये नीतू ने अनमने मन से जाकर दरवाजा खोला सामने आंटी के साथ कंधे पर छोटा और हाथ में बड़ा बैग पकड़े कुनाल खड़ा था उसकी पसंदीदा कलर की शर्ट पहने।एक मिनिट को तो नीतू को अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हुआ पर जब हाथ बढ़ाकर कुनाल को छुआ तो बिना ये सोचे कि उम्र में उससे कई साल बड़ी आंटी खड़ी ही वो कुनाल से लिपट गई बिल्कुल यूं जैसे नदी अपने वेग के साथ समन्दर में समा जाती है और कुछ ही पलों में वो अपने आंसुओं से कुनाल का कांधा भिगो चुकी थीउधर आंटी भी उतनी ही खुशी से ऊंची आवाज में बोले जा रहीं थीं......
"इन्हें मैने बाल्कनी से अपने कंपाउंड में देखा तो देखते ही समझ गया ये तुम्हारा कुनाल ही है इसलिये जल्दी से मैं इन्हे यहां ले आई अब तुम लोग अंदर जाओ और जल्दी से सिंदूर खेला के लिऐ तैयार हो जाओ आज तो मां अम्बे का रंग और कृपा तुम दोनों पर ही बरसेगा।"
आंटी ने जाते- जाते दरवाजा बंद कर दिया क्योंकि नीतू कुनाल को पकड़े- पकड़े कब अंदर आ गई थी उसे खुद भी कोई सुध नहीं थी।नीतू के सवाल और शिकायतें तो कब की आंसुओं संग बह गईं थी रह गया था तो आंखों से बहता हुआ प्यार पर कुनाल को कुछ कहना था तो वो नीतू को यूं ही कांधे से लगाये - लगाये बोला.....
"नीतू माफ कर दो मुझे मेरा प्यार कमजोर पड़ गया था पर तुमसे दूर होकर जाना मैं तुम्हारे बिना कुछ भी नहीं।तुम्हारे बिना न तो ऑफिस अपना न ही घर सब बेगाना सा हो गया है।नहीं जी सकता मैं तुम्हारे बिना।,,
तभी कौने में रखे बड़े- बड़े बैंगों के साथ नीतू का हैंड बैग देखकर कुनाल अपनी बात बीच में छोड़कर पूंछ बैठा.....
"ये क्या है? तुम फिर से कहीं जा रही हो?"
"नहीं आ रही थी तुम्हारे पास लौटकर क्योंकि तुम्हारे बिना मेरा कोई सपना मेरा नहीं तुम्हारे बिना जब मैं ही अधूरी हूं तो मेरे सपने कैसे पूरे हो सकते हैं इसलिये अपना प्रमोशन यहां की नौकरी सब छोड़कर आ रहीं थी तुम्हारे पास।"
नीतू कुनाल का माथा चूमते हुऐ बोली तो कुनाल बेड पर पड़ी साड़ी की तरफ इशारा करते हुऐ बोला.....
"तो ये क्या है?"
"ये मेरे प्यार की परीक्षा थी।तुमने भले ही मुझे यहां अकेले आने दिया,एक बार भी मिलने नहीं आये,मुझे एक फोन भी नहीं किया पर फिर भी दिल के किसी कोने में मुझे विश्वास था कि तुम जरूर आओगे मेरे पास क्योंकि हमारा प्यार इतना कमजोर नहीं हो सकता कि इतनी छोटी सी बात पर खत्म हो जाये।"
नीतू अपने गालों से सूखे आंसू पोंछते हुऐ बोली तो कुनाल भी मुस्कराकर बोला.....
"सही कह रही हो तभी तो अपनी गलती का एहसास होते ही भागा चला आया अपनी जिन्दगी के पास।अब मैं फिर से तुम्हारे ऑफिस में तुम्हारे साथ ही काम करूंगा। यहां भी हम लंच टाइम केंटीन की किसी कोने बाली टेबल पर बिताएंगे।पर तुम कभी किसी भी वजह से अपनी पसंद मत बदलना क्योंकि मुझे तो मेरी यही जिद्दी अपनी पसंद के लिऐ लड़ने वाली मेरी नीतू ही पसंद है।ये रोंदू रोंदू लड़की नहीं।,,
कुनाल की बात सुनकर नीतू उसके सीने में सिमट गई।कुछ देर बाद दुर्गा पंडाल में नीतू का एक अलग ही रूप था हमेशा नाचने के लिऐ मना करने वाली नीतू आज बेंगोली स्टाइल में मगन होकर नाक से लेकर बालों के अंत तक सिंदूर भरे धुनुची कर रही थी जो इतने दिन कुनाल के इंतजार में कुनाल को दिखाने के लिऐ आंटी से सीखा थाऔर कुनाल तो बसबस देखे ही जा रहा था जिससे नीतू का चेहरा शर्म और खुशी से लाल होकर ऐसे चमक रहा था कि उसकी चमक के आगे पंडाल में लगीं हजारों लड़ियां भी टिमटिमाती प्रतीत हो रहीं थी।