मौन
मौन
ज़िंदगी गुज़री कुछ ऐसे,
पाया जैसे जिंदगानी मौन है।
हम चले तो थे मिलकर मीलों,
फिर भी हमारी कहानी मौन है।
बरसी थी बारिश अपने पूरे ज़ोरों से,
देखा जो ऊपर, आसमाँ मौन है।
वैसे चलती-फिरती दुनिया में रहते हैं,
जाने क्यूँ फिर भी, ये जहाँ मौन है।
बुरे सबक़ के साथ कुछ ऐसे उलझ गये,
ना देखा अंदर की अच्छाई मौन है।
यहाँ झूठ का तमाशा करते-करते,
जाने किसकी सच्चाई मौन है।
अब तो चल पड़े हैं हम हमसफ़र बनकर,
फिर भी हमारा ये सफ़र मौन है।
सब कुछ भुलाकर भी, ना जाने क्यूँ,
मेरे अंदर का जहर मौन है।
अपने दरमियाँ कुछ फ़ासले यूँ आये,
कि मेरी तेरी मोहब्बत मौन है।
कुछ यूँ उठा खुदा से भरोसा,
जाने क्यूँ मेरी इबादत मौन है।
अब फूँक कर रखेंगे क़दम रिश्तों में,
वो पहले वाली मदहोशी मौन है।
ख़ामोश रहकर जो लिख दी दास्ताँ,
अब तो मेरी ख़ामोशी मौन है।
तेरी-मेरी कहानी मौन है,
हमारी जिंदगानी मौन है।