सच और झूठ
सच और झूठ
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सब साथ झूठ के चलते हैं,
एक सच को दिल मे छुपाए हुए।
जाने अब कितने बरस हुए,
उस सच से आँखें मिलाये हुए |
एक सच छुपा के रखा है,
एक झूठ बता के रखा है।
जाने मैंने क्यूँ तुमसे यूँ,
एक राज़ दबा के रखा है।
तुम समझोगे मेरे सच को?
दिल अब भी यूँ ही डरता है।
हर बार अपनी ख़ुशीयों के लिए,
दिल झूठ को आगे करता है।
अब कहती हूँ तुम से आकर,
एक सच मेरा यूँ सुन लो न ।
ये झूठ बहुत बेदर्दी है,
फिर से एक सपना बुन लो न ।
अब थकती हूँ करते करते
जीवन कि झूठी फ़रियादे।
अब तेरे दिल में मेरे दिल में
होंगी बस अब सच की यादें।
होंगी बस अब सच की यादें।
