सीख
सीख
प्यार में मिले उन ठोकरों से,
आज वो गिर के संभालना सीख गयी।
जो डरती थी रात के अंधेरो से,
आज उन सुनसान रास्तो पे चलना सीख गयी।
जिसकी सुबह ना होती थी उसके दीदार के बिना ,
आज अकेले वो चाय पीना भी सीख गयी।
यादे तो बहुत है सताने को उसकी,
आज अपने दर्द में अकेले मुश्कुराना भी वो सीख गयी।
अकेली ना रही कभी वो,
आज अपनी जिंदगी अकेले जीना भी सीख गयी।
दिल तो टुटा था उसका भी,
आज उन टूटे टुकड़ो को समेटना भी सीख गयी।
कोई न था उसका उस वक़्त,
आज वो अकेले उसे अपनी कविताओं में लिखना सीख गयी।&nbs
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हर लम्हे में उसका ज़िकर था,
आज अपने लब्ज़ो में उसे छुपाना भी सीख गयी।
मोहब्बत का अंजाम कुछ ऐसा होगा उसे पता ना था,
आज खुदा से अपनी इबादत में उसकी खुशिया मांगना सीख गयी।
ज़ख़्म तो बहुत मिले उसे मोहब्बत की राह पे चल कर,
आज उन ज़ख्मो पे अकेले मरहम लगाना सीख गयी।
अपनी हर छोटी बड़ी नादानियों पे हसने वाली वो,
आज सबसे माफ़ी मांगना सीख गयी।
हस्ती बोलती पूरी दुनिया से वो,
आज अकेले में रोना सीख गयी।
वो हमेशा कहता था की लिखना तेरे बस की बात नहीं,
आज मोहब्बत में चुप रहने वाली वो पूरी दुनिया को अपनी दास्ताँ सुनाना सीख गयी।