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Krishna Sinha

Inspirational

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Krishna Sinha

Inspirational

मैं दुर्गा, मैं काली

मैं दुर्गा, मैं काली

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देह ही नहीं..

पर देह भी हूँ मैं..

इस सृष्टि की जननी..

नेह हूँ मैं...

जन्मदात्री मैं ही पुरुष की....

फिर क्यों उससे पीड़ित हूँ मैं...

क्यों नाकारा जाता अस्तित्व मेरा..

जबकि उसका वजूद हूँ मैं....

मुझसे उपज कर..

रह मेरे भीतर...

मुझसे वो श्रेष्ठ है घोषित..


मैं अपमानित, मैं प्रताड़ित...

गाली में भी शामिल हूँ मैं....

कब तक ये अंतर चला करेगा...

घर में तो घुटती सी बेटी...

मंदिर देवी बन जाऊं मैं....

अरे अधम अब तो संभल ले..

रौद्र रूप ना फिर धर जाऊं मैं...

दुर्गा रूप ले संहारूंगी दानव वृति 

ना माने तो काली भी बन जाऊंगी मैं....

बलात्कारियों, अधमियों, 

अत्याचारियों को एक नारी का आह्वान....

की नारी का सम्मान दिखावे को ना करें....


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