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कुछ पल कि हैं जिन्दगी

कुछ पल कि हैं जिन्दगी

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जिन्दगी एक मेला हैं,

फिर भी दिल क्यू अकेला हैं ?

एक तरफ भूख ही भूख

दुसरी तरफ सुख ही सुख !


कहि ऊंचे गगन मेरे,

उडान भरने के सपने दिल में हैं,

तो कहीं बे मतलब कि जिन्दगी,

जी रहे हैं किडे मकोडे की तरह।


यह अजब सी दास्ताँ हैं जिन्दगी भी

एक तरफ दो वक्त कि रोटी के लिये मोहताज !

दुसरी तरफ डायट के नाम पर भुखा पेट।

सर पर ताज होकर भी, एक न होने के वजह से

खा नही सकता ? दुसरा होने पर भी।


भूख दोनो तरफ अलग-अलग,

भूख लगना धरम हैं,

फिर भी भूख सबको छलती हैं,

कभी मजबूर करती हैं !


कभी रोती - बिलगति हैं,

आखो से टपकती हैं,

जाने क्या - क्या गंदे काम करवाति हैं !


जिन्दगी एक धुंवा हैं,

एक पल का नही भरोसा,

आये हैं जिन्दगी मैं तो

कुछ कर दिखाना हैं !


आज हैं कल हो या ना हो,

किसको हैं पता ?

रुठेगा कौन ?

कब कहा कौन हो जायेगा खता !


जिन्दगी एक आईना हैं,

सही मायने मे वास्तवदर्शी

सजग, निश्चल उल्हसित

बहेकना, महेकना, रुठना, मनाना,

चलता रहे खुशियाँ का सिलसिला !


याद रहे बहुत कुछ बाकी हैं करना,

जिन्दगी तू हैं रे कैसी ? जितनी जिये !

उतनी ही कम लगे, सुख ही गम लगे,

मरते दम तक जिने कि चाहत जगे !


जिन्दगी हैं एक सुख-दुःख का मेला,

जाने क्यों सब तरफ झमेला ही झमेला हैं,

महेमान हैं हम सब धरतीपर, बस चंद दिनो के,

कुछ पल कि हैं जिन्दगी हँस -हँस के जीओ जी भरके !


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