मन-बावरा
मन-बावरा
बावरा मन
क्यों होती तुझे इतनी बेचैनी
सब कुछ तो है, किसकी तलाश है
बावरे मन!
दो मीठे बोल उससे
जो उतर जाये रूह तक
एक लम्बी सुकून भरी साँस
एक विश्वास, एक एहसास
मुझे समझे, मेरे दुःख पहचाने
रो लेने दे मुझे जी भरके
अपने कंधे का सहारा देकर!
ये कैसे सपने देखता है?
बावरे मन!
नहीं महसूस कर पाई
कोई दिल से प्रेम करे
तो कैसा लगता है
मेरी ख़ुशी में खुश हो,
मेरे दर्द उसकी आँखों में छलके!
बावरे मन!
सच! तू बावला ही है
ऐसी चाहत जो करता है
पूरा जीवन जी आया
अब ये चाहत क्यों?
भूल जा पगले!
भूल जा कोई ऐसा प्रेम भी होता है
अब पंखो का क्या करना
जब परवाज़ ही भूल गया!
पगले मन, बावरे मन!