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PARMOD KUMAR

Inspirational

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PARMOD KUMAR

Inspirational

अहसास

अहसास

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उस तिफले,भवन में जाकर,जाने कैसा,लगा मुझे।

छूट गई हैं,सब राहें, यह  अहसास,हुआ मुझे।।

आंख-मिचौनी,खेल रही है,ये तक़दीर मेरी।

अपनों ने भी,बेगाना,समझा है मुझे।।

छूट गयी हैं-------


देखता रहा मैं, इस गुजरते हुए, पल को।

कभी ध्यान से, पाया नहीं,इस बहते हुए, पल को।।

इसी बेबफाई ने,लाचारी, दी है हमें।

सहता रहा मैं,इस ,ढलते हुए, सितम को।।

 देखता रहा मैं------


अचमम्भा सा लगा,जब सब,बदल सा गया।

खुल गई,सब राहें, जब सहम,मैं गया।।

यह फितरत है,उस कुदरत की,जिसने ऐसा किया।

गिरे को,जैसे संभाला,सराखों पर, बिठा दिया।।

अचमम्भा सा लगा--

गिरे को जैसे--------



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