अब नूतनता आई है
अब नूतनता आई है
हटो पुरातनता जड़ता अब नूतनता आई है,
निर्जीव धमनियों में फिर से नया रक्त लाई है।
नयी कोपलें फूट चुकी हैं फसलें पककर हैं तैयार,
नये खेल नये मैदान हैं नये अशोक नये बुद्ध द्वार।
इनको भी कहने दो नये गीत उल्लास भरे,
छू लेने दो उत्तंग हिमालय गढ़ने दो इतिहास नये।
जर्जरता जायेगी फिर नये बाँध बन जायेंगे,
अन्यायों के आगे जो डट कर अड़ जायेंगे,
नये प्रवाह में भागीरथी उतरी है मैदानों में,
जिसका स्पर्शन पा कर नये कमल खिल जायेंगे।
नयी तरंगें नयी क्रांति नये वेग से आई हैं,
हटो पुरातनता जड़ता अब नूतनता आई है।।