हिसाब
हिसाब
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कलम मेरी सूख गई
उसके बिना रुक गई
लिखते लिखते कभी थकती नहीं थी
ख्वाब में आए बिना चलती नहीं थी
प्यार का हिसाब इसी कलम से लिखता था
प्यार का ब्याज इसी कलम से जोड़ता था
नज़्म, गजल के जरिए अपना ब्याज भरती
सातों जन्मों का ख्वाब मेरे साथ गढ़ती
एक दिन, हिसाब किए बिना
समीर मेरे हिसाब का नहीं
बोलकर वह चली गई
उसके बाद
मेरी कलम सूख गई
उसके बिना रुक गई
ख्वाब में अब भी वो आती
पर यह कलम चलती नहीं
सात जन्मों का वादा
सात सालों में टूट गया।