पंछी पतझड़ के
पंछी पतझड़ के
मुझे आज भी याद है वो हँसी वादियाँ
प्यारा समा,
बैठे थे झील के किनारे।
कितने बुने सपने साथ-साथ चलने के
जन्म -जन्म साथ निभाने के
क्या तुम्हे याद है
वो झील किनारे डाली पर बैठे पंछी ?
मेरा देर से आना
तेरा रुठना, रोना, रुलाना
जाने कहाँ गये वो दिन ?
मुझे आज भी याद है
तेरी झील सी नीली बड़ी-बड़ी आँखें
घुंघराले बाल
लहराते हुए आना !
होठों पे मुस्कुराहट
दिल को छुने वाली
मीठी-मीठी सी बातें...
मैंने कहा था,
"कितनी फुरसत से बनाया होगा
तुम्हें बनाने वाले ने.."
तू शरमाकर गले लगी थी !
मैं सोचूँ अपने भविष्य के बारे में,
तो तू खामोश होती थी।
"कल, कल देखा जायेगा,
आज का दिन खराब क्यूँ करना ?",
कहती थी।
मैं रो लूँ तो
तेरी आँखें भर आती थी
मेरी खुशी,
तेरे चेहरे से ही झलकती थी।
जो भी करती थी
दिलोजान से करती थी
मेरे चेहरे के भाव से
सब कुछ पहचान लेती थी !
तू साथ थी मेरे
तो यह दुनिया गोकुलाधाम लगती थी
तू नहीं है तो पतझड़ का मौसम,
खत्म होने का नाम ही नहीं लेता।
ऐसा लगता है
तेरी यादें
मेरी नस-नस में समाई है !
आखिरी साँस तक
मैं तुझे भूल नहीं पाऊँगा
क्या क्या भूलूँ ?
क्या क्या याद रखूँ ?
मैं आज भी अक्सर यहाँ आता हूँ
तो सोचता हूँ,
कहाँ गये होंगे वो पंछी,
जो उस डाल पर बैठा करते थे ?
क्या उस डाल को
आज भी इंतजार होगा ?
सदियों तक रहेगा ?
या तेरी तरह वो भी
सब कुछ भूल गये होंगे ?
उस बेचारी डाली को क्या मालुम
कि जाने वाले
कभी वापस नहीं आया करते !
कौन समझायेगा
उस पगली डाली को ?
कैसे यकीन करेगा
उसका पगला मन ?
उन्हें क्या पता,
पंछी तो
घोंसला बदलते रहते हैं।
हवा का बदलता रुख
पहचान लेते हैं
मौसम बदलते ही
ठिकाना बदलते हैं।
उँचे गगन में
उड़ान भरते हैं
मौसम की तरह
बदल जाते हैं।
यह तो हर साल होता है
पतझड़ के पंछी तो अक्सर
उड़ ही जाते हैं।।