मकान या घर
मकान या घर




तिनका तिनका जोड़ के
मकान लियो बनाय।
त्याग, तप, प्रेम से
जरा इसको लो सजाया।।
प्रेम, त्याग, तप जहाँ,
मकान घर कहलाए।
बुजुर्गो के आंचल की छांव में,
संस्कार यहाँ मुस्काये।।
घर आंगन वह ही महके,
नारी का हो सम्मान जहाँ।
प्रेम जब बगिया में चहके,
दुःख न टिक पाए वहां।।
जो हम बोते, वही है पाते,
इस शाश्वता से गूंजे जहाँ।
मकान तो है बहुतेरे,
पर घर बन पाते है कहाँ।।
आओ सींचे पुनः घर आंगन,
प्रेम की इस धार से।
गुंजा दे आज धरा,
हरीतिमा की फुलवारी से।।
हम जो चाहे,वो हम पाते,
पाते विशेष आशीष यहाँ।
आओ बना दे नया आशियाना,
भेदभाव न हो जहाँ।।