रुहानी यादें
रुहानी यादें
करवटों से तेरी
सिलवटें पड़ी जो चदर पर
निहारती हूँ उसे
यादों में तेरी
तेरे जाने के बाद।
खुशबू से तुम्हारे
महक रहा है
हर वो कमरा
जहाँ चार कदम
तुम चले थे।
रुहानी यादें
जिस्म के पार हो
आँखें चमका जाती है
जब तेरे होठों की हँसी
याद आती है।
समझ लेना पगली
या समझ लेना नादान
सोच चाहे रख्खो कुछ भी
सच तो ये है
हमारा हर फैसला तुमको सौंपा है।