सामाजिक रिश्ते
सामाजिक रिश्ते
मधुर रिश्तों की ऊष्मा हमें जीने की राह दिखाती है
और बीमार रिश्तों की तपिश बेचैनी देकर जाती है
बचपन से समझाया जाता है "रिश्ते निभाना सीखो"
शायद इसलिए कि रिश्तों को निभाना आसान नहीं
मधुर रिश्तों में गर्माहट आपसी रिश्तों को जोड़ती है
जबकि बीमार रिश्तों में कटुता रिश्तों को तोड़ती है
रिश्तों में ऊष्मा को अपनापन और जुड़ाव चाहिए
बिना किसी उम्मीद एक दूसरे को स्पेस देना होगा
रिश्तों को समय २ पर सींचना पड़ता है इसीलिए
भावना और पसंद नापसंद का ध्यान रखना होगा
रिश्तों में मधुरता बनी रहे इसके लिए आवश्यक है
दोनों साथ मिलकर हँसे लेकिन एक दूसरे पर नहीं
साथ में दुखी हो लेकिन एक दूसरे की वजह से नहीं
साथ खड़े हों लेकिन दोनों अपनी सोच में स्वतंत्र हों
कुछ रिश्तों में कटुता इस हद तक घर कर जाती है
नाम सामने आने से भी बेचैनी साफ़ नज़र आती है
कभी अगर सामना हो जाए तो मिलने से कतराते है
मौका पाते ही नज़र बचाकर झट से निकल जाते है
कितना आसान है आज सामाजिक रिश्ते निभाना
हाजिरी लगानी है चाहे फ़ोन से या शक्ल दिखा दो
खास मौका हो, आखिरी वक़्त पर शक्ल दिखा दो
“योगी” जाना नहीं हो तो फ़ोन पर बहाना बना दो