खामोशी
खामोशी
सौ बेफ़िज़ूल बातों से अच्छा है, एक चुप
इस चुप में कई , अहसास छुपे होते हैं
ख़ामोशी कभी खामोश नहीं होती
खामोशी में कई राज़ छुपे होते हैं।
वो शख्सियत क्या है, कोई बता नहीं पाता
हर कोई उसके लिए कुछ अलग राय बनाता
उसके चुप में सारे आदतो-अखलाक छुपे होते हैं
खामोशी में कई राज़ छुपे होते हैं
कम बोलने वाले को
न चुगली न ग़ीबत का फिकर रहता है
ज़्यादा बोलने वाला क्या क्या बोलेगा
झूठ का डर रहता है
खामोशी फितरत नहीं होती
आदमी खुद को इसमें ढालता है
कभी घर तो कभी रिश्ते बचाने को
वो ख़ामोशी पालता है
खुद को साबित करने के जज़्बात छुपे होते हैं
खामोशी में कभी कभी अल्फ़ाज़ छुपे होते हैं
ख़ामोशी कभी ख़ामोश नहीं होती
खामोशी में कई राज़ छुपे होते हैं।