कुछ समझ ना आवे
कुछ समझ ना आवे
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जिंदगी में जो चाह थी
उसकी राह न थी
कश्मकश कितनी भी कर ली
चाह राह न बन पाई
जिसमें न थी कोई चाह
उसमे थे हजारों राह।
उफ़...!
ओ यारा मैं क्या करूं, क्या कहूं ,
कुछ समझ में नहीं आ रहा
पहली बार अपने दिल कि बातों को
पन्नों पर उतार न सका
पहली बार अपने दिल कि माचीस से
कविता की ज्योत जला न सका।