Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Harshita Dawar

Tragedy

4.8  

Harshita Dawar

Tragedy

बदनामी के दाग ना लागाना।।

बदनामी के दाग ना लागाना।।

2 mins
885


यूं ही नहीं कोई औरत ये काम करती है

महज मजबूत होते हुए भी कमजोर बनती है।

बदनाम गलियों को यूं ही नहीं चुनती है

मजबुर होकर ये काम करती है।


बदनामी के दाग लिए यूँ ही नहीं

इन गलियों में खो जाती है।

समुंदर का पानी यूं ही नहीं खारा है

कितने के आंसू पिये बाहें फैलाए बैठा है।


तब तक ये पानी खारा ही रहेगा,

जब तक औरत को बदनामी के

दाग सहने पड़ेंगे

इन गलियों में कितने फना हुए

कितनों के जनाजे निकले।


कितनों के अरमानों का कत्ल हुए

वहीं आदमी जो अपनी हवस

मिटाने वहां जाते हैं

उन्हीं औरतों को बदनाम किया।


किसने उनको जन्म दिया

ये भी नहीं मालूम होता

किसी किसी को।

कब से इन गलियों से

मुलाकात हो गई।


जीने का सहारा बन गई

ये भी नहीं पता उनको।

क्यों वो मर्द जात को

बद्दुआ दे जाती है।


कई मर्द जात यूं औरतों को

रखेल नाम दे जाते हैं।

कौन है वो, आते भी तो वही इन

गलियों में उनकी तलाश में।


जीने के मकसद को

बादनामी की आड में संजोए

सपनों को चूर चुर

होते देखा है कभी।


यूं ही अब ना पूछना

उनसे कहा से आई हो।

कौन है तेरा वंशज

बस कुछ अधखुली किताबों के

पन्नों को यूं ही ना खोलो।


उनके अरमानों को

यूं ही किसी तराजू में ना तोलो।

बस अब उनकी आधी सी

ज़िन्दगी को मज़ाक ना बनायो।


इन आंखों में समाए सूखे

आसुओं को फिर ना छलकायो।

अधुरे सपनों को अधुरे में ही

रहने दो, हवा ना दे जाओ।


बदनाम गलियों को

बदनाम ना करो

या य इन गलियों से

रास्ता बदलो ताकि

वो भी बदल सके।


अपने अरमानों को यूं ही नहीं रोज़

रोंद कर नए काटघरे में 

आन खड़ी होता है।

यूं ही नहीं रोज़

अपने जिस्म को नोच्वाती है।


यूं ही नहीं रोज़ अपने सोए

अरमानों को यूँ ही दफनाती है।

कितने ख्वाहिशें दफन होती रही

कितने की तबाही का

माहौल बनता रहा।


यूं ही ये ज़िन्दगी

बर्बाद होती रही।

कोई अपनी मर्ज़ी से

ये गालियां नहीं चुनती।


इज्जत की ज़िन्दगी

किसे अच्छी नहीं लगती।

यूं ही कितनों के घर

बनते बिगड़ते रहे।


 यूं ही औरत आदमी से

मसली जाती रही।

अब बस करो इस

बदसलूकी के इस तांडव को

अब और नहीं अब और नहीं। 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy