यादें(गौरेया)
यादें(गौरेया)
वो फुदक-फुदक गौरैया का,मेरे आंगन ,में आना।
चहचहाना, वो शर्माना,अट्टा पे मेरे,फुदक जाना।।
पानी की भरी, कटोरी में,कलरव करके,यूँ मुस्काना।
न जानें,कहाँ,गये वो दिन,धूमिल है, नजरों में आना।।
न जानें कहाँ गये---
जब ले अवलंबन,कंधों का,नीड खंगाला,करते थे।
भान नहीं,हमको,था ये,ममता का हृदय,दुखाते थे।।
अंक में लेकर,चुपके से,हृदय से, उन्हें सहलाते थे।
ये देख नज़ारा, ममता की,आंखों में अश्रु,भरते थे।।
भान नहीं हमको---
रे मानव!क्या विकास हुआ? अपनों का हनन,किया हमनें।
प्रकृति की सुंदर,रचना को,निज स्वार्थ,अलोप किया हमनें।।
झमादान मिल जायेगा? ऐसे भयंकर कु-कृत्य का ।
कैसे-कैसे प्रपंच रचे,मानवता का हनन,किया हमनें।।
कैसे-कैसे प्रपंच----
वो कलरव भ्रमित,सुना मैंने, इक गौरैया, मेरे अंगना ।
जब आंख खुली,देखा मैनें,था,वही पुराना, इक सपना ।।
न जानें कहाँ-----
न जानें कहाँ-----