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नारी

नारी

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एक सफ़र दिखाने चलती हूँ,

एक ग़ज़ल सुनाने चलती हूँ।

तुम आओ मेरे साथ तुम्हें,

नारी से मिलाने चलती हूँ।


मैं अबला नहीं, बेचारी नहीं,

सुंदर बगिया की मैं माली।

मैं दुर्गा हूँ, मैं लक्ष्मी हूँ,

सब पर भारी हूँ मैं काली।


तू दे ना मुझे अब कोई नसीयत,

कि कैसे मुझको जीना है।

हर बार यहीं मैं क्यूँ बोलूँ ?

ये जहर मुझे ही पीना है।


ना दे मुझको सोने का पिंजरा,

मैं तो आज़ाद परिंदा हूँ।

ख़ुद से ही ख़ुशियाँ ढूँढ लूँ ,

मैं वो ख़ुशी बाशिंदा हूँ।


मैं राग हूँ, आलप हूँ,

मैं मीठी सी वो तान हूँ।

तू हर रिश्ते में परख मुझे,

मैं हर रिश्ते का मान हूँ।


होगा पूरा मेरा हर सपना,

ये दिल में मैंने ठाना है।

अब चल पड़ी तो चलने दे,

अभी दूर बहुत मुझे जाना है।


चलना ही मैंने सीखा है,

ना रुकी कभी ना मैं हारी।

ये अंतहीन है सफ़र मेरा,

अब चल पड़ी हूँ मैं नारी।

अब चल पड़ी हूँ मैं नारी।



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