वादों की क़ायनात
वादों की क़ायनात
हम सभी वादों की क़ायनात में जिया करते हैं
हम सभी दोस्तों की परछाई में जिया करते हैं
यह आज मुझे विश्वास हो गया
मेरा कोई खास दोस्त मुझे समझा गया !
मैं तो हर मोड़ पर
अर्जुन बनकर
कृष्ण को खोज रहा था
मैं तो अपने जीवन के चक्रव्यूह को
किसी के नेतृत्व में तोड़ने के बारे में सोच रहा था
उसी वक्त मुझे कृष्ण मिले
कल आ जाओ मेरे द्वार, यह बोले
ना जाने क्यों मेरे दोस्त को
अपने घर का रास्ता बता गए
ना जाने वह,
यह कर क्या बता गए ?
मुझे विश्वास था
मेरा दोस्त मुझे उन तक पहुँचाएगा
अपनी परछाई को मिटाकर
खुद को मेरे दिल मे बैठाएगा
मैं रोज़ उसके पास जाता था
रोज़ उसे परछाई से ज्योत बनाता था
पर वह मुझे कृष्ण के पास न ले जाता था
मेरे दोस्त के पास कृष्ण तक पहुँचने का रास्ता था
उसके पास मुझसे किया गया वादा भी था
मैं रोज़ उस के पास गया
पर वह मुझे ना ले गया
कान्हा और दोस्त
दोनों एक ही बात बता गए
दोस्त तो परछाई है !
और दुनिया वादों की क़ायनात है
जीवन का चक्रव्यूह अकेले सुलझाया जाता है
और खुद को ही खुद का गुरू बनाया जाता है !